November 7, 2024

विविध @ डॉ. सुधीर सक्सेना

विक्रम साराभाई: अंतरिक्ष में ख़ाब खिला

डॉ. सुधीर सक्सेना

वे बदनसीब होते हैं, जो कभी ख़ाब नहीं देखते हैं। वे खुशनसीब होते हैं, जो ख़ाब देखते हैं और जिनके ख़ाब फूलों के नाईं खिल उठते हैं। मगर यह सच है कि ख़ाबों को हकीकत में बदलना आसां नहीं होता। इसके लिए प्रतिभा, प्रयास और लगन चाहिए (जज्बा ही नहीं, जुनूं की भी दरकार होती है ख़ाबों को हकीकत में बदलने के वास्ते…)

अंतरिक्ष अपने आप में एख ख़ाब है, रहस्य और उत्तेजना से भरा हुआ और उसमें छलांग उससे भी बड़ा ख़ाब, पुरजोखिम लेकिन खास और खूबसूरत। यह अंतरिक्ष ही है, जहां से धरती बहुत हसीन दीखती है और हिन्दुस्तान सारे जहां से अच्छा…

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की बात करें तो एख लंबी गाथा उभरती है और उभरता है एक नाम सात सुरों की तरह मीठा और सात रंगों की तरह खूबसूरत चमकीला… सात अक्षरों से बुना हुआ नाम… विक्रम साराभाई…

भारत को अंतरिक्ष कार्यक्रम साराभआई की देन है। साराभआई अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को विश्व के मानचित्र पर लाए। उनका मस्तिष्क वैज्ञानिक का था और हृदय कलाकार का। विज्ञान और कला के मणिकांचन योग का पर्याय थे विक्रम साराभाई… उनके कार्यों की परिधि व्यापक थी। उनके योगदान का दायरा बड़ा था। कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स, औषधि, नाभिकीय ऊर्जा… सब कुछ इस दायरे में समाहित था। उनकी रुचियों का फलक भी बड़ा था। वहां ललित कलाओं की मौजूदगी थी। उनमें अपने विचारों को संस्थागत रूप देने की अद्भुत क्षमता थी। वे विनम्र और मिलनसार थे। शालीनता से वे लोगों का दिल जीत लेते थे और जैसा कि डॉ. सुबोध महंती कहते हैं : ‘‘साराभाई एक सृजनशील वैज्ञानिक के साथ-साथ एक सफल और अग्रदृष्टा उद्यमी, शिक्षाविद्, कला के पारखी, सामाजिक परिवर्तन के प्रखर समर्थक तथा अग्रणी प्रबंध-शिक्षक भी थे।’’ जैसा कि नोबेल विजेता फ्रांसीसी वैज्ञानिक पियरे क्यूरी ने कहा था, उनके लिए जीवन का प्रयोजन था जीवन को स्वप्न बनाना और स्वप्न को वास्तविकता में बदलना। साराभाई भी इसी मिट्टी के बने थे। एक कदम आगे बढ़कर उन्होंने औरों को स्वप्न देखना और उन्हें साकार करना भी सिखाया।

विक्रम साराभाई का जन्म 12 अगस्त, 1919 को अङमदाबाद के प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। पैतृक निवास ‘द रिट्रीट’। विभिन्न संकायों से जुड़े लोगों का घर पर आना-जाना लगा रहता था। गणमान्य व्यक्ति आते। नेता, उद्.योगपति, कलाकार। उद्यमिता को समर्पित लोग। नये विचार। नयी रोशनी। नयी संरचनाएं। नयी परंपराएं। मादाम मारिया मांटेसरी का असर मां सरलादेवी पर भी पड़ा। उन्होंने मांटेसरी स्कूल खोला। बालक विक्रम की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा यहीं हुई। फिर गुजरात कॉलेज से इंटर किया। प्रिय विषय विज्ञान। साधनों की कमी न थी, सो सन् 1937 में ब्रिटेन में कैम्ब्रिज के सेंट जॉन्स कॉलेज में दाखिला ले लिया। वहां से सन् 1940 में प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपोस करके निकले। द्वितीय विश्वसमर की वेला थी। लिहाजा भारत लौट आये और बैंगलुर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान से जुड़ गये। वहां उन्होंने चंद्रशेखर वेंकट रामन की निगरानी में ब्रह्माण्ड (कॉस्मिक) किरणों का अध्ययन प्रारंभ किया। कॉस्मिक किरणों के टाइम डिस्ट्रीब्यूशन पर उनका पहला शोधपत्र ‘प्रोसीडिंग्स आॅफ इंडियन एकेडमी आॅफ साइंसेज’ में प्रकाशित हुआ। सन् 1940 से 45 के दरम्यान उन्होंने ब्रह्माण्ड किरण विषयक जो अध्ययन किया, उसके गाइगर मूलर गणित सहित कॉस्मिक किरणों का समय वितरण भी शामिल है। प्रसंगवश उल्लेखनीय है कि उनकी देखरेख में 19 शोधार्थियों ने पीएचडी की और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में उनके 86 एकाकी या साझा शोधपत्र प्रकाशित हुए। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति पर साराभाई दोबारा कैंब्रिज गये और कॉस्मिक किरण भौतिकी में पीएचडी की डिग्री हासिल की। सन् 1947 में पीएचडी कर वे स्वदेश लौट आए, लेकिन ब्रह्मांड किरणों पर उनके अनुसंधान में कमी न आई। जनवरी, 1966 विमान हादसे में होमी जहांगीर भाभा के निधन के बाद उनसे परमाणु ऊर्जा आयोग की अध्यक्षता का दायित्व वहन करने का आग्रह किया गया। उस समय वे तीन जिम्मेदारियां संभाल रहे थे। एक तो वे भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला में निदेशक थे और ब्रह्माण्ड किरण भौतिकी के प्रेफेसर भी। वे स्वयं भी अनुसंधानरत थे और पीएचडी के छात्रों का निदेशन भी कर रहे थे। इसके अतिरिक्त वे अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम से संबंद्ध राष्ट्रीय समिति के भी अध्यक्ष थे। वहां उन्हें रॉकेट व अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की विकास परियोजनाओं को देखना होता था। इसके साथ ही रसायन और औषधि से संबद्ध व्यापारिक घरानों के लिए नीति निर्धारण, परिचालन, अनुसंधान और मूल्यांकन का दायित्व भी उन पर था। वे अमेरिका की मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलाजी की न्यूक्लिअर साइंस लैब से भी जुड़े हुए थे। कांधे जिम्मेदारियों की कमी न थी, लेकिन वे राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व से विमुख न हुए। प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू से उनका पत्राचार और लविमर्श हुआ। सबकी नजरें उन्हीं की ओर थीं। अंतत: उन्होंने खानदानी व्यवस्था से किनारा किया और दायित्व संभालने के लिए हामी भर दी। मई, 1966 से मृत्युपर्यंत यानी लगभग पांच साल वे भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम और अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम में नाभिकीय भूमिका में रहे।

विक्रम साराभाई को संस्थानों को गढ़ने में महारत हासिल था। वे अनेकों के संस्थापक रहे और अनेकों की स्थापना के निमित्त बने। टेक्सटाइल टेक्नोलाजी से उनका वास्ता न था, लेकिन उन्होंने अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज रिसर्च एसोसियेशन जैसी संस्था खड़ी कर दी। इस संस्था ने भारत में वस्त्रोद्योग के आधुनीकरण में अहम भूमिका निभायी। उनके द्वारा स्थापित कुछ अन्य महत्वपूर्ण संस्थान हैं : भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला (हैदराबाद) विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (तिरुअनंतपुरम), फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (कल्पक्कम), परिवर्ती ऊर्जा साइक्लोट्रॉन परियोजना (कलकत्ता), भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स निगम लिमिटेड (हैदराबाद), भारतीय यूरेनियम निगम लिमिटेड (जदगुड़ा, बिहार)। अहमदाबाद में ही उन्होंने भारतीय प्रबंध संस्थान, सामुदायिक विज्ञान केन्द्र और अंतरिक्ष अनुप्रयोग केन्द्र की स्थापना की। पत्नी मृणालिनी के साथ संस्थापित अभिनय कला दर्पण अकादेमी अहमदाबाद को उनकी एक और सौगात है। साराभाई दंपत्ति का कला एवं संस्कृति में गहरा दखल था। मृणालिनी के साथ उन्होंने ‘दर्पण’ की भी स्थापना की। स्वयं विक्रम साराभाई की छायांकन, पुरातत्व और ललित कला में कहन अभिरुचि थी। उनका व्यक्तित्व मोहक व लुभावना था और वे थोड़ी देर बातचीत से ही व्यक्ति की थाह ले लेते थे।

विक्रम साराभाई मेें समय के पार देखने की विलक्षण दृष्टि थी। उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान और प्रोद्योगिकी में निहित प्रचुर संभावनाओं को चीन्हने में देर नहीं लगी। संचार, मौसम विज्ञान, प्राकृतिक संसाधनों की खोज और मौसम विषयक भविष्यवाणी में इनकी उपयोगिता को बूझने में उन्हें देर नहीं लगी। अंतरिक्ष विज्ञान और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अहमदाबाद स्थित उनकी भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला ने अल्प समय में अग्रणी स्थान अर्जित किया। वे रॉकेट प्रौद्योगिकी और उपग्रह के जरिये टीवी प्रसारण में भी अग्रदूत रहे। दवा उद्योग में उनकी गहरी पैठ थी और वे औषधियों में गुणवत्ता और उसके मानकों को लागू करने के सख्त हिमायती थे। उन्होंने औषधि-उद्योग में इलेक्ट्रॉनिक डाटा प्रोसेसिंग और आॅपरेशंस रिसर्च टेक्नीक का सूत्रपात किया। औषधि-निर्माण में भारत की आत्मनिर्भरता में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

30 दिसंबर, 1971 को केरल में कोवलम में उनका निधन हुआ। अपने पीछे वे एक ‘लिगैसी’ छोड़ गये। उनके सम्मान में सिडनी (आॅस्ट्रेलिया) स्थित अंतरराष्ट्रीय खगोलविज्ञान संघ ने सन् 1974 में सी आॅफ सेरेनिटी में चंद्रमा के बेसल ज्वालामुखी विवर को ‘साराभाई क्रेटर’ नाम दिया।

( डॉ. सुधीर सक्सेना देश की बहुचर्चित मासिक पत्रिका ” दुनिया इन दिनों” के सम्पादक, देश के विख्यात पत्रकार और हिन्दी के लोकप्रिय कवि- साहित्यकार हैं। )

@ डॉ. सुधीर सक्सेना, सम्पर्क- 09711123909

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