कमाल: बलिया के एक शख्स ने जुगाड़ से तैयार कर दिया देशी ‘ऑक्सीजन प्लांट’
बलिया 15 मई। कहावत प्रचलित है कि ‘आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है।’ ऐसा ही एक आविष्कार कर दिखाया है, उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के एक शख्स ने। दरअसल, कोरोनो की दूसरी लहर के बीच जब देशभर में ऑक्सीजन की किल्लत हुई और ऑक्सीजन उपलब्ध कराने वाले चिकित्सीय उपकरणों का अभाव पैदा हुआ तो इस शख्स ने खुद ही ऐसा जुगाड़ तैयार कर दिया जो आज ऑक्सीजन प्लांट की तरह काम कर रहा है।
जी हां, बलिया के अयूब मिस्त्री नामक इस शख्स ने इसी जज्बे के साथ ऑक्सीजन बनाने वाली देसी मशीन तैयार कर दी है। सिर्फ इतना ही नहीं जुगाड़ से तैयार इस देसी ऑक्सीजन कॉन्संट्रेटर को उन्होंने जिला अस्पताल को देने की पेशकश सीएमओ से की है।
शहर से सटे परमंदापुर के रहने वाले अयूब मिस्त्री बहेरी में तकरीबन चालीस सालों से मोटर गैराज चलाते हैं। गाड़ियों के उम्दा मिस्त्री के रूप में पूरे पूर्वांचल में विख्यात अयूब मिस्त्री भारतीय संस्कृति के भी ध्वजवाहक हैं। प्रत्येक पंद्रह अगस्त व 26 जनवरी को अपने जुगाड़ से तैयार टैंक व तोपों की झांकी शहर में निकालते हैं। जिसे देखने लोगों की भीड़ जुट जाया करती है।
देश का पहला देसी ऑक्सीजन कॉन्संट्रेटर तैयार करने के पीछे की कहानी
अयूब मिस्त्री बताते हैं कि बीस दिन पहले एक व्यक्ति ऑक्सीजन रेग्युलेटर के लिए मेरे पास इस आस में आया कि शायद मैं किसी जुगाड़ से तैयार करके दे दूंगा। मैंने किसी तरह उसके लिए रेग्युलेटर का इंतजाम कर दिया था। उस इंसान की आंखों में ऑक्सीजन के लिए तड़प देख मैंने उसी दिन तय किया कि ऑक्सीजन का यंत्र मुझे भी तैयार करना चाहिए। इसके बाद वाहनों में हवा भरने के लिए प्रेशर टैंक को मैंने देसी ऑक्सीजन कॉन्संट्रेटर के रूप में तैयार करने में जुट गया।
बीस दिन लगातार मेहनत के बाद मिली सफलता
कहा कि बीस दिन लगातार मेहनत के बाद देश का पहला देसी ऑक्सीजन प्लांट तैयार है। इसमें पांच कुंतल ऑक्सीजन स्टोर करने की क्षमता है। जो पांच घंटे में भरेगा। वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन को चार चरणों में फिल्टर करके मरीजों के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध कराया जा सकेगा। इस देसी मशीन से एक साथ छह लोगों को ऑक्सीजन सप्लाई की जा सकती है। यदि हॉस्पिटल के पाइप लाइन से सप्लाई की जाए तो एक साथ बीस मरीजों को ऑक्सीजन दी जा सकती है।
अयूब मिस्त्री ने कहा कि मैंने अपनी ऑक्सीजन मशीन के बारे में सीएमओ को बता दिया है। यदि वे इसे स्वीकार करेंगे तो मैं जिला अस्पताल के लिए सहर्ष देने के लिए तैयार हूं। क्योंकि मैं अपने रहते किसी इंसान को ऑक्सीजन के लिए मरते नहीं देखना चाहता। अयूब मिस्त्री की इस जुगाड़ वाली पहल की हर तरफ सराहना हो रही है।