November 7, 2024

चारे-पानी की तलाश में भटकते वन्य प्राणियों की मौत का सिलसिला शुरू

निःशुल्क कैंसर जांच शिविर दिनांक : 26 फरवरी 2023 (रविवार) समय: सुबह 11 से दोपहर 2 बजे तक डॉ. प्रशांत कसेर कैंसर एवं कीमोथेरपी विशेषज्ञ न्यू कोरबा हॉस्पिटल, कोसाबाड़ी, कोरबा (छ.ग.) पूर्व पंजीयन अनिवार्य – 860-2599-122, 860-2599-133

0 हथखोजा तालाब के समीप मिला एक मृत चीतल
0 सुरक्षा-संरक्षण के नाम पर प्रतिवर्ष किया जा रहा लाखों रुपये हवाई खर्च
0 कटघोरा वनमंडल में वन्य प्राणी बचाव के सारे दावे खोखले

कोरबा।
सरकार वन्य प्राणी सुरक्षा-संरक्षण के लिए कटघोरा वनमंडल को प्रतिवर्ष लाखों रुपये देती है, किन्तु इस वनमंडल में बैठे अधिकारी इस दिशा पर किये जाने वाले हवाई खर्च के परिणामस्वरूप गर्मी के दिनों में चारे-पानी और सुरक्षा के अभाव में चीतल, हिरण व बारहसिंघा की मौतों से हर साल इनकी संख्या घटते क्रम में है। ग्रीष्मकालीन समय में भूख और प्यास से तड़पते उक्त वन्य जीवों को न तो छांव दिखता है, न ही चारा-पानी का प्रबंध। जंगलों में पेड़ों की बेतहाशा कटाव से हरियाली तो गायब हो ही रही है, वहीं विभागीय तौर पर जंगलों के भीतर लाखों के बनवाए गए तालाब, डबरी भी अनियमितता की भेंट चढ़ सूखे रह जाते है। ऐसे में पानी की खोज में वन्य जीव गांवों की तरफ आ जाते है, जिससे कभी कुत्तों एवं शिकारियों के शिकार, तो कभी दुर्घटना के शिकार होकर असमय काल कलवित हो जाते है।

बीते वर्षों में कटघोरा वनमंडल में कई हिरण, चीतल व बारहसिंगा की मौत होते चली आयी है तथा यह क्रम अभी भी जारी है। कटघोरा वनमंडल के वन्य प्राणी सुरक्षा, संरक्षण के दिशा पर किये जाने वाले खोखले दावे को यह दर्शाता है। वनमंडल कटघोरा अंतर्गत पाली परिक्षेत्र के जंगलों में सबसे अधिक हिरन, चीतल और बारहसिंघा की चहल-कदमी है। जिनकी मौत का सिलसिला प्रारंभ हो गया है। ताजा मामले में पाली वन परिक्षेत्र के विभागीय हथखोजा तालाब के समीप एक चीतल की मौत हुई है, जो पानी की तलाश में जंगल से शहर की ओर आया था। बता दें कि गर्मी का दौर शुरू हो चुका है तथा जंगल में प्राकृतिक जल स्रोत धीरे-धीरे सूखने लगे है और विभागीय तौर पर निर्मित तालाब-डबरी केवल औपचारिकता बनकर रह गए हैं। ऐसे में वन्य प्राणियों के कंठ सूखने लग गए हैं एवं उनके लिये पानी की गंभीर समस्या उत्पन्न होने लगी है। प्यास बुझाने के लिए वे इधर-उधर भटकने लगे हैं और यही बेजुबानों के लिए मुसीबत बन गई है। इसका खामियाजा उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है। कटघोरा वनमंडल जंगली जानवरों को सुरक्षित रखने के नाम पर केंद्र व राज्य सरकार का लाखों करोड़ों रुपये खर्च तो कर रही है, लेकिन अधिकतर कागजों पर तथा वास्तविकता सरकार की मंशा से कोसों दूर है। जिस कारण वन्य प्राणी पानी की तलाश में आबादी की ओर आकर दुर्घटना अथवा अवैध शिकार हो रहे हैं।

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