November 7, 2024

गीता देवी मेमोरियल अस्पताल की जिला प्रशासन से शिकायत की सरगर्म हुई चर्चा

कोरबा 3 जून। जब से कोसाबाड़ी स्थित गीता देवी मेमोरियल अस्पताल का संचालन शुरू हुआ है, तब से वह किसी न किसी बात को लेकर हमेशा विवादों में रहा है। कभी यहां चिकित्सा व्यवस्था, कभी मरीजों से मनमाने फीस वसूली तो कभी अस्पताल के ही नर्सिंग स्टाफ को प्रताड़ित करने के मामले में सवाल उठते रहे हैं।

ताजा मामला यहां के नर्सिंग स्टाफ को वेतन नहीं दिए जाने और उन्हें जबरन काम छोड़ने का दबाव बनाने के संबंध में शिकायत सामने आई है। यहां कई साल से कार्यरत 15 – 16 नर्सिंग स्टाफ से कोरोना काल मे 12-12 घंटे काम लिया गया । किसी स्टाफ की तबीयत खराब हो अथवा उनके घर में अति आवश्यक काम हो उन्हें छुट्टी नहीं दी जाती। अगर जबरन छुट्टी ले ले तो उनका वेतन काट दिया जाता है। जब काम को देखते हुए अस्पताल प्रबंधन से वेतन बढ़ाने की बात की जाती है तो उन्हें कहा जाता है, वेतन तो किसी भी कीमत पर नहीं बढ़ेगा, काम करना है तो करो वरना जा सकते हो। अस्पताल प्रबंधन का व्यवहार ऐसा होता है मानो वे मरीजों की सेवा करने वाले नर्सिंग स्टाफ नहीं बल्कि बंधुआ मजदूर हो।

हद तो तब हो गई जब यहाँ के कर्मचारियों का अप्रैल महीने का वेतन ही रोक दिया गया। इससे उनकी घर की माली हालत बिगड़ गई और उन्होंने परेशान होकर अस्पताल प्रबंधन से वेतन देने के लिए अनेकों बार मिन्नतें की लेकिन प्रबंधन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा, लिहाजा उन्हें न्याय की गुहार लगाने जिला प्रशासन की शरण में जाना पड़ा। गीता देवी मेमोरियल अस्पताल प्रबंधन के अड़ियल रवैये से केवल नर्सिंग स्टाफ ही नहीं बल्कि यहां अपनी सेवाएं देने बाहर से आने वाले डॉक्टर भी परेशान हैं। उन्हें भी नियमित रूप से वेतन का भुगतान नहीं किया जाता।

सभी नर्सिंग स्टाफ ने दिया सामूहिक इस्तीफा

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बिना वेतन के 12 -12 घंटे की ड्यूटी से परेशान 15 से 16 नर्सिंग स्टाफ ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया है। उनकी मांग है कि जब तक उन्हें वेतन नहीं मिलेगा वे ड्यूटी नहीं करेंगे। वहीं अस्पताल के संचालन को जारी रखने के लिए नए स्टाफ की भर्ती भी कर ली गई है।

गीता देवी मेमोरियल, अंतिम सांस गिन रहे मरीज के परिजनों से इलाज के नाम पर वसूल लिए 29000 रु 

जिंदगी देना और लेना ईश्वर का काम है लेकिन उपचार के नाम पर मरीज के परिजनों से मनमानी फीस वसूलना कतई उचित नहीं कहा जा सकता। हजारों लाखों खर्च करने के बाद किसी की जान बच जाती है तो किसी की नहीं। ये मामला हालांकि पिछले महीने 9 मई का है लेकिन इसका दंश आज भी हरा है।

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