छत्तीसगढ़ के राजगीत के रचईया: डॉ नरेन्द्र देव वर्मा
छत्तीसगढ़ के मान महिमा जगाय के, नवा सम्मे म हमन छत्तीसगढ़ महतारी के वन्दना गीत ला सुन के मन भरहा सुख पावत हन-
अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार, इन्द्रावती ह पखारे तोर पईयाँ, महूँ पांवे परंव तोर भुइयाँ, जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मइयाँ ,
गीत ह छत्तीसगढ़ के राजगीत आय। एकर रचईया कवि आय, छत्तीसगढ़ के राज रतन धन डॉ.नरेन्द्र देव वर्मा, उन छत्तीसगढ़ के माटी अऊ महानदी के घाटी के अइसन पुन्यात्मा पूत आंय, जेन छत्तीसगढ़ के मान-महिमा ला जगाय बर अपन जिनगी ला जोत अस जगाइन अऊ छत्तीसगढ़ ला अंधियारी ले उबार के सोनहा बिहान बगराये के जतन करिन। उंकर ए साधना के सुफल आय के छत्तीसगढ़ ह एक छुछिन्दहा राज बनिस, जिहां छत्तीसगढ़िया मन अपन राज के भाग के गढ़इया खुदेच बनिन। उन अब देवता हो गइन, देव लोक वासी हो गइन, फेर उंकर बारे जोत ह आजो हमर मन, परान ल अंजोर करत हावय, ओ दिव्यात्मा डॉ.नरेन्द्र देव वर्मा ह ए पावन भुइयाँ के महान विभूति आंय, दगदगात धाती आंय-
भाई हो, डॉ.नरेन्द्र देव वर्मा जी ह महान माता-पिता के होनहार बेटा रहिन। उंकर पूज्य पिता धनीराम वर्मा सुराजी सिक्छक रहिन। उन महात्मा गाँधी के संग वर्धा आसरम मा रहिके, बुनियादी सिक्छा के जरिये आजादी बर जन मानस जगाये के उजोग करत रहिन। उहंचे 4 नवम्बर 1939 के दिन तीसर पुत्र रत्न के रूप म जनम होइस। उंकर मयारुक महतारी रहिन श्रीमती भाग्यवती देवी जेन अपन पाँचों गुनागर बेट्वन अऊ इकलौती बेटी डॉ.लक्ष्मी धुरंधर ला सरधा अऊ भकति के गियान देइन। उंकर कल-कोंवर कोरा म संवार संसकार पावत उंकर सब्बो संतान समाज के बढ़ोतरी के कारक बनिन। स्वामी आत्मानंद भाई मन म ज्येष्ठ रहिन अऊ डॉ. ओमप्रकाश छोटे अइसने गियानी परिवार मा डॉ. साहब के जनम होइस। डॉ.साहब म अपन माता-पिता अग्रज अऊ पूर्वज मन बर अब्बड़ आदर अऊ सब्बो परिवार जन मन बर मया के बेवहार रहिस। उंकर जिनगी म भक्ति अऊ करतिरी के सुग्घर समायोग रहिस। ओ पुरुशारथ के परमान रहिन, आलस उंकर ले दुरिहावय। फेर, भगवानों ह तो घलाव गियानी गुनी मन ला अपन लोक मा लहुवा बुलाथे। आखिर उही होइस… 8 सितम्बर 1979 के दिन ओ ए दुनिया ले दुरिहा चल दिन। उछिन हो गइन, सात समुंदर ला नहाक के भिनसरहा ला खोज अनइया सातों अगास के ऊपर उढ़ियागे। ए धरती म रहिगे उंकर रचे 18 ग्रन्थ अऊ अनगिनत कविता कहानी मन के धाती। आज हमन उंकर गियान गंगा के रस धार म फिलत उंकरे रचे उचारे गीत मन ला गावत जियत हन।
डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा अपन सम्मे के महान गुरु मन ले गियान पाए रहिन। आचार्य नन्द दुलारे बाजपेयी, राज मूर्ति त्रिपाठी, भगीरथ मिश्र, गंगाधर झा अऊ प्रेमशंकर उन ला पढ़ाये रहिन, फेर एहू सच आये के उंकर रचे ग्रन्थ मन ला उंकर गुरु मन घलो पढय। अऊ अपन गियान के बढ़ोतरी होए के संदेसा देवयं। उन ला अपन गुरु मन ले धन्यवाद अऊ आसिरवाद घातेच मिलय। डॉ.साहेब बरदानी घलो त रहिन। परमहंस राम कृष्ण देव के जनम भुइयाँ जयराम बाटी म माँ भगवती श्री शारदा ले कृति पुन्न होए के वरदान मिले रहिस। ते पाए के उंकर आखर अक्छत होत गइन अऊ बानी ह मधुर-गुरतुर होत गइस।
डॉ. साहब के भासा गियान ह गहिर रहिस, उन हिंदी, अंगे्रजी अऊ छत्तीसगढ़ी के संग कतकोन भासा ल समझे सिरजय। असल म भाखा ह मनखे के चिन्हारी होथे ना, ओला संसकारथे अऊ सिरजन के बेवहार देथे। साहित्य ह मनखे ल उजियारे के उदिम करथे, सगा बनाथे अऊ ओकर संसार ला बढ़ाथे, बढ़ाते च जाथे। डाक्टर नरेन्द्र देव वर्मा हिंदी अऊ छत्तीसगढ़ी के अइसे दुलरवा रचनाकार आंय जेहर सरी जिनगी भुइयाँ के मान-महिमा के भक्ति सहित गान करिन उंकर तीर भाव अऊ भाखा के भेद नइ रहिस। उन कमजोरहा, दुखी भूखी जन मन ला जादा भावयं। उंकर लकठा जावंय अऊ उनला सामरथ -सुखी बनाय के उपाय करंय। हमला सुरता हंवय के छत्तीसगढ़ मा 1974 म बज्जर दुकाल परिस, उन राहत के कारज म तन मन धन ले जुरिन, थकिन कहाँ? रुकिन कहाँ? अइसन कोमल अऊ दया धरम के दिल पाय रहिन गुरु प्रवर डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा। डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा के साहित्य के मूल भावना रहिस-सत्यम, शिवम, सुन्दरम के साधना। लेवन, उंकर एक ठिन कविता के दू ठिन धार ला सुन लेइन-
सात समुन्दर ला नहाक, भिनसरहा सोरियाय हंव, अंधियारी ला पीके मंय ह, सुरुज किरिन छरियाय हंव।
उंकर कविता मन मा, असतो मा सद्गमय के गियान, मृत्योर्मा अमृतोगमय के भान अऊ तमसो मा ज्योतिर्गमय के गान रहिस। उंकर गीत मन के मंझ म मनखे के ठान रहय अऊ चेत मा माटी महतारी के मान। असल म, उंकर छत्तीसगढ़ी कविता मन, गीत मन छत्तीसगढ़ महतारी के चरन मा चघे पूजा के फूल तो आंय जेन कभू न अइलाइन न मुरझाइन। उन अब्भो ममहावत हंवय। उंकर कविता के फूल मन माटी ले नइ उपजिन, उन उपजिन हांवय कवि के कोमल हिरदे ले, माटी के मान बर उनला माटी ले, खेत-खार खलिहान ले अब्बड़ मया रहिस, गरब गुमान रहिस। उंकर कविता खेत ला निसार झन… म कमिया किसान मन बर ए सिख हावय के, अपन करम ला भक्ति भाव ले करव, कब्भु मया अऊ मिहनत अकारत नई जावय। मनखे अऊ माटी के गीत रचईया, जांगर चलईया के दुख हरइया कवि एहू जानथे के जिनगी के असल मरम का हे…।
दुनिया अठवारी बजार रे, उसल जाहि…
कविता मा उन कहिथें-ए दुनिया ह कागद के, धुंगिया के पहार तो आय, एहां रेती के महल अऊ लेवना के उफान तो आय, खचित एक न एक दिन नसाबेच करही। तेकर सेती, मनखे ला अपन करनी अऊ करम गति के चिंता करना चाहि, तब्भे डोंगा पार उतरही। डॉ. साहब के छत्तीसगढ़ी गीत मन अपूर्वा अऊ छत्तीसगढ़ी गीत-गुच्छ कविता किताब म गुन्थाय हवय, संघराय हवंय। आप उन ला हांक तो पारव, ओ आप मन के दिल के दुवारी म हबर जाहीं, आप ले बतियाही, मया दिही, रद्दा बताही। हम कही सक्थन के डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा के सब्बो गीत मन, कविता मन उंकर सांस के सरगम म बंधाय गुरतुर संगीत आय, जेकर गुंजार जुग-जुग तक गुंजत रिही, छत्तीसगढ़ के जन-जन ला जगाय खातिर, सोनहा बिहान लाये खातिर…।
डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा अव्वल दर्जा के कथाकार रहिन। उंकर उपन्यास-सुबह की तलाश ह मानव मुकति के जीवन गाथा आय, जय गाथा आय, एमा देखाय गए हे के आजादी के पहिली छत्तीसगढ़ ह देसी सामंत मन के, मालगुजार मन के, जोर जकड़ म बंधाय रहिस। कइसे इहाँ के रतन भुइयाँ म बहिरासु चोर -बटमार मन मातबर बनगे अऊ धन-दोगानी उंकर तिजोरी म भरगे, उंकर ताक अऊ ताकत बढ़गे, तब उंकर अइताचार, दुराचार ले छत्तीसगढ़ के चाल -चरित्तर के तार-तार होए लगिस। डॉ. साहब एमा बताय हांवय के अंधेर गर्दी ले उबरे के एकेच उपाय हावय…सिक्छा, उत्तिष्ठ जागृत प्राप्य वरान्नी बोधाते…गियाने ह मनखे म साहस अऊ बढ़वारी के मंसूभा जगाथे। जब मनखे ह रकसा मन ले जूझे के जोम करथे, तब्भे मान-मरजाद के लहूँटे के रद्दा बनथे।
कथा म एक गाँव हवय-अमोलीडीह, उहाँ के जंगल जोरु जमीन मा सामंत नाहरसिंह अऊ उंकर बिगडै़ल बेटा रणधीर सिंह के आतंक हावय। उन मन ले गाँव के लोग लुगई सब्बो थर्राथे, डर्राथे। ओ गाँव मा उंकर अतियाचार ले, दुराचार ले जूझे के कखरो ताकत नई ये, जुझही कोन? सब्बो के लहू ह तो अंटा गइस हे उंकर चुहकान म। कइसे बचय जान, धरम अऊ ईमान, एला सोचत सगरो गाँव हे हलाकान, परेसान। फेर उहाँ गाँधी बबा के गियान गुनी सुराजी चेला फगुवा पंडित सत के सकत ले नियाव बार जुझत हे…अकेल्ला, तब्भे ओ गाँव म पंडरमट्ठा ले बुनियाद गुरूजी आथे सोमेश्वर…। गाँव के उसिं्नदहा इस्कूल ल जगाये के जतन करथे। बंजर भांठा म फूल खिलाथे। ओकर मनसुमा ला पुरखिन दाई अऊ फगुवा के बल मिलथे। ओहा बुनियादी सिक्छा ले अंजोर बगरा के, गियान के दिया जला के ग्राम सूराज के संदेसा ला जन-जन तक पहुँचाथे। तब्भे भाठा भुइयाँ म आस के, बिसवास के पीक फुटथे…लोगन संघरात जाथे, अंधेर गर्दी ले निबटे बर रामाधार मुख्तियार के बेटी सोहागा ठाकुर रणधीर के बद नीयति ले बहंच जाथे, फेर गरीबन गोंदा जान गँवाथे। सामंत के सडयन्त्र उघरत जाथे। आखिर पाप ह उफलाबेच करथे। अंधियार कतको घुप्प रहय, बिरबिट रहय, फेर सुरुज के उवे म छंटियाबे करथे। कथा के अंत म, सुभद्रा ठकुराइन के घर दानी बेटा सोमेश्वर के हाथ ले गाँव म कौशल्या देवी यानी पुरखिन दाई के मूरति के मढ़ान होथे। ऐह छत्तीसगढ़ के जन जीवन के जागरण के कथा आय।
डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा के रचना संसार ह विराट हे। ईश्वर के दिहे छोटकिन जिनगी म उन विराट संसार रचईन अपन महतारी भासा छत्तीसगढ़ी के मान बेवहार बढ़ाइन। ओहर पुरखौती विरासत ल सहेजिन। ढोलामारू अऊ लोकमंजरी ल सुर ताल देइन। संगी हो, ए ह हमर बड़ भाग आय के आज हमन उंकर जोग भाग के गुनान करत हावन। उंकर सद्कर्म के सुरता ह हमर हिरदे म बने रिही, अक्छय बठ कस अमर रिही। उंकर जस ह छत्तीसगढ़े च म निही सारी दुनिया म बगरही, महमहाही उन दिव्यात्मा गुरुदेव डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा के पुण्य स्मृति ला हमर सादर प्रणाम…।
जय छत्तीसगढ़, जय छत्तीसगढ़ी…।
डॉ. बिहारीलाल साहू, रायगढ़ (छ.ग) मो.9425250599, 7693050599