October 5, 2024

प्रदूषण से ऊर्जाधानी में रहने वाले लोगों की सेहत पर मंडराया खतरा

कोरबा। कोयले के छोटे-छोटे कण और धुआं ऊर्जाधानी में रहने वाले लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है। यह मनुष्य के स्वास्थ्य को सबसे अधिक प्रभावित कर रहा है। इसकी शुरुआत मौसमी बीमारी के लक्षण से शुरू होती है। जांच के बाद एक्स-रे, सिटी स्कैन रिपोर्ट में बीमारियों की गंभीरता सामने आ रही है। दमा व टीबी के रोगियों की संख्या बढ़ रही है, जो चिंता का कारण है।
जिला कोयलांचल क्षेत्र हैं। यहां खदानों में कार्यरत कर्मचारियों के शरीर में फेफड़े की शिकायत सबसे अधिक आ रही है। कर्मचारी आठ से 12 घंटे तक खदान में काम करते हैं। इसके अलावा शहर में बिना तिरपाल ढके भारी वाहनों से कोयला, राख परिवहन किया जा रहा है। बची कसर सिगड़ी में खाना बनाने के लिए कोयला का उपयोग पूरी कर रही है। कोयला के सूक्ष्म कण और धुआं आबोहवा में घुल रही है। पर्यावरण को दूषित कर रही है। यह धीरे-धीरे लोगों के शरीर के अंदर प्रवेश कर रही है और कई तरह की बीमारियां पैदा कर रही है। डॉक्टरों की माने तो लोगों के स्वास्थ्य पर मौसमी बीमारी यानी सर्दी, खांसी से शुरू हो रही है। निमोनिया, टीबी सहित अन्य गंभीर बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। फेफड़े को भी नुकसान पहुंच रहा है। यह किसी एक वर्ग को नहीं, बल्कि युवा वर्ग को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा रहा है। कई लोगों में लक्षण अभी से दिख रहे हैं, लेकिन जिनमें लक्षण सामने नहीं आ रहे हैं उनको बढ़ती उम्र के साथ बीमारियां हो सकती है। ऐसे में जरूरत है कि कोयला धूल और धुआं वाले क्षेत्र से बच कर रहे हैं।
0 कोल साइडिंग में पानी का छिड़काव नहीं
जिले में कोयला लदान के लिए गेवरा, दीपका, कुसमुंडा, मानिकपुर, जूनाडीह में साइडिंग बनाए गए हैं। इन स्थलों में नियमित तौर पर स्प्रिंकलर से पानी का छिड़काव नहीं किया जा रहा है। कई जगह से स्प्रिंकलर खराब हो गए हैं, तो कई बंद कर दिए गए हैं। इस कारण साइडिंग में कोयले के कण सबसे अधिक उड़ रहे हैं। यह लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है।
0 प्रदूषण को कम करने प्रशासन के पास योजना नहीं
खाना पकाने के लिए कोयला का उपयोग सबसे अधिक स्लम बस्तियों में हो रहा है। महिलाएं बचत के लिए खाना पकाने के लिए सिगड़ी जलाने के लिए कोयला का उपयोग कर रही हैं। इसका धुआं जहां महिला के लिए हानिकारक हैं, वहीं अन्य लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है, लेकिन कोयला की उपयोगिता कम करने के लिए प्रशासन के पास कोई योजना नहीं है। इस कारण प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। पांच साल पहले इसे लेकर योजना बनाई गई थी। अब यह भी ठंड बस्ते पर चली गई है। इससे लोगों की परेशानी बढ़ गई है।

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