लुप्त हो रहा ‘छऊ’ नृत्य बना ग्रामीण इलाकों में केंद्र की योजनाओं की खास पहचान
रांची 11 सितम्बर। झारखंड से विलुप्त होते ‘छऊ’ नृत्य को पुनर्जीवित कर केंद्र सरकार की कई महत्वाकांक्षी योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है। यहां रामगढ़ के स्थानीय कलाकार सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर लोगों को इनके बारे में बता रहे हैं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि आज यहां ग्रामीण इलाकों में लोगों की नजर में ‘छऊ’ नृत्य केंद्र की तमाम योजनाओं की पहचान बन चुका है। इसी नृत्य के माध्यम से आज केंद्र की अधिकतर योजनाएं यहां के लोगों के दिल-ओ-दिमाग में बस चुकी हैं। शायद यही कारण है कि यहां के लोग जो पहले कभी सरकार की योजनाओं से अछूते रह जाते थे, आज बढ़-चढ़कर इनका लाभ लेते दिखाई दे रहे हैं।
विलुप्त होने के कगार पर था ‘छऊ’ नृत्य
‘छऊ’ नृत्य पश्चिम बंगाल, झारखंड एवं ओडिशा का प्रमुख लोक नृत्य माना जाता है। लेकिन आज के समय में ऐसे तमाम लोक नृत्य दिन प्रतिदिन लुप्त होने के कगार पर खड़े हैं। ऐसे में रामगढ़ के एक समाजसेवी सामने आए हैं, जो ग्रामीण इलाकों के मनोरंजन की रीढ़ कहे जाने वाले इन लोक नृत्य को पुनर्जीवित करने का महान कार्य कर रहे हैं। वे पिछले कई वर्षों से इस कड़ी में प्रयासरत हैं। आज उन्हीं की मेहनत से रांची जिला के सोनाहातु प्रखंड के पंडाडीह गांव सहित रामगढ़ एवं पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्र के करीब आधे दर्जन गांव में ‘छऊ’ नृत्य के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान, बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ एवं कौशल विकास को बढ़ावा मिल रहा है।
यहां छोटे-छोटे बच्चों में छऊ नृत्य की गजब की ललक
रजरप्पा के समाजसेवी सुभाशीष चक्रवर्ती बताते हैं कि इस इलाके में छोटे-छोटे बच्चों में छऊ नृत्य की ललक थी। ऐसे में उन्होंने दो युवाओं को प्रेरित किया ताकि वे गांव-गांव जाकर बच्चों को छऊ नृत्य सिखाने लगे। इसके लिए उन्होंने स्कूलों का भी रुख किया। उसी का नतीजा है कि आज यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान व आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों के सपने को साकार कर रहे हैं।
बच्चों में शिक्षा की अलख जगाने का भी कर रहे महत्वपूर्ण कार्य
बच्चों के अंदर शिक्षा की जागरूकता बढ़े, इसको लेकर इन्होंने गांव में ही दो तीन पुस्तकालय खोले हैं, जिसमें बच्चे नियम से आते हैं और विश्व स्तर की पुस्तकों की जानकारी हासिल करते हैं। ग्राम प्रधान रवि मुंडा बताते हैं कि विलुप्त हो रहे ‘छऊ’ नृत्य को झारखंड में काफी आगे ले जाने के लिए ये निरंतर प्रयास कर रहे हैं, जिसके लिए यहां लोग भी काफी उत्सुक हैं। इसके बारे में जितनी सराहना की जाए बेहद कम होगी। छऊ नृत्य करने वाली ये टोली यहां महीने में एक-दो बार आती रहती है, जिसके माध्यम से लोगों को सरकार की नई-नई योजनाओं की जानकारी भी मिलती रहती है।
ग्रामीणों को भी हो रही सहुलियत
‘छऊ’ नृत्य के माध्यम से यहां के कलाकार आत्मनिर्भर भारत बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ एवं स्वच्छता अभियान झारखंड सुदूर गांवों में चला रहे हैं, जिससे इस दुर्लभ कला का तो प्रचार प्रसार हो ही रहा है, साथ ही साथ केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ लेने में लोगों को सहुलियत हो रही है।