बंगाल में हिंसा नहीं रुकी तो लग सकता है राष्ट्रपति शासन
नईदिल्ली 7 मई। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद देशभर में इन दिनों पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग हो रही है। केंद्र और राज्य सरकार के बीच बयानबाजी जारी है। ऐसे में कुछ राजनेता राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि राष्ट्रपति शासन लगाने की प्रक्रिया क्या होती है?
प्रदेश में कानून व्यवस्था के चरमरा जाने पर, हिंसा, हत्या, अराजकता को न रोक पाने पर, राज्य का संवैधानिक तन्त्र पूरी तरह विफल हो जाने पर केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले की संवैधानिक प्रक्रिया:
स्टेप 1: राज्यपाल मुख्यमंत्री से कानून व्यवस्था बनाए रखने की अपील करते है।
स्टेप 2: गृह मंत्रालय प्रदेश के राज्यपाल से रिपोर्ट मांगता है।
स्टेप 3: राज्यपाल एक निश्चित अवधि में गृह मंत्री को रिपोर्ट सौंपते है।
स्टेप 4: गृह मंत्री प्रदेश के उच्च पुलिस अधिकारियों को दिल्ली तलब करते है।
स्टेप 5: आवश्यकता पड़ने पर गृह मंत्री राज्यपाल को दिल्ली बुलाते है।
स्टेप 6: गृह मंत्रालय 4-6 सदस्यीय टीम बनाकर प्रदेश में हिंसक घटनाओं का जायजा लेने भेजता है।
स्टेप 7: गृह मंत्रालय द्वारा गठित टीम गृह मंत्री को निश्चित अवधि में रिपोर्ट देती है।
स्टेप 8: केंद्र सरकार मुख्यमंत्री को निश्चित समय सीमा के भीतर कानून व्यवस्था काबू में करने का निर्देश देती है।
स्टेप 9: राज्य सरकार द्वारा हिंसक घटनाओं को काबू न कर पाने की स्थिति में केंद्र सरकार केंद्रीय सुरक्षा बलों को भेजती है।
स्टेप 10: केंद्र सरकार कानून विशेषज्ञों से सलाह मशवरा करके संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अनुसार आर्टिकल 356 का इस्तेमाल करते हुए राज्य सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगा सकती है।
अगर इनमे से एक भी स्टेप केंद्र सरकार स्किप करती है और राज्य सरकार को लॉ एंड ऑर्डर सिचुएशन सुधारने का मौका दिये बगैर सीधा राष्ट्रपति शासन लगा देती है तो मामला सुप्रीम कोर्ट जाने की स्थिति में राष्ट्रपति शासन कोर्ट द्वारा रद्द किया जा सकता है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत दो तिहाई बहुमत से चुनी हुई सरकार को बर्खास्त करना इतना आसान नहीं है। केंद्र सरकार स्टेप बाई स्टेप कदम बढ़ा रही है। बंगाल में हिंसा नहीं रुकी तो राष्ट्रपति शासन भी लग सकता है।