December 23, 2024

हसदेव अरण्यः जल, जंगल, जमीन बचाने एक दशक से जूझ रहे वनवासी, सफलता अभी अधूरी है और मंजिल अभी भी कोसों दूर

गेंदलाल शुक्ल
कोरबा 16 नवम्बर। छत्तीसगढ़ के वनवासी बाहुल्य कोरबा और सरगुजा क्षेत्र में जल, जंगल और जमीन बचाने के लिए एक दशक लम्बा संघर्ष समाप्त होता नजर नहीं आ रहा है। यहां के वनवासी कोयला उत्खनन के लिए जैव-विविधता से परिपूर्ण सघन वनों, जीवन दायिनी जल स्त्रोत और अपने पुरखों के खून-पसीने से सींच कर तैयार किये उर्वर जमीन के संरक्षण के लिए संघर्षरत हैं। इस लम्बी लड़ाई में उन्हें हाल ही में बड़ी सफलता मिली है। छत्तीसगढ़ सरकार ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में समाहित कोरबा जिले के 14 कोल ब्लाक को उत्खनन क्षेत्र की परिधि से बाहर कर दिया है और 1995.48 हेक्टेयर क्षेत्रफल में एलीफेन्ट रिजर्व स्थापना की घोषणा की है। लेकिन हसदेव अरण्य के सरगुजा के 09 कोल ब्लाक अभी खनन क्षेत्र में शामिल हैं। इसके अलावे 07 नये कोल ब्लाक और चिन्हांकित किये गये हैं। इस तरह हसदेव अरण्य के वनवासियों को मिली सफलता अभी अधूरी है और उनकी मंजिल अभी भी कोसों दूर है।
छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य, दक्षिण सरगुजा, सूरजपुर जिला और उत्तरी कोरबा जिला में अवस्थित है। हसदेव नदी पर मिनीमाता बांगो बांध का निर्माण किया गया है। बांध का कैचमेंन्ट एरिया हसदेव अरण्य ही है। बांगो बांध से जहां कोरबा, जांजगीर-चाम्पा और रायगढ़ जिले में विस्तृत भू-भाग की कृषि भूमि की सिंचाई होती है, वहीं लगभग 10,000 (दस हजार) मेगावाट क्षमता के ताप विद्युत गृहों सहित लाखों नागरिकों को पेयजल की आपूर्ति की जाती है। हसदेव अरण्य जंगली हाथियों का रहवास और विचरण क्षेत्र भी है। इसके सिवा इस क्षेत्र में दूसरे वन्य प्राणी और औषधीय पेड़-पौधों की भी प्रचूरता है। महत्वपूर्ण यह भी है कि हसदेव अरण्य के भू-गर्भ में बड़ी मात्रा में कोयला का भण्डार है, जो वर्तमान तक ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत बना हुआ है। हसदेव अरण्य के समृद्ध वन का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वर्ष -2010 में केन्द्रीय वन, पर्यावरण और जलवायुु परिवर्तन मंत्रालय ने इसे नो गो एरिया घोषित किया था।
अधिकारिक जानकारी के अनुसार करीब 30 वर्ष पहले हसदेव अरण्य में 23 कोल ब्लाक की खोज की गयी थी। इनमें 14 कोल ब्लाक कोरबा जिला और 09 कोल ब्लाक सरगुजा एवं सूरजपुर जिले में हैं। इससे पहले कोरबा जिले का चोटिया कोल ब्लाक प्रकाश इण्डस्ट्रीज, जांजगीर-चाम्पा को आबंटित किया गया था, जिसे बाद में निरस्त कर तीन वर्ष पहले भारत एल्युमिनियम कंपनी (बालको) कोरबा को दिया गया है। इसके अलावे राजस्थान सरकार को 05 और छत्तीसगढ़ एवं आंध्रप्रदेश सरकार को एक-एक कोल ब्लाक का आबंटन किया गया है। पूर्व से आबंटित 07 कोल ब्लाक में परसा ईस्ट और केते वासन से राजस्थान सरकार कोयला उत्खनन कर रही है। चोटिया कोल ब्लाक से भी पूर्व से उत्खनन की जा रही है। मगर परसा और केते विस्तार (राजस्थान), मदनपुर साऊथ (आंध्रप्रदेश) और पतुरियां डांड़-गिद्धमुड़ी (छत्तीसगढ़) में कोयला उत्खनन आरंभ नहीं हुआ है। इसमें परसा कोल ब्लाक से कोयला उत्खनन की अनुमति अक्टूबर-2021 में केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्त मंत्रालय ने जारी की है।
हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल ब्लाक आबंटन की प्रक्रिया आरंभ होने के साथ ही प्रभावित क्षेत्र के वनवासियों ने जल, जंगल, जमीन और सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा के लिए कोयला उत्खनन का विरोध आरंभ कर दिया। वर्ष 2010 से लेकर अब तक हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के बेनर तले शांतिपूर्ण आन्दोलन चल रहा है। इस दौरान राज्य और केन्द्र शासन के स्तर पर अनेक प्रयास किये गये। वनवासियों के आन्दोलन का ही परिणाम था कि जून-2015 में कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी, प्रदेश कांग्रेस की पूरी टीम के साथ मदनपुर गांव पहुंचे और उन्होंने सार्वजनिक मंच से हसदेव अरण्य की रक्षा करने की घोषणा की। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी ने हसदेव अरण्य बचाओ आन्दोलन का समर्थन किया और प्रदेश में सरकार बनने पर इस क्षेत्र में कोयला उत्खनन की अनुमति नहीं देने का वायदा किया।
छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के संयोजक और पर्यावरण कार्यकर्ता आलोक शुक्ला का आरोप है कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नीत सरकार अब अपने वायदे से मुकर रही है। उसने हसदेव अरण्य में कोयला उत्खनन की अनुमति देना प्रारंभ कर दिया है। राजस्थान सरकार को हाल ही में परसा कोल ब्लाक से उत्खनन की अनुमति दी गयी है। परसा कोल ब्लाक से खनन की अनुमति देने की जानकारी सामने आने के बाद हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने सरगुजा के फतेहपुर गांव से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर तक पद यात्रा निकाली। 04 अक्टूबर 2021 को शुरू हुई पदयात्रा 13 अक्टूबर 2021 को रायपुर पहुंची, जहां राज्यपाल और मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा गया। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसी दिन लेमरू हाथी रिजर्व का क्षेत्रफल 450 वर्ग किलोमीटर से बढ़ाकर 1995.48 वर्ग किलोमीटर करने की घोषणा की। इस घोषणा से कोरबा जिले के 14 कोल ब्लाक उत्खनन क्षेत्र से बाहर हो गये। 22 अक्टूबर 2021 को राज्य शासन ने इस संबंध में राजपत्र में अधिसूचना का भी प्रकाशन कर दिया है। इसके साथ ही हसदेव अरण्य के एक बड़े भू-भाग की सुरक्षा सुनिश्चित हो गयी है।
लेकिन इस निर्णय से भी हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के आन्दोलन पर विराम नहीं लगा है। हसदेव अरण्य के सरगुजा के 09 कोल ब्लाक अभी भी कोयला उत्खनन के लिए सुरक्षित हैं। इसके अलावे हाल के दिनों में इस क्षेत्र में 07 नये कोल ब्लाक चिन्हित किये गये हैं। ताजा हालात यह है कि सरगुजा क्षेत्र में हसदेव अरण्य की परिधि में 16 क ोल ब्लाक हैं, जिनसे कोयला का उत्खनन किया जा सकता है। इस संघर्ष में प्रारंभ से सक्रिय पर्यावरण कार्यकर्ता आलोक शुक्ला का कहना है कि जब तक सम्पूर्ण हसदेव अरण्य सुरक्षित नहीं हो जाता, वनवासियों का आन्दोलन जारी रहेगा। उन्होंने कहा हसदेव अरण्य क्षेत्र की समस्त कोयला परियोजना निरस्त किये जाने चाहिये। ग्राम सभा की सहमति के बिना हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत किये गये सभी भूमि अधिग्रहण निरस्त होना चाहिये। पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी कानून में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया से पूर्व ग्राम सभा से अनिवार्य सहमति के प्रावधान को लागू किया जाये।
ा है। यहां के वनवासी कोयला उत्खनन के लिए जैव-विविधता से परिपूर्ण सघन वनों, जीवन दायिनी जल स्त्रोत और अपने पुरखों के खून-पसीने से सींच कर तैयार किये उर्वर जमीन के संरक्षण के लिए संघर्षरत हैं। इस लम्बी लड़ाई में उन्हें हाल ही में बड़ी सफलता मिली है। छत्तीसगढ़ सरकार ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में समाहित कोरबा जिले के 14 कोल ब्लाक को उत्खनन क्षेत्र की परिधि से बाहर कर दिया है और 1995.48 हेक्टेयर क्षेत्रफल में एलीफेन्ट रिजर्व स्थापना की घोषणा की है। लेकिन हसदेव अरण्य के सरगुजा के 09 कोल ब्लाक अभी खनन क्षेत्र में शामिल हैं। इसके अलावे 07 नये कोल ब्लाक और चिन्हांकित किये गये हैं। इस तरह हसदेव अरण्य के वनवासियों को मिली सफलता अभी अधूरी है और उनकी मंजिल अभी भी कोसों दूर है।
छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य, दक्षिण सरगुजा, सूरजपुर जिला और उत्तरी कोरबा जिला में अवस्थित है। हसदेव नदी पर मिनीमाता बांगो बांध का निर्माण किया गया है। बांध का कैचमेंन्ट एरिया हसदेव अरण्य ही है। बांगो बांध से जहां कोरबा, जांजगीर-चाम्पा और रायगढ़ जिले में विस्तृत भू-भाग की कृषि भूमि की सिंचाई होती है, वहीं लगभग 10,000 (दस हजार) मेगावाट क्षमता के ताप विद्युत गृहों सहित लाखों नागरिकों को पेयजल की आपूर्ति की जाती है। हसदेव अरण्य जंगली हाथियों का रहवास और विचरण क्षेत्र भी है। इसके सिवा इस क्षेत्र में दूसरे वन्य प्राणी और औषधीय पेड़-पौधों की भी प्रचूरता है। महत्वपूर्ण यह भी है कि हसदेव अरण्य के भू-गर्भ में बड़ी मात्रा में कोयला का भण्डार है, जो वर्तमान तक ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत बना हुआ है। हसदेव अरण्य के समृद्ध वन का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वर्ष -2010 में केन्द्रीय वन, पर्यावरण और जलवायुु परिवर्तन मंत्रालय ने इसे नो गो एरिया घोषित किया था।
अधिकारिक जानकारी के अनुसार करीब 30 वर्ष पहले हसदेव अरण्य में 23 कोल ब्लाक की खोज की गयी थी। इनमें 14 कोल ब्लाक कोरबा जिला और 09 कोल ब्लाक सरगुजा एवं सूरजपुर जिले में हैं। इससे पहले कोरबा जिले का चोटिया कोल ब्लाक प्रकाश इण्डस्ट्रीज, जांजगीर-चाम्पा को आबंटित किया गया था, जिसे बाद में निरस्त कर तीन वर्ष पहले भारत एल्युमिनियम कंपनी (बालको) कोरबा को दिया गया है। इसके अलावे राजस्थान सरकार को 05 और छत्तीसगढ़ एवं आंध्रप्रदेश सरकार को एक-एक कोल ब्लाक का आबंटन किया गया है। पूर्व से आबंटित 07 कोल ब्लाक में परसा ईस्ट और केते वासन से राजस्थान सरकार कोयला उत्खनन कर रही है। चोटिया कोल ब्लाक से भी पूर्व से उत्खनन की जा रही है। मगर परसा और केते विस्तार (राजस्थान), मदनपुर साऊथ (आंध्रप्रदेश) और पतुरियां डांड़-गिद्धमुड़ी (छत्तीसगढ़) में कोयला उत्खनन आरंभ नहीं हुआ है। इसमें परसा कोल ब्लाक से कोयला उत्खनन की अनुमति अक्टूबर-2021 में केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्त मंत्रालय ने जारी की है।
हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल ब्लाक आबंटन की प्रक्रिया आरंभ होने के साथ ही प्रभावित क्षेत्र के वनवासियों ने जल, जंगल, जमीन और सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा के लिए कोयला उत्खनन का विरोध आरंभ कर दिया। वर्ष 2010 से लेकर अब तक हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के बेनर तले शांतिपूर्ण आन्दोलन चल रहा है। इस दौरान राज्य और केन्द्र शासन के स्तर पर अनेक प्रयास किये गये। वनवासियों के आन्दोलन का ही परिणाम था कि जून-2015 में कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी, प्रदेश कांग्रेस की पूरी टीम के साथ मदनपुर गांव पहुंचे और उन्होंने सार्वजनिक मंच से हसदेव अरण्य की रक्षा करने की घोषणा की। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी ने हसदेव अरण्य बचाओ आन्दोलन का समर्थन किया और प्रदेश में सरकार बनने पर इस क्षेत्र में कोयला उत्खनन की अनुमति नहीं देने का वायदा किया।
छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के संयोजक और पर्यावरण कार्यकर्ता आलोक शुक्ला का आरोप है कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नीत सरकार अब अपने वायदे से मुकर रही है। उसने हसदेव अरण्य में कोयला उत्खनन की अनुमति देना प्रारंभ कर दिया है। राजस्थान सरकार को हाल ही में परसा कोल ब्लाक से उत्खनन की अनुमति दी गयी है। परसा कोल ब्लाक से खनन की अनुमति देने की जानकारी सामने आने के बाद हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने सरगुजा के फतेहपुर गांव से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर तक पद यात्रा निकाली। 04 अक्टूबर 2021 को शुरू हुई पदयात्रा 13 अक्टूबर 2021 को रायपुर पहुंची, जहां राज्यपाल और मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा गया। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसी दिन लेमरू हाथी रिजर्व का क्षेत्रफल 450 वर्ग किलोमीटर से बढ़ाकर 1995.48 वर्ग किलोमीटर करने की घोषणा की। इस घोषणा से कोरबा जिले के 14 कोल ब्लाक उत्खनन क्षेत्र से बाहर हो गये। 22 अक्टूबर 2021 को राज्य शासन ने इस संबंध में राजपत्र में अधिसूचना का भी प्रकाशन कर दिया है। इसके साथ ही हसदेव अरण्य के एक बड़े भू-भाग की सुरक्षा सुनिश्चित हो गयी है।
लेकिन इस निर्णय से भी हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के आन्दोलन पर विराम नहीं लगा है। हसदेव अरण्य के सरगुजा के 09 कोल ब्लाक अभी भी कोयला उत्खनन के लिए सुरक्षित हैं। इसके अलावे हाल के दिनों में इस क्षेत्र में 07 नये कोल ब्लाक चिन्हित किये गये हैं। ताजा हालात यह है कि सरगुजा क्षेत्र में हसदेव अरण्य की परिधि में 16 क ोल ब्लाक हैं, जिनसे कोयला का उत्खनन किया जा सकता है। इस संघर्ष में प्रारंभ से सक्रिय पर्यावरण कार्यकर्ता आलोक शुक्ला का कहना है कि जब तक सम्पूर्ण हसदेव अरण्य सुरक्षित नहीं हो जाता, वनवासियों का आन्दोलन जारी रहेगा। उन्होंने कहा हसदेव अरण्य क्षेत्र की समस्त कोयला परियोजना निरस्त किये जाने चाहिये। ग्राम सभा की सहमति के बिना हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत किये गये सभी भूमि अधिग्रहण निरस्त होना चाहिये। पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी कानून में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया से पूर्व ग्राम सभा से अनिवार्य सहमति के प्रावधान को लागू किया जाये।

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