शौचालय तो बना दिए पर नहीं है पानी की सुविधा
0 राखड़ डैम प्रभावित गांव के परिवार परेशान
कोरबा। राखड़ डैम से प्रभावित पुनर्वास ग्राम घमोटा में प्रत्येक 38 कच्ची मकानों में पक्के शौचालय का निर्माण किया गया है। बसाहट के दस साल बाद भी गांव में बिजली पानी की सुविधा बहाल नहीं हो सकी है। पानी की कमी से जूझ रहे गांव का एक भी शौचालय उपयोग में लाया जाना सुलभ नहीं हो रहा है। एक ओर शासन के स्वच्छता अभियान के तहत घर घर शौचालय की प्रेरणा दी जा रही है, वहीं मूलभूत समस्या खासतौर पर पानी की समस्या से जूझ रहे गांव के रहवासियों के लिए शौचालय की सुविधा भी असुविधा का सबब बना हुआ है।
धनरास राखड़ बांध के टूटने से राखड़ पानी की चपेट में आने के कारण तबाह हो चुके ग्राम घमोटा को धनरास के निकट टापू में पुनर्वास योजना के तहत बसाहट दिया गया है। गांव को देख कर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बसाहट दिए जाने के नाम पर महज औचारिकता का ही निर्वहन किया गया है। पुनर्वास गांव होने के बाद भी गांव में मूलभूल सुविधा की नितांत कमी बनी हुई है। गांव में 40 परिवार निवास करते हैं। कई ऐसे रहवासी हैं जो विस्थापन के बाद गांव में सुविधा नहीं होने के कारण दूसरे गांव अथवा शहर की ओर पलयान कर चुके हैं। गांव में प्रत्येक कच्ची घरों के पीछे एक पक्का शौचालय का निर्माण किया गया है, जिसे देख कर सहज में ऐसा लगता है कि गांव में स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता है। यहां पानी की समस्या होने के कारण एक परिवार के लिए भी शौचालय का उपयोग कर पाना संभव नहीं हो सका है। टापू में बसे इस गांव में हैंडपंप भी नाकाम हो चुके हैं। पेयजल के लिए लोगों को खासी मशक्कत करनी पड़ती है। निकट में तालाब नहीं होने के कारण दूर जल स्त्रोत में नहाने जाना पड़ता है। शौेचालय की उपयोगिता के बारे में ग्रामीणों की मानें तो यहां पीने के लिए पेयजल की काफी किल्लत है। शौचालय उपयोग के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है। पर्याप्त पानी नहीं होने के कारण शौचालय को स्वच्छ रखने की समस्या है। सफाई नहीं होने से शौचलय की बदबू घर तक फैलती है। गांव के निकट एफसीआई का गोदाम बढ़ने के बाद आसपास बसाहट भी बढ़ने लगा है। यहां के मूल निवासी परिवारों में ज्यादातर लोग आदिवासी परिवार के हैं। मूलभूत समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए चिकित्सा सुविधा की भी नितांत कमी देखी जा रही है। गांव में पांचवीं कक्षा तक स्कूल का संचालन हो रहा है। आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को छुरी अथवा धनरास स्कूल जाना पड़ता है।