December 23, 2024

‘मिसाइल मैन’ के दिखाए राह पर चल कर एयरोस्पेस की दुनिया में भारत अब खुद बना रहा रास्ता

नईदिल्ली 11 सितम्बर। रक्षा क्षेत्र और अंतरिक्ष की दुनिया में आत्मनिर्भरता के जिस पथ पर भारत अग्रसर है, उसकी नींव काफी पहले रखी जा चुकी थी। कहीं न कहीं इसका श्रेय भारत रत्न और ‘मिसाइल मैन’ के रूप में पहचाने जाने वाले भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को जाता है, जिन्होंने भारत के परमाणु शक्ति संपन्न देश बनाने में अहम भूमिका निभाई। पूर्व राष्ट्रपति डा.अब्दुल कलाम की आज यानि 27 जुलाई को पुण्यतिथि है। समस्त देश उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है और उन्हें याद कर रहा है। लेकिन आज उन्हें इसलिए भी याद किया जाना चाहिए क्योंकि उन्हीं की बदौलत आज भारत लगातार एयरोस्पेस में अपनी बढ़त हासिल करता जा रहा है। आइए जानते हैं कि महान वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने किस तरह देश को आत्मनिर्भरता का मार्ग दिखाया…

डॉ. कलाम की प्रणाली के सहारे नया इतिहास रचने की तैयारी में भारत

डॉ. कलाम के दिए मंत्र पर ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल के कई संस्करण लांच करने के बाद अब भारत ब्रह्मोस-एनजी के नाम से हाइपरसोनिक संस्करण विकसित करने की राह पर है। यानि ‘मिसाइल मैन’ की दी हुई प्रणाली के सहारे भारत हवा में एक और लक्ष्य साधकर नया इतिहास रचने की तैयारी कर रहा है। भारत अगले चार से पांच वर्षों में दुनिया की सबसे तेज पूर्ण हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली विकसित कर लेगा।

डॉ. कलाम ने भारत के लिये एयरोस्पेस दुनिया में रास्ते खोले

भारत में मिसाइलों का विकास करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (आईजीएमडीपी) बनाकर डॉ. कलाम को मुख्य कार्यकारी नियुक्त किया गया। इसके बाद उन्होंने मिसाइल प्रणाली देकर भारत के लिए एयरोस्पेस की दुनिया में रास्ते खोले। उन्होंने इस मिशन के तहत अग्नि सहित कई मिसाइलों को विकसित करने में प्रमुख भूमिका निभाई। सतह से सतह पर मार करने वाली मध्यवर्ती श्रेणी की बैलिस्टिक मिसाइल पृथ्वी का विकास किया। इसी के बाद रूस तथा भारत ने संयुक्त रूप से ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल का विकास किया। इस परियोजना में रूस प्रक्षेपास्त्र तकनीक उपलब्ध करवा रहा है और उड़ान के दौरान मार्गदर्शन करने की क्षमता भारत ने विकसित की है। भारत में पहले बनाई गई मिसाइलों के मुकाबले सबसे आधुनिक ब्रह्मोस ने भारत को मिसाइल तकनीक में अग्रणी देश बना दिया। इसी के बाद भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना इसका इस्तेमाल कर रही हैं।

ब्रह्मोस मिसाइलों की नई पीढ़ी विकसित करने की योजना

डीआरडीओ ने पीजे–10 परियोजना के तहत सामान्य ब्रह्मोस मिसाइल को स्वदेशी बूस्टर के साथ 400 किमी से अधिक दूरी तक मारक क्षमता वाली बनाकर 30 सितम्बर 2020 को परीक्षण किया। इसके बाद 500 किमी की रेंज वाली ब्रह्मोस-ए मिसाइल का संशोधित एयर-लॉन्चेड वेरिएंट बनाया, जिसे सुखोई-30 एमकेआई से लॉन्च किया जा सकता है। इसे 500 से 14 हजार मीटर (1,640 से 46,000 फीट) की ऊंचाई से छोड़ा जा सकता है। ब्रह्मोस के कई संस्करण लांच करने के बाद अब भारत और रूस संयुक्त- रूप से 600 किमी-प्लस रेंज के साथ ब्रह्मोस मिसाइलों की एक नई पीढ़ी विकसित करने की योजना बना रहे हैं, जिनमें पिन-पॉइंट सटीकता के साथ लक्ष्यों को हिट करने की क्षमता होगी।

हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली की जा रही विकसित

डीआरडीओ के प्रमुख डॉ. जी सतीश रेड्डी ने एक साक्षात्कार में बताया कि भारत अगले चार से पांच वर्षों में दुनिया की सबसे तेज पूर्ण -हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली विकसित कर लेगा। इसके लिए 7 सितम्बर 2020 को हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल का परीक्षण भी पूरा कर लिया गया है। मिसाइल को हाइपरसोनिक गति देने के लिए डीआरडीओ ने स्क्रैमजेट इंजन विकसित करके परीक्षण कर लिया है, जो इसे हवा में सांस लेने और फिर इसे जलाने में मदद करता है। रेड्डी ने कहा कि मौजूदा ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली की तुलना में हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल की गति कम से कम दोगुनी से ज्यादा होगी। इसके साथ ही देश ने दुश्मन के रडार, संचार साइटों और अन्य आरएफ उत्सर्जक लक्ष्यों को बेअसर करने के लिए लंबी दूरी की हवा से प्रक्षेपित एंटी-रेडिएशन मिसाइल विकसित करने की स्वदेशी क्षमता हासिल कर ली है। इससे भारतीय वायु सेना को लड़ाकू विमानों के लिए सामरिक क्षमता मिलेगी।

ब्रह्मोस का एक मिनी वर्जन हो रहा तैयार

ब्रह्मोस-एनजी (नेक्‍स्‍ट जेनरेशन) जो कि वर्तमान मिसाइल का एक मिनी वर्जन है, डिवेलप की जा रही है। ब्रह्मोस-एनजी (नेक्स्ट जनरेशन) हाइपरसोनिक संस्करण का वजन 2.55 टन से घटाकर लगभग 1.5 टन किये जाने की योजना है। इसकी लंबाई 5 मीटर और व्यास 50 सेमी. होगा यानि यह पहले वाली मिसाइल से तीन मीटर छोटी होगी। ब्रह्मोस-एनजी के पास अपने पूर्ववर्ती की तुलना में कम आरसीएस (रडार क्रॉस सेक्शन) होगा, जिससे इसका पता लगाना दुश्मन की वायु रक्षा प्रणालियों के लिए कठिन हो जाएगा। ब्रह्मोस-एनजी में लैंड, एयर, शिप-बॉर्न और सबमरीन ट्यूब-लॉन्च वेरिएंट होंगे। इसका पहला परीक्षण 2022-24 में होने के बाद वर्ष 2024 में भारतीय सेनाओं को इस्तेमाल के लिए दिए जाने की उम्मीद है। यह मिसाइल सुखोई-30 एमकेआई, मिकोयान मिग-29 के, एचएएल तेजस और फ्रांसीसी फाइटर जेट राफेल का हाथ थामेगी। सुखोई एमकेआई तीन मिसाइल ले जाएगा जबकि अन्य लड़ाकू विमान एक-एक ले जाएंगे.

Spread the word