December 25, 2024

मेडिकल कॉलेज अस्पताल का ब्लड बैंक चल रहा डोनर के भरोसे

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0 थैलेसीमिया और सिकलिंग के मरीज हो रहे परेशान
कोरबा।
जिले का एकमात्र कोरबा मेडिकल कॉलेज अस्पताल खून की किल्लत से जूझ रहा है। यहां के ब्लड बैंक में हर महीने जितने ब्लड की जरूरत होती है, उसका आधा ब्लड ही अस्पताल में उपलब्ध हो पाता है। खासतौर पर सिकलिंग और थैलेसीमिया के मरीजों के लिए यह परिस्थितियां बेहद घातक हैं।
जिले के अस्पतालों में खून की कमी से थैलेसीमिया और सिकलिंग के मरीजों परेशान हैं। इन मरीजों को कोरबा मेडिकल कॉलेज अस्पताल से फ्री ब्लड दिया जाता है, लेकिन मांग के अनुरूप ब्लड की सप्लाई काफी कम है। ब्लड बैंक पूरी तरह से ब्लड डोनर के भरोसे ही चल रहा है, जबकि ज्यादा ब्लड डोनर भी सामने नहीं आ रहे। ऐसे में जरूरतमंद मरीजों को निजी ब्लड बैंक का भी सहारा लेना पड़ रहा है। सिकलिंग और थैलेसीमिया के मरीजों को हफ्ते, 15 दिन या महीने में नियमित तौर पर ब्लड चढ़ाना पड़ता है। यदि इन मरीजों को समय पर खून नहीं दिया गया, तो उनकी मौत भी हो सकती है।
शहर का मेडिकल कॉलेज अस्पताल हो या फिर अन्य अस्पताल सभी ब्लड के लिए ब्लड बैंक पर ही आश्रित रहते हैं। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में यदि कोई ब्लड डोनेशन कैंप लगे तो भी बमुश्किल 50-60 यूनिट ही ब्लड एक बार में मिलता है। जरूरत के हिसाब से यह बेहद कम है। जानकारों की मानें तो इस दिशा में लोगों में पर्याप्त जागरूकता नहीं है। लगातार कैंपेनिंग के बाद भी लोग उतनी तादाद में रक्तदान करने सामने नहीं आते, जितनी की अस्पतालों को जरूरत है। खास तौर पर थैलेसीमिया और सिकलिंग के मरीज इससे बेहद परेशान रहते हैं। मेडिकल कॉलेज अस्पताल जैसे सरकारी संस्था में मरीजों को ब्लड लगभग नि:शुल्क दिया जाता है। बाध्यता यह है कि जरूरतमंद को अपने साथ एक डोनर को लाना पड़ता है। हालांकि इमरजेंसी के मामले में यह बाध्यता समाप्त कर दी जाती है और आयुष्मान कार्ड से यह राशि वसूल कर ली जाती है। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरीजों को नि:शुल्क ब्लड प्राप्त हो जाता है, लेकिन निजी ब्लड बैंक में डोनर और 1400 रुपये देने होते हैं। एक तरह से यह डोनेटेड ब्लड का हैंडलिंग चार्ज कहा जा सकता है।
0 सामाजिक संस्थाओं के भरोसे चल रहा ब्लड बैंक
आचार संहिता के प्रभाव के कारण ब्लड डोनेशन के बड़े कैंप नहीं हो रहे हैं, जिसके कारण ब्लड बैंक में खून की किल्लत है। सामान्य दिनों में भी खून की कमी बनी रहती है, लेकिन वर्तमान परिवेश में किल्लत ज्यादा ही विकराल हो चुकी है। ऐसे में मेडिकल कॉलेज अस्पताल के ब्लड बैंक में जब कोई जरूरत मरीज पहुंच जाए या इमरजेंसी में किसी को ब्लड की जरूरत हो तो वह सीजी हेल्प वेलफेयर सोसाइटी जैसे संस्थानों से संपर्क करते हैं। ऐसे संस्था से जुड़े सदस्य और उत्साही लोग ब्लड डोनेट करते हैं जिससे कि ब्लड बैंक का काम चलता है। नियमित तौर पर ब्लड डोनेट करने वाले युवा यदि यह कामना करें, तो परिस्थितियों और भी कठिन हो सकती हैं।

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