सोवियत रूस ने गिराया था दुनिया का सबसे शक्तिशाली परमाणु बम.. हिरोशिमा से 3000 गुना ज्यादा विनाशक.. वीडियो जारी
रूस ने 59 साल बाद दुनिया के सबसे ताकतवर परमाणु बम विस्फोट का वीडियो जारी किया है. 30 अक्टूबर 1961 को विस्फोट किए गए इस बम को किंग्स ऑफ बॉम्बस यानी बमों का राजा कहा जाता है. यह हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से 3800 गुना ज्यादा ताकतवर था. यह एक हाइड्रोजन बम था. इसे त्सार बम (Tsar Bomb) भी कहते हैं. रूस ने इसका परीक्षण रूसी आर्कटिक सागर में किया था. यूट्यूब पर जारी वीडियो में दिखाया गया है कि त्सार बम को RDS-220 और बिग इवान (Big Ivan) भी कहा जाता है. इस बम को आर्कटिक सागर में स्थित नोवाया जेमल्या द्वीप (Novaya Zemlya) पर गिराया गया था. यह अब तक का इंसानों द्वारा किया गया सबसे बड़ा परमाणु विस्फोट था. इस बम को आंद्रे शाखारोव (Andrey Sakharov) ने बनाया था.
सोवियत संघ और अमेरिका के बीच चल रहे शीत युद्ध के दौरान इस बम का परीक्षण रूस ने अपनी ताकत दिखाने के लिए किया था. यह बम 100 मेगाटन ऊर्जा पैदा करने की क्षमता रखता था, लेकिन इसकी बर्बादी का स्तर नापने के बाद वैज्ञानिकों ने इसकी क्षमता घटाकर 50 मेगाटन कर दी थी. त्सार बम की लंबाई 26 फीट और व्यास 7 फीट था. इसका वजन 27 टन था. इसके गिरने की गति कम करने के लिए इसके पीछे एक पैराशूट लगाया गया था. ताकि यह गिरने के बाद बड़े स्तर पर बर्बादी न कर सके. इस दौरान इसके असर का अध्ययन करने के लिए आसमान में उड़ रहे बमवर्षकों में कई तरह के कैमरे और वैज्ञानिक यंत्र लगाए गए थे.
रूस ने इस बम के परीक्षण के लिए उस समय के सबसे अत्याधुनिक बमवर्षक TU-95V में बदलाव किए थे. पैराशूट लगाने के पीछे कारण यह भी था कि बम धीमी गति से गिरेगा तो बमवर्षक को परीक्षण स्थल से दूर जा सकेगा. नहीं तो यह विमान भी बम की चपेट में आ जाता. रेडिएशन से बचने के लिए विमानों पर खास तरह का पेंट लगाया गया था. 30 अक्टूबर 1961 को सुबह 11.32 बजे त्सार बम को नोवाया जेमल्या द्वीप पर गिराया गया. बम जमीन से 4 किलोमीटर ऊपर फटा. इसके बाद इसने आसमान में बड़े मशरूम जैसी आकृति बनाई. इसके आग के गोला और धुएं का गुबार आसमान में 60 किलोमीटर की ऊंचाई तक गया था. परमाणु बम के विस्फोट से निकली रोशनी 1000 किलोमीटर तक दिखाई दी थी.
नोवाया जेमल्या पर कोई नहीं रहता था. लेकिन उससे 55 किलोमीटर दूर स्थित खाली गांव सेवेर्नी पूरी तरह से खत्म हो गया था. इतना ही नहीं 160 किलोमीटर दूर स्थित इमारतें भी गिर गई थीं. इस बम के विस्फोट से निकलने वाली गर्मी की वजह से 100 किलोमीटर की दूरी तक कोई चीज नहीं बची थी. सब जलकर खाक हो गया था. रूस के इस बम को किसी बैलिस्टिक मिसाइल में नहीं लगाया जा सकता था, इसलिए आज तक इसका उपयोग नहीं किया गया. इस बम को पारंपरिक बमवर्षक विमानों से ही गिराया जा सकता था, ये विमान आसानी से राडार पर पकड़े जाते. इसलिए इस बम को सिर्फ परीक्षण तक ही सीमित रखा गया. इसका उपयोग फिर कभी नहीं किया गया.
1961 के परीक्षण के बाद त्सार बम बनाने वाले साइंटिस्ट आंद्रे शाखारोव ने परमाणु बमों के परीक्षण को जमीन के अंदर करने का फैसला लिया. लेकिन 1963 में अमेरिका, ब्रिटेन, सोवियत संघ ने परमाणु बमों के परीक्षण और उत्पादन पर प्रतिबंध लगाने वाले समझौते पर हस्ताक्षर कर लिए. इस समझौते में कई अन्य देश भी शामिल थे. लोग आज भी इस बम के नाम से कांप जाते हैं. जब परमाणु बमों के परीक्षण या हमले की बात आती है तो इस बम से खतरनाक बम का जिक्र नहीं होता. रूस ने इस बम के परीक्षण के बाद आज तक दोबारा ऐसा परीक्षण या ऐसे किसी बम का उपयोग किसी युद्ध में नहीं किया. क्योंकि इस बम का असर देखने के बाद उस समय की सोवियत संघ सरकार भी कांप गई थी.