December 24, 2024

बेजा कब्जा ने बढ़ा दी परेशानी, नहीं हो रही कार्रवाई

0 पैदल चलने वालों के लिए नहीं बचा फुटपाथ
कोरबा।
निगम व प्रशासन के अधिकारी फुटपाथ पर बेजा कब्जा करने वालों के सामने बेबस नजर आ रहे हैं। शहर में सड़क किनारे आम लोगों के पैदल चलने के लिए फुटपाथ तो बना है पर उसे पूरी तरह से व्यवसायी व ठेला खोमचा चलाने वालों ने अपने कब्जे में ले रखा है। यह दशा केवल घंटाघर व निहारिका मार्ग में ही नहीं, बल्कि घंटाघर और कोसाबाड़ी चौक में भी बनी हुई है। निर्मला स्कूल के सामने बना फुटपाथ सब्जी दुकान संचालकों के कब्जे में है। यहां लगने वाली दैनिक हटरी सड़क पर चल रही है। स्कूल की छुट्टी के दौरान वाहनों का आवागमन थम जाता है। मार्ग को स्थाई रूप से राहगीरों के लिए खाली कराने की पहल यातायात विभाग ने नहीं की है। प्रमुख रूप से इसके लिए नगर निगम प्रशासन जवाबदार है। नियमित निगरानी के लिए अतिक्रमण हटाओ दस्ता तैयार किया गया है। यह टीम केवल अवैध कब्जे तोड़ने पहुंचती है।
फुटपाथ पर कब्जे पर सख्त कार्रवाई नहीं किए जाने से न केवल शहर की यातायात व्यवस्था बिगड़ रही, बल्कि सौंदर्यीकरण पर भी ग्रहण लग रहा। व्यवस्था बनाने निगम ने करोड़ों का निर्माण कार्य करा लिया है, पर इसे अमलीजामा पहनाने में असफल है। ओपन थियेटर के निकट चौपाटी बनाया है, पर यहां व्यवसायी नहीं जाना चाहते। घंटाघर से लेकर कोसाबाड़ी मुख्य बाजार में खरीदारी के लिए पहुंचने वाले आम राहगीर सड़क पर पैदल चलने को मजबूर हैं। शहर की मुख्य सड़कों में दिन-ब-दिन वाहनों का दबाव लगातार बढ़ रहा है। पैदल चलकर बाजार पहुंचने वालों की सुविधा के लिए शहर के बुधवारी मार्ग से लेकर घंटाघर ओपन थियेटर मार्ग होते हुए कोसाबाड़ी तक निगम प्रशासन ने साल भर पहले फुटपाथ का निर्माण किया। इसका उपयोग राहगीर नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि यहां लघु व्यवसायियों ने अपन डेरा जमा लिया है। सुबह होते ही पारंपरिक व्यवासाय से जुड़े कारोबारी अपना दुकान लगाना शुरू कर देते हैं। गुपचुप चाट, फल आदि सामान को ठेले में लेकर बिक्री करने वाले व्यवसायियों के लिए चौपाटी का निर्माण स्मृति उद्यान के पीछे किया गया है। 1.45 करोड़ की लागत से निर्मित चौपाटी कोरोना काल के पहले केवल दो माह के लिए हुआ था। संक्रमण हटने के बाद व्यवसायी फिर से पुराने जगह में आ गए हैं। बताना होगा कि फुटपाथ निर्माण के बाद यातायात विभाग कार्रवाई करती है और उस वक्त व्यवसायी वहां से हट जाते हैं। दो-तीन दिन बाद फिर से कब्जा जमा लेते हैं। स्थाई व्यवस्था दुरुस्त करने में जिला प्रशासन नाकाम है।

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