September 12, 2024

कोरबा के केसला में बायो डायवर्सिटी पार्क दो महीने में होगा तैयार

कोरबा 24 मई। वन मंडल कोरबा के बालको के केसला में 200 हेक्टेयर में बन रहा बायो डायवर्सिटी पार्क 2 महीने के भीतर तैयार हो जाएगा। पहले इसमें कोरबा रेंज को भी शामिल किया गया था। अब सभी 6 रेंज में बायो डायवर्सिटी पार्क बनाने का निर्णय लिया गया है।

पार्क के क्षेत्र को 4 किलोमीटर तक फेंसिंग कर ली गई है। यहां 60 से अधिक प्रजाति की तितलियां और 70 से अधिक प्रजाति की पक्षी देखी गई है। इसके अलावा 500 से अधिक वनस्पतियां पाई जाती है।

फुटका पहाड़ से लगा यह जंगल जैव विविधताओं से भरा पड़ा है।, जिसमें नदी, तालाब व छोटे झरने भी हैं। कुछ पहाड़ी हिस्सा नदी का किनारा और कुछ दलदली हिस्सा भी है। पथरीली जगह में देव स्थल है। ढेंगुर नाला में विभिन्न तरह की मछलियां और जलीय जंतु भी पाए जाते हैं।

सबसे बड़ी विशेषता इस क्षेत्र में पाई जाने वाली तितलियों की कई प्रजातियों की है। जंगल सुरक्षित होने पर संख्या और बढ़ेगी। जंगल में बांस के पौधे बहुतायत हैं। केसला में ढेंगूर नदी पत्थरों को काटकर खूबसूरत गार्ज बनाती है जो दर्शनीय है।

वन विभाग ने 2 साल पहले 500 हेक्टेयर क्षेत्र को बायो डायवर्सिटी बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन बीच में निजी भूमि की वजह से कोरबा रेंज को अलग कर दिया गया। यहां पर्यटकों के लिए पैगोडा का निर्माण भी कराया जाएगा। इसके विकास के लिए सरकार से डेढ़ करोड़ रुपए की मंजूरी मिली है।

हिमालय की तराई में पाई जाने वाली तितलियां भी यहां
यहां तितलियों की बार्न, बैरनेट सुलेय्ड नाविक, तावी कोस्टर, ग्रे-काउंट, कैस्टर, ग्रेट लेओमन पैंसी, ब्लू पैंसी आम नाविक, कमांडर लेपर्ड, बुश ब्राउन में ब्लू टाइगर, टाइगर बुश ब्राउन, काउ प्लेन टाइगर, ग्रास यलो, डार्क ग्रास ब्लू, सिल्वर लाइन प्रजाति पाई गई हैं।

जल्द तैयार हो जाएगा बायो डायवर्सिटी पार्क: डीएफओ

कोरबा वन मंडल की डीएफओ प्रियंका पांडेय का कहना है कि केसला में शीघ्र ही बायो डायवर्सिटी पार्क बनकर तैयार हो जाएगा। इस पर काम चल रहा है। साथ ही कोरबा के साथ कुदमुरा, करतला, पसरखेत, लेमरू रेंज में भी पार्क बनाने की योजना है।

भालू, हिरण, खरगोश, लकड़बग्घा व सियार अधिक

घना जंगल होने की वजह से क्षेत्र में जंगली जानवरों की अनेक प्रजातियां पाई जाती है। हिरण, खरगोश, लकड़बग्घा, दुर्लभ पैंगोलीन, ऊदबिलाव देखे गए हैं। हाथी भी क्षेत्र में आते जाते रहते हैं। हेलो की हाथी अधिक दिनों तक नहीं रहते हैं। वन्यप्राणी विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कुमार का कहना है कि पहाड़ों की तराई में ऐसी कई तितलियां पाई जाती है, जो हिमालय के तराई में भी पाई जाती है।

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