सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय परिसर में हुआ जमकर हंगामा
कोरबा। सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय परिसर में उस समय हंगामा शुरू हो गया, जब अधिवक्ताओं का पक्ष सुने बिना ही चार लोगों को जेल भेजे जाने के आदेश की जानकारी मिली। आक्रोशित अधिवक्ताओं ने बाबू पर लेन-देन का आरोप लगाते हुए विरोध शुरू कर दिया। देर शाम तक चले हंगामे के बाद चारों आरोपियों की जमानत मंजूर की गई, तब कहीं जाकर मामला शांत हुआ।
यह वाक्या मंगलवार की शाम सामने आया। बताया जा रहा है कि अलग-अलग थाना क्षेत्र से धारा 151 के पांच प्रकरण सिटी मजिस्टे्रट के कार्यालय में पेश किया गया था। इसमें एक प्रकरण पति पत्नी के बीच विवाद का भी था। मामले में पुलिस ने पति के खिलाफ प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की थी। उसने अपना अधिवक्ता वर्षा सारथी को नियुक्त किया था। अधिवक्ता ने अपने क्लाइंट से संबंधित तमाम दस्तावेज प्रस्तुत कर दिए थे। देर शाम अधिवक्ता को जानकारी मिली कि उसके क्लांइट को जेल भेजने आदेश जारी किया गया है। इस बात से उसने अपने सीनियर अधिवक्ताओं को अवगत करा दी। खबर मिलते ही संघ के जिलाध्यक्ष संजय जायसवाल सहित अन्य अधिवक्ता कार्यालय जा पहुंचे। उन्होंने बिना पक्ष सुने जेल वारंट जारी किए जाने को गलत ठहराया। मामले को लेकर अधिवक्ता वर्षा सारथी का कहना था कि बाबू के द्वारा सब दस्तावेज तैयार किया गया। हमसे कहा गया कि वे सीतामढ़ी में रहते हैं, उनसे सीतामढ़ी जाकर साइन कराया जाएगा। हम इंतजार कर रहे थे। हमें न तो जमानत के बारे में और न ही कोई अन्य जानकारी दी गई। वे सीधे चेंबर से जेल दाखिल कराने के आदेश जारी करा लाए, जबकि साहब न्यायालय आए ही नहीं। उन्होंने अभियुक्त को देखा भी नहीं, मामला को जाना भी नहीं। हमने मुचालका जमानत के लिए दस्तावेज प्रस्तुत किया था। पट्टा पेश करने भी तैयार थे। हमसे बाबू ने दो से ढाई हजार रुपये की मांग की थी। हमने अपनी बात रखी जिसे सुने ही नहीं। वे सीधे चले गए। संघ के जिलाध्यक्ष जायसवाल ने कहा कि 151 के पांच प्रकरण पेश किए गए थे, जिसमें एक प्रकरण में ही जमानत दी गई, जबकि 151 में मुचलका भरकर जमानत का प्रावधान है। बाबू द्वारा रकम की मांग की जाती है, यह गलत है। डेस्क में बैठकर पक्ष सुनना जरूरी है, लेकिन पक्ष नहीं सुना जा रहा। हालांकि काफी देर तक चले हंगामे के बाद पांचों प्रकरण में जमानत मंजूर कर ली गई, तब कहीं जाकर मामला शांत हुआ। सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय में पदस्थ बाबू अवकाश पर है। उनकी अनुपस्थिति में कम्प्यूटर ऑपरेटर चंदराम धारी ने प्रकरण पेश किया था। उनका कहना है कि पहली बार प्रकरण पुटअप किया हूूं। मैंने अपना काम पूरा कर लिया था। साहब को जल्दबाजी थी। उनका फोन भी आ गया था। उन्हें प्रकरण आने की जानकारी दी थी, लिहाजा वे थोड़ी देर बाद लौट गए थे। मेरे द्वारा किसी से भी रकम की मांग नहीं की गई है।