टेक्नोलॉजी में डिग्री हासिल दो भाई कर रहे नवाचार
0 अब ताना-बाना की उलझनों को समझना होगा आसान
कोरबा। दो बुनकर भाई पुस्तैनी काम को नई तकनीक से संवार कर खुद अपना परिवार चला रहे हैं। साथ ही दूसरे युवाओं को रोजगार के अवसर देने में लगे हैं। उनके नवाचार से बुनकरी सीखने के लिए अब ताना-बाना के उलझनों को समझना आसान होगा। हैंडलूम एंड टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी में डिग्री हासिल करने वाले बुनकर परिवार के दो भाइयों ने नवाचार किया है।
कोरबा जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर कोरबा-कटघोरा मार्ग पर स्थित छुरीकला के बुनकर परिवार से जुड़े दो युवा भाई यशवंत और रोहित देवांगन ने उच्च शिक्षा के लिए वही राह चुनी, जिस पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ते हुए उनके पूर्वजों व पिता ने हथकरघा और कोसा कला की अद्भुत कारीगरी को यहां तक पहुंचाया। पहले ताना बाना की अधोसंरचना ऐसी रहती थी कि उसके संचालन की विधि को सीखना कठिन होता था। इसे आसान बनाना दोनों भाइयों ने नए तकनीक का इस्तेमाल करते हुए स्टैंड करघा तैयार किया है। पहले यशवंत ने हैंडलूम एंड टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी में डिग्री हासिल की और उसके बाद गांव में ही अपने पिता देवकुमार देवांगन के कोसा बुनाई के पुश्तैनी काम को आगे बढ़ाने के सपने को साकार करने जुट गए। वे चाहते थे कि धीरे-धीरे विलुप्त होते उनके पारंपरिक कारोबार और फीकी पड़ती कोसे की चमक बरकरार रखने आधुनिक तकनीक की मदद ली जाए। पिता से प्रेरित होकर यशवंत ने उनके सपने को अपना बनाया और उसे मुकाम तक पहुंचाने में जुट गए। स्कूल की पढ़ाई के बाद यशवंत ने हैंडलूम एंड टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी में पहले डिप्लोमा (डीएचटीटी) और उसके बाद बैचलर डिग्री हासिल की। पिता के लिए यशवंत की राह पर चलते हुए छोटे भाई रोहित ने भी यही डिप्लोमा किया और अब दोनों भाई गांव लौटकर कोसा कला और हथकरघा की कारीगरी में निखार लाने जुट गए हैं। यशवंत बताते हैं कोरबा में रहने वाले बुनकरों को समिति में जोड़कर तकनीक में दक्ष बनाना उनका पहला उद्देश्य है ताकि वे अपनी आजीविका के बेहतर साधन विकसित कर सकें और पुस्तैनी कला को अगली पीढ़ी में स्थानांतरित करने के साथ उसे एक नई ऊंचाई पर ले जाएं।
0 छुरी में बनाई कोसा बुनकर सहकारी समिति
यशवंत ने छुरी कोसा बुनकर सहकारी समिति मर्यादित छुरीकला की स्थापना की है। इसमें वे छुरी सहित जिले और आसपास के हर बुनकर परिवार को एक-एक कर जोड़ रहे हैं। यशवंत का कहना है कि पहले बुनकरी का काम छुरी में केवल देवांगन समाज तक ही सीमित था। अब अन्य जाति वर्ग के लोग भी इसे रोजगार के तौर पर अपना रहे हैं।
0 बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम का मौका ठुकराया
यशवंत का कहना है कि डिग्री के बूते उसे महानगरों में रहने और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम के अवसर भी मिल रहे थे, लेकिन अपने गांव और बुनकर परिवारों को नई ऊंचाई पर ले जाने का जज्बा ही था, जो वे गांव लौट आए। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हैंडलूम टेक्नोलॉजी (आइआइएचटी) से डिग्री प्राप्त करने वाले यशवंत की मानें तो विरासत से मिली इस परंपरा को बारीकी से जानने के लिए उन्होंने यह पढ़ाई की। बुनकरी में पुरानी परंपरा आज भी हावी है। इससे कपड़ा तैयार करने में अधिक समय लगता है। इसमें तकनीकी सुधार कर काम को आसान बनााया गया है। इससे थोड़े ही दिन के प्रशिक्षण के बाद कोई भी इस हुनर को सीखकर बुनाई कर सकता है। इस युक्ति से कोसा कला पुनर्जीवित हो रही है। साथ ही युवाओं के रोजगार का सृजन हो रहा है।
0 कोरबा कोसा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध
कोसा फल से धागा बना कपड़े तैयार किए जाते हैं। इसकी साड़ियों की अलग पहचान है। छत्तीसगढ़ में कोरबा कोसा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है, जहां 300 बुनकर हैं। वे एक महीने में 5 लाख कोसा फल बुनाई में उपयोग कर लेते हैं। समय पर कोसा फल नहीं मिलने से बुनकरों की आर्थिक दशा में सुधार नहीं है। यशवंत ने कहा कि जिस दिशा में वे प्रयास कर रहे, अगर वह योजना सफल हुई तो कम वक्त में अधिक से अधिक कोसे के कपड़े तैयार हो सकेंगे। युवाओं को रोजगार और बनारस, कांजीवरम की तरह यहां के कपड़े को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिल सकेगी।
0 घट रही विदेशी धागों पर निर्भरता
यशवंत और रोहित के पिता बताते हैं कि पहले बुनकरी का कार्य कठिन होता था, लेकिन समय के साथ अब युवा नई तकनीक का उपयोग कर आसान कर दिया है। कोरोना काल शुरू होते ही चाइना और कोरिया से आने वाले धागों का आयात बंद हो गया। यह कोसा कपड़ा तैयार करने में ताना बनाने में सहयोगी था। इस कमी को पूरा करने के लिए जिले में वेट रिलिंग मशीन की शुरुआत की गई। इससे ताना बनाने का काम चल रहा है। कोरबा सहित प्रदेश के बुनकरों में विदेशी धागों के प्रति निर्भरता घटती जा रही है।