कोल इंडिया का फरमान, नॉन पावर सेक्टर को होने वाली कोयले की आपूर्ति ठप्प
कोरबा 21 अप्रैल। अगर किसी उद्योग की स्थापना के लिए पहली शर्त बिजली है तो बिजली उत्पादन के लिए कोयला। सौभाग्य से छत्तीसगढ़ राज्य को प्रकृति ने कोयले के अकूत भंडार से नवाजा है। छत्तीसगढ़ राज्य के 250 से अधिक कैप्टिव विद्युत संयंत्रों पर आधारित उद्योगों के सुचारू संचालन के लिए प्रति वर्ष 32 मिलियन टन कोयले की आवश्यकता है जो कि एसईसीएल के उत्पादन का मात्र 19 प्रतिशत है। इन उद्योगों ने लगभग 4000 मेगावॉट के कैप्टिव पावर प्लांट स्थापित किए हैं जिनके लिए हर दिन लगभग 2 लाख टन कोयले की जरूरत है। तथ्यों के नजरिए से देश का 18 फीसदी कोयला छत्तीसगढ़ के पास है। यह लगभग 56 बिलियन टन के करीब है। देश के कोयला उत्पादन में एसईसीएल की भागीदारी 25 फीसदी है। इसके ज्यादातर भंडारों में पावर ग्रेड कोल पाया गया है।
देश की कुल क्षमता की बात करें तो यहां दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा भंडार है। परंतु विडंबना देखिए कि कोयले का आयात करने वाले देशों में हमारा स्थान दुनिया में तीसरे नंबर पर है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रही गतिविधियों ने कोयला को न सिर्फ महंगा कर दिया है बल्कि इसके आयात को भी पेचीदा बना दिया है। इन सब के बीच कोल इंडिया लिमिटेड सीआईएल ने अपने एक तुगलकी फरमान से देश के नॉन पावर सेक्टर को होने वाले कोयले की आपूर्ति को पूरी तरह से ठप्प कर दिया है। ऐसा तब हुआ है जबकि देश में कोयला उत्पादन के आंकड़ों में सुधार हो रहा है। अब सवाल यह है कि सीपीपी आधारित उद्योगों से जुड़े मानव संसाधन, उनसे जुड़े परिवारों और पूरी अर्थव्यवस्था का क्या होगा? देश ऊर्जा उत्पादन की बुनियादी जरूरतों से ही जूझ रहा है तो फिर आखिर किस भरोसे पर उद्योगों में निवेश करने वाले लोग आगे आएंगे? उद्योगों के सामने ऐसी चुनौती आखिर कैसे खड़ी हो गई जबकि हमारी सरकार देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने को लेकर न सिर्फ मजबूत दिखती है बल्कि पूरी दुनिया के सामने देश की साख यह कहकर बनाई जा रही है कि भारत ईज ऑफ डूइंग बिजनेस्य वाला देश है।
छत्तीसगढ़ राज्य के स्तर पर बात की जाए तो, प्रदेश के सीपीपी और नागरिकों के हितों की अनदेखी कर एसईसीएल कोयले की आपूर्ति लगातार बाहर के राज्यों को कर रहा है। 1 फरवरी, 2022 को जारी अपने एक परिपत्र के अनुसार एसईसीएल छत्तीसगढ़ में सीपीपी आधारित उद्योगों के उपभोक्ताओं को मंथली शेड्यूल्ड क्वांटिटी एमएसक्यू के मात्र 75 फीसदी कोयले का ऑर्डर बुक करने की सुविधा दे रहा था जबकि जमीनी सच्चाई यह थी कि उपभोक्ता एमएसक्यू का 75 फीसदी कोयला भी नहीं ले पा रहे थे। अब 14 अप्रैल, 2022 को एसईसीएल ने साउथ ईस्टर्न सेंट्रल रेलवे, बिलासपुर को एक पत्र लिखा है जिसका मजमून यह है कि रेल मोड से नॉन पावर सेक्टर को पूरी तरह से कोयला ठप्प कर दिया जाए ताकि पावर सेक्टर को मानसून के मौसम में भी कोयले की निरंतर आपूर्ति जारी रह सके। इसका दुष्प्रभाव यह है कि छत्तीसगढ़ के सीपीपी आधारित उद्योग अब तालाबंदी की स्थिति में पहुंच गए हैं। जो सीपीपी फिलहाल उत्पादन में हैं उनके पास दो-तीन दिन का कोयला बचा रह गया है। विडंबना यह है कि पिछले लगभग एक वर्ष से छत्तीसगढ़ के विभिन्न उद्योग संगठन छत्तीसगढ़ शासन के उच्च पदस्थ अधिकारियों तक कोयला संकट की बात पहुंचा रहे हैं बावजूद प्रदेश के नॉन पावर सेक्टर को बचाने की दिशा में प्रदेश सरकार के स्तर पर कोई ठोस पहल नहीं हुई। यदि तत्काल इस मुद्दे को नहीं सुलझाया गया तो राज्य में औद्योगिक अशांति की स्थितियां निर्मित होने की आशंका है। उद्योगों में कोयले के अभाव में तालाबंदी से हजारों नागरिकों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ेगा। देश में बेरोजगारी के आंकड़े में इससे वृद्धि ही होगी।
देश का नॉन पावर सेक्टर संकट के एक ऐसे भंवर में फंस गया है जिसकी परिणति आर्थिक अराजकता ही हो सकती है। केंद्र सरकार के मेक इन इंडिया्य का नारा नीतिगत पक्षाघात का शिकार होता दिख रहा है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने उद्योगों में निवेश करने के इच्छुक देश के नागरिकों को छत्तीसगढ़ को ष्पावर सरप्लस स्टेट्य और ष्रिसोर्स सरप्लस स्टेट्य जैसी संज्ञाओं के जरिए जो सब्जबाग दिखाया, वह भरम अब खत्म होने को है। कोरोना से आई मंदी के कारण वैश्विक दबावों को झेल रहे उद्योग अब केंद्र के साथ ही और राज्य सरकार की असंवेदनशीलता से कुचले जा रहा है। प्रदेश का कोयला देश के दूसरे राज्यों को जा रहा है और यहां के सीपीपी आधारित उद्योग कोयले की आपूर्ति को बाधित किए जाने को लेकर परेशान हैं।
छत्तीसगढ़ के नागरिकों का स्पष्ट मानना है कि प्रदेश के उद्योगों को संसाधनों की कृत्रिम कमी के चलते बंदी के मुहाने पर नहीं जाने दिया जाएगा। राज्य के संसाधनों पर छत्तीसगढ़ की जनता का पहला अधिकार है। किसी भी सूरत में उनके इस अधिकार पर प्रदेश के बाहर के उद्योगों की सर्वोच्चता को स्वीकार नहीं किया जाएगा। एसईसीएल प्राथमिकता के आधार पर प्रदेश के उद्योगों को उनकी जरूरत का पूरा कोयला देने के लिए बाध्य है।