November 8, 2024

सुखदेव आदित्य की छत्तीसगढ़ी गज़ल

अबड़ कठिन लागत हे जीवन के सफर हर
अंतस ल दहला देथे नवा-नवा खबर हर।

झन रहे कर अतेक संगी मुड़ी ल गड़िया के
अंदेखना ल देखने दे फूटही ओकर नजर हर।

गांव शहर के गली म कुढ़ाय दिखथे कचरा
ईही गंदगी ले फैलथे बीमारी के जहर हर।

देवता धामी ल धरेहे मुड़ पीरा मंदिर के
का जानी उतर ही की नही ए बछर पितर हर।

एक ठन बेटा ल सीमा म लग जाथे गोली
अईसन दाई ददा के बहुत बड़े होथे जिगर हर।

घर म घुसरे-घुसरे अब जी घलो कल्लाथे
धीरे-धीरे फूटथे आदमी मन के सबर हर।

बने आदमी के संग धरे ल बने आदमी कहाबे
दरूहा गंजहा संग रेगे ल कहाँ जाही असर हर।

झन छोड़ “आदित्य” सियनहा मन के संगती ल
चुनदी हर तोरो पाकथे बाढ़त हे तोरो उमर हर।

(मुड़ी=सिर,गड़िया के= झुका के,चुनदी=बाल)

सुखदेव आदित्य,
कोरबा, छत्तीसगढ़

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