सुखदेव आदित्य की छत्तीसगढ़ी गज़ल
अबड़ कठिन लागत हे जीवन के सफर हर
अंतस ल दहला देथे नवा-नवा खबर हर।
झन रहे कर अतेक संगी मुड़ी ल गड़िया के
अंदेखना ल देखने दे फूटही ओकर नजर हर।
गांव शहर के गली म कुढ़ाय दिखथे कचरा
ईही गंदगी ले फैलथे बीमारी के जहर हर।
देवता धामी ल धरेहे मुड़ पीरा मंदिर के
का जानी उतर ही की नही ए बछर पितर हर।
एक ठन बेटा ल सीमा म लग जाथे गोली
अईसन दाई ददा के बहुत बड़े होथे जिगर हर।
घर म घुसरे-घुसरे अब जी घलो कल्लाथे
धीरे-धीरे फूटथे आदमी मन के सबर हर।
बने आदमी के संग धरे ल बने आदमी कहाबे
दरूहा गंजहा संग रेगे ल कहाँ जाही असर हर।
झन छोड़ “आदित्य” सियनहा मन के संगती ल
चुनदी हर तोरो पाकथे बाढ़त हे तोरो उमर हर।
(मुड़ी=सिर,गड़िया के= झुका के,चुनदी=बाल)
सुखदेव आदित्य,
कोरबा, छत्तीसगढ़