मृत्यु का समय आने पर ईश्वर अनेक संदेश देते हैं, लेकिन मनुष्य अहंकार से उसे समझ नहीं पाता : पं. कौशलेंद्र
0 सरगबुंदिया में संगीतमय श्रीमद् भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ
कोरबा (बरपाली)। मनुष्य या अन्य जीवों की मृत्यु का समय आता है, तो मनुष्य को ईश्वर अपनी ओर से कई तरह के संदेश देता है। अब मृत्यु का समय नजदीक है। अभी भी कुछ भगवान का भजन कर ले, लेकिन मनुष्य अपने अहंकार घमंड से सब भूल जाता है। ईश्वर का भजन नहीं करता। मनुष्य के अंतिम समय पर पहला संदेशा पैर को पकड़ना, फिर कमर हाथ गर्दन गला फिर सिर को पकड़ता है। फिर जीव किसी तरह से नाक मुंह आंख कान मल मूत्र यहां तक सिर अर्थात् इन्द्रियों को फाड़ कर जीव बाहर चले जाती है। उक्त उद्गार भागवताचार्य पंडित कौशलेन्द्र दुबे उर्फ कृष्णा महराज भुरकाडीह वाले ने ग्राम सरगबुंदिया में चल रहे संगीतमय श्रीमद् भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ के व्यास पीठ से चौथे दिवस व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि मृत्यु के समय सब दुनिया दिखता है। यहां तक ब्रम्ह एवं यम लोक तक भी दिखाई देता है। यम और देवदूतों को देखकर सब बताना चाहता है, लेकिन तब तक उनका मुंह बंद हो चुका रहता है। फिर आंखों के माध्यम से बताना चाहता है लेकिन नहीं बता पाता। आंसू तक आ जाता है। उन्होंने कहा कि देवदूत सिर के पीछे रहते हैं जबकि यमदूत पैरों के पीछे। जो सीधे यमदूतों को देखकर भयभीत हो जाता है जो सिर के नीचे भाग से जीव को ले जाते हैं। देव दूत सिर भाग से ले जाते हैं। जिस मनुष्य का सिर फटकर अर्थात ब्रेन हेमरेज होकर मृत्यु हुई हो वह ब्रम्हानंद में समाहित हो गया है। उसको ब्रह्म लोक की प्राप्ति हो गई। मनुष्य को अपने जीवन के उद्धार के लिए भगवत भजन करना चाहिए और भागवत सुनना चाहिए। मनुष्य को भवसागर में तैरना चाहिए, डूबकी नहीं लगाना चाहिए। डूबकी से डूब जाते हैं, जबकि तैरने से बाहर आ जाते हैं। उन्होंने चतुर मास महीनों का अर्थ समझाते हुए कहा कि भगवान आठ माह के बाद चार माह के लिए सो जाते हैं, तब शिव शंकर अपने पत्नी-पुत्रों के माध्यम से संसार को एक एक माह के लिए चलाते हैं। जिस तरह सावन में शिव, भादों में गणेश, क्वांर में पार्वती एवं कार्तिक मास में कार्तिक चलाते हैं। आठ माह में ज्यादा मृत्यु होती है, जबकि चार माह में कम होती है। उन्होंने बताया कि भक्त ध्रुव की असली गुरु उनकी छोटी माता सुनिती है। उन्हीं की बातों से वह ईश्वर को पा सका। जगत पालनहार के गोद में बैठ पाया। परम स्थान को प्राप्त कर सका। मनुष्य को ऐसे भोजन करना चाहिए जो सीधा स्वादिष्ट एवं शाकाहार हो। गरिष्ठ भोजन चबा कर खाने से शरीर को नुकसान पहुंचाने का काम करता है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में छत्तीस तरह के भाजी हैं, यह शरीर के लिए लाभदायक है। गज एवं ग्रह की कथा में पं. कौशलेंद्र ने कहा कि गज अपने शरीर एवं ताकत में घमंड था, लेकिन वह ग्रह से हार गया और उसका घमंड टूट गया। फिर ईश्वर को अपने सच्चे मन से पुकारा। ईश्वर स्वयं आकर उसको बचाया एवं गज ने भगवान को कमल फूल भेंट किया। उन्होंने समुद्र मंथन पर निकले रत्नों पर उनके अधिकारों के बारे में भी बताया। इसके पूर्व जड भरित कथा, सृष्टि वर्णन, वराह अवतार, शिव सती चरित्र, गोकर्ण उपाख्यान, परीक्षित मिलन, पांडव चरित्र आदि की कथा विस्तार से सुनाया। श्रीमद् भागवत कथा सुनने बड़ी संख्या में लोग प्रतिदिन आ रहे हैं। कथा आयोजक पुनीराम दाता साहू, सरजू साहू एवं परायण कर्ता प्रकाश कुमार पाण्डेय एवं गंगाधर दुबे हैं।