November 24, 2024

फेक-बस्टर’ डिटेक्टर: वर्चुअल कॉन्फ्रेंस और वेबीनार में घुसपैठ करने वालों का लगाएगा पता

नईदिल्ली 21 मई। महामारी के दौर में ज्यादातर कामकाज और आधिकारिक बैठक ऑनलाइन हो रही हैं, लेकिन कई बार बिना किसी की जानकारी के वर्चुअल कॉन्फ्रेंस कुछ अनजाने लोग भी शामिल हो जाते हैं। ऐसे लोगों का पता करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रोपड़, पंजाब और ऑस्ट्रेलिया के मॉनाश विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने ‘फेक-बस्टर’ नामक एक अनोखा डिटेक्टर ईजाद किया है, जो बिना किसी की जानकारी के वर्चुअल कॉन्फ्रेंस में भाग ले रहे धोखेबाजों का पता लगा सकता है। इस तकनीक के जरिये सोशल मीडिया में भी फरेबियों को पकड़ा जा सकता है, जो किसी को बदनाम करने या उसका मजाक उड़ाने के लिये उसके चेहरे की आड़ लेते हैं।

घुसपैठ कर वीडियो के साथ करते हैं छेड़छाड़

इस अनोखी तकनीक से पता लगाया जा सकता है कि किस व्यक्ति के वीडियो के साथ छेड़छाड़ की जा रही है या वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान कौन घुसपैठ कर रहा है। इस तकनीक से पता चल जायेगा कि कौन फरेबी वेबीनार या वर्चुअल बैठक में घुसा है। ऐसी घुसपैठ अक्सर आपके सहकर्मी या वाजिब सदस्य की फोटो के साथ खिलवाड़ करके की जाती है।

डीपफेक्स’ के जरिए करते हैं घुसपैठ

डॉ. धाल का कहना है कि फेक-न्यूज के प्रसार में मीडिया विषयवस्तु में हेरफेर की जाती है। यही हेरफेर पोर्नोग्राफी और अन्य ऑनलाइन विषयवस्तु के साथ भी की जाती है, जिसका गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि इस तरह का हेरफेर वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग में भी होने लगा है, जहां घुसपैठ करने वाले उपकरणों के जरिये चेहरे के हाव भाव बदलकर घुसपैठ करते हैं। यह फरेब लोगों को सच्चा लगता है, जिसके गंभीर परिणाम होते हैं। वीडियो या विजुअल हेरफेर करने को ‘डीपफेक्स’कहा जाता है। ऑनलाइन परीक्षा या नौकरी के लिये होने वाले साक्षात्कार के दौरान भी इसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है।

‘फेक-बस्टर 90 प्रतिशत कारगर

‘फेक-बस्टर’ का विकास करने वाली चार सदस्यीय टीम है, जिसमें डॉ. अभिनव धाल, एसोशिएट प्रोफेसर रामनाथन सुब्रमण्यन और दो छात्र विनीत मेहता तथा पारुल गुप्ता हैं। डॉ. अभिनव धाल ने कहा, “बारीक कृत्रिम बौद्धिकता तकनीक से मीडिया विषयवस्तु के साथ फेरबदल करने की घटनाओं में नाटकीय इजाफा हुआ है। ऐसी तकनीक दिन प्रति दिन विकसित होती जा रही हैं। इसके कारण सही-गलत का पता लगाना मुश्किल हो गया है, जिससे सुरक्षा पर दूरगामी असर पड़ सकता है।” उन्होंने भरोसा दिलाते हुए कहा, “इस टूल की सटीकता 90 प्रतिशत से अधिक है।” यह सॉफ्टवेयर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सॉल्यूशन से अलग है और इसे जूम और स्काइप एप्लीकेशन पर परखा जा चुका है।

फेक-बस्टर ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से करता है काम

डीपफेक डिटेक्शन टूल ‘फेक-बस्टर ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों तरीके से काम करता है। इसे मौजूदा समय में लैपटॉप और डेस्कटॉप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके बारे में एसोसिएट प्रोफेसर सुब्रमण्यम का कहना है,“हमारा उद्देश्य है कि नेटवर्क को छोटा और हल्का रखा जाये, ताकि इसे मोबाइल फोन और अन्य डिवाइस पर इस्तेमाल किया जा सके।” उन्होंने कहा कि उनकी टीम इस वक्त फर्जी ऑडियो को पकड़ने की डिवाइस पर भी काम कर रही है।

लाइव वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान भी करता है काम

टीम का दावा है कि ‘फेक-बस्टर’ सॉफ्टवेयर ऐसा पहला टूल है, जो डीपफेक डिटेक्शन प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके लाइव वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान फरेबियों को पकड़ता है। इस डिवाइस का परीक्षण हो चुका है और जल्द ही इसे बाजार में उतार दिया जायेगा।

वहीं इस तकनीक पर एक पेपर ‘फेक-बस्टरः ए डीपफेक्स डिटेक्शन टूल फॉर वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग सीनेरियोज’को पिछले महीने अमेरिका में आयोजित इंटेलीजेंट यूजर इंटरफेस के 26वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में पेश किया गया था।

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