मिर्ची @ गेंदलाल शुक्ल
गुरू गुड़- चेला शक्कर
गुरू गुड़ ही रह गये और चेला शक्कर हो गये। कोरबावासी अभी तक किताबों, कहानी- किस्सों में ही इस कहावत को पढ़ते सुनते थे। लेकिन अब वे अपनी आंखों से इसे चरिचार्थ होते देख रहे हैं। जिले के दो गुरूओं और उनके चेलों की चर्चा हर जुबान पर है। चेले मदमस्त हाथी की तरह शहर की सड़कों में विचर रहे हैं। गुरू उन पर काबू पाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। दोनों गुरूओं को लम्बा राजनीतिक अनुभव है। उन्होंने सत्ता के अनेक पायदानों को भी नापा है। आमतौर पर दोनों गुरूओं की छबि ईमानदार और शरीफ राजनेता की है। लेकिन चेला चुनने में चुक गये। उन्होंने ऐसे-ऐसे चेले बनाये, जो आखों से काजल समेट ले जायें और पता ही नहीं चले। ऐसा ही दोनों गुरूओं के साथ हो गया। देर से सही दोनों गुरूओं को सच्चाई का एहसास हो गया है। लेकिन करें भी तो क्या? मियां शराफत है कि दामन छोड़ने को तैयार ही नहीं है और उसे छोड़े बिना दोनों का उद्धार भी नहीं है। चलिये, आगे-आगे देखते हैं- होता है क्या?
आखिर कब होगा न्याय?
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं- न्याय में इतना विलम्ब नहीं होना चाहिये कि वो अन्याय लगने लगे। राजस्थान में 22 साल पहले घटित भंवरीदेवी प्रकरण पर चर्चा करते हुए विख्यात वामपंथी विचारक हिमांशु कुमार लिखते हैं -हमारी न्याय व्यवस्था की, हमारे लोकतंत्र की जब भी परीक्षा की घड़ी आती है, तभी यह फेल हो जाता है। आपको बता दें कि पीड़ित भंवरी देवी 22 साल से इंसाफ के लिए न्यायालयों का चक्कर काट रही है और उम्र के अंतिम पड़ाव में पहुंच चुकी है। पर न्याय है, कि उससे अभी भी कोसों दूर है।
बहरहाल इन दोनों प्रसंगों का उल्लेख इसलिए कि कोरबा में भी एक मामला इसी तर्ज पर लम्बित है। सुप्रीम कोर्ट भले ही कहता है, कि चुनाव संंबंधी मामला 06 माह के भीतर निपट जाना चाहिये। लेकिन ऐसा होता नहीं। नगर पालिक निगम कोरबा के महापौर राजकिशोर प्रसाद की जाति का मामला कोरबा न्यायालय में 02 वर्ष से लंबित है। महापौर मूलरूप से बिहार के हैं। लेकिन उन्होंने छत्तीसगढ़ से ओ. बी. सी. का जाति प्रमाण-पत्र बना लिया और चुनाव लड़कर पहले पार्षद, फिर महापौर बन गये हैं। कोर्ट में उनके निर्वाचन को चुनौती दी गयी है। लेकिन प्रकरण को कोरोना की नजर लग गयी है? वर्चुअल सुनवाई हर मामले में तो नहीं हो सकती। लगता है, न्याय होते-होते पांच वर्ष तो बीत ही जायेगा? उसके बाद अगर चुनाव निरस्त होता भी है, तो क्या फर्क पड़ेगा? सवाल
भूपेश और मण्डल के सपनों पर राख
छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत के पिता और अविभाजित मध्यप्रदेश के कद्दावर कांग्रेस नेता – मंत्री स्व. बिसाहूदास महंत ने कोरबा-जांजगीर के किसानों की खुशहाली का सपना देखा था। उनके सतत प्रयास से हसदेव बांगो बांध का निर्माण हुआ। कोरबा-जांजगीर के किसान आज खुशहाल हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और तत्कालीन मुख्य सचिव आर. पी.मण्डल ने बांगो बांध के सतरेंगा डूबान में पर्यटन स्थल विकास का दो वर्ष पूर्व सपना देखा था। डी. एम. एफ. मद से 30 करोड़ रूपये खर्च कर इस सपने को साकार किया गया।
मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्य सचिव सतरेंगा प्रवास पर भी आये। सतरेंगा की अद्भूत छठा देख अभिभूत भी हुए। उम्मीद थी कि पूरे प्रदेश सहित देश भर से छत्तीसगढ़ आने वाले पर्यटक सतरेंगा जरूर आयेंगे। लेकिन अब मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्य सचिव के सपनों पर राख फेरने की तैयारी हो गयी है। राज्य की सत्ता के कथित करीबी ब्लैक स्मिथ कंपनी आने वाले दिनों में सतरेंगा की हरी-भरी वादियों को फ्लाई-एश से बदरंग कर देगा। सतरेंगा में कुछ ग्रामीणों की निजी जमीन की आड़ में आस-पास के हरे-भरे सघन वनों में लाखों टन फ्लाई एश डम्प कर देगा। दैत्याकार भारी वाहन सतरेंगा मार्ग पर प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना की सड़क को रौंदते हुए दिन रात दौड़ते नजर आयेंगे। पी. एम. जी. एस. वाई की सड़कों पर भारी वाहनों का आवागमन प्रतिबंधित है। लेकिन कथित रूप से राज्य सत्ता के करीबी कंपनी के काम में रोक -टोक कौन करेगा? वर्तमान में जिले की सांसद श्रीमती ज्योत्सना महंत हैं। वे स्वर्गीय बिसाहू दास महंत की पुत्र वधु हैं। क्या वे बांगो बांध को फ्लाई एस के पटाव से बचाने का प्रयास करेंगी? राजस्व मंत्री भी कोरबा से हैं। उनका विभाग, पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाले कार्यों की अनुमति कैसे और क्यों देता है? क्या पूछ सकते हैं? रामपुर विधायक ननकीराम कंवर जरूर जन-आन्दोलन की बात कर रहे हैं। लेकिन तरदा और नोनबिर्रा में लाखों टन फ्लाई एश निपटान के बाद भी प्रभावी विरोध नहीं कर पाये हैं। ऐसे में उनके आन्दोलन का क्या हश्र होगा? सोचने की बात है।