November 21, 2024

परिवहन के अभाव में आंगनबाड़ी तक नहीं पहुंच रहा पोषण आहार

कोरबा 7 जून। राज्य शासन ने रायपुर में तैयार रेडी टू इट को जिले के दस परियोजना कार्यालयों में डंप कर दिया है। यहां से 2246 आंगनबाड़ी केंद्रों तक पहुंचाने के लिए परिवहन की सुविधा नहीं है। परियोजना अधिकारी अब पोषण सामग्री खुद के खर्चे से उठाव के लिए कार्यकर्ताओं पर दबाव बना रहे हैं। ऐसे में कार्यकताओं ने परिवहन सुविधा की राशि अथवा वाहन उपलब्ध कराने की मांग कलेक्टर से की है।

जून माह की शुरूआत को सप्ताह भर का समय होने जा रहा है लेकिन अब तक आंगनबाड़ी में शुष्क पोषण आहार का वितरण नहीं हुआ हैं। शासन की ओर से प्रतिमाह पोषण आहार दिया जा रहा है लेकिन परियोजना से आंगनबाड़ी तक उसे पहुंचाने के लिए अभी तक व्यवस्था सुनिश्चत नहीं की गई। मामले में निराकरण की मांग लेकर छत्तीसगढ़ आंगनबाड़ी संगठन की कार्यकताएं कलेक्ट्रेट पहुंचीं थीं। संगठन सचिव सुमन सारथी ने बताया कि पोषण आहार को पिछले माह भी परियोजना कार्यालय डंप किया गया था। अधिकारियों ने कहा था कार्यकर्ता अपने खर्च से रेडी टू इट का उठाव कर केंद्र तक ले जाएं। उन्हे उठाव के बदले परिवहन व्यय दिया जाएगा। अभी तक राशि का भुगतान नहीं किया गया है और फिर उठाव कर करने के कार्यकर्ताओं पर दबाव बनाया जा रहा। सचिव ने बताया कि पोषण आहार पहले महिला समूह तैयार करती थीं। अब इसकी जिम्मेदारी राज्य शासन ने स्वयं ले ली है। बीते माह तक पोषण आहार को पहुंचानें का जो राशि व्यय हुआ हैए वह अभी तक नहीं मिली है। कार्यकर्ताओं ने कलेक्टर से मांग की है कि रेडी टू इट पोषण आहार को पहले की तरह परियोजना से आंगनबाड़ी केंद्रों तक पहुंचाने की व्यवस्था किया जाए। जिससे गर्भवती, शिशुवती माताओं के अलावा बच्चों को समय पर पोषण आहार मिल सके। कलेक्ट्रेट पहुंची जिला सचिव के साथ अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे।     

वेतन विसंगति को दूर करने मांग फिर से उठने लगी है। आठ जून को परियोजना कार्यालयों के समझ आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका मांग पूरा करने के लिए एक दिवसीय रैली और धरना प्रदर्शन करेंगी। इसकी अनुमति के लिए छत्तीसगढ़ आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका संघ की जिला अध्यक्ष वीणा साहू जिला प्रशासन को पत्र सौंपा है। कलेक्ट्रेट पहुंची वीणा साहू ने बताया कि राज्य सरकार ने चुनाव के समय भी कार्यकर्ता व सहायिकाओं से कहा था कि सरकार गठन के बाद उन्हे नियमित किया जाए। तीन साल गुजरने के बाद नियमितीकरण तो दूर वेतन विसंगति को भी दूर नहीं किया गया है।

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