November 22, 2024

जनचर्चा: मेहनत करे मुर्गी, अंडा खाए फकीर की राजनीति

न्यूज एक्शन। कोरबा शहर का दुर्भाग्य कहा जाए या फिर अपनी वाहवाही लूटने के लिए किसी भी हद तक जनप्रतिनिधि चले जाते है और जब मीठा-मीठा परोसा जाता है तो उसे गले से नीचे उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ते है। जब कड़वा खाने की नौबत आती है तो थूकने लगते है। शासन के निर्णय के पीछे अपनी दलील देकर वाहवाही लूटने के लिए कोई भी मौका नहीं चूकते है ऐसा ही मामला फ्री होल्ड का आया है। जिसमें स्थानीय जनप्रतिनिधि अपना प्रस्ताव बताकर वाहवाही लूट रहे है। जबकि सड़क, पानी , बिजली और अन्य बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए कहा जाता है तो शासन के सिर पर ठिकरा फोडऩे से बाज नहीं आते। इस तरह की जनचर्चाएं इन दिनों सुर्खियों में बनी हुई है।
डॉ. रमन सिंह मंत्रीमंडल की कल चुनाव आचार संहिता लगने के पहले आयोजित बैठक में छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल नगरीय निकाय के मकानों और दुकानों व भवनों को फ्री होल्ड करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए शासन द्वारा मानक निर्धारित किए गए। चूंकि इन संस्थाओं द्वारा मकान भवन लीज पर प्रदान किए जाते है और हर 30 साल में लीज का नवीनीकरण करना पड़ता है। लेकिन अब शासन के निर्णय से ऐसा नहीं कराने की जरूरत पड़ेगी और जिन व्यक्तियों के नाम पर लीज है वे खुद इसके मालिक बन जाएगें। यह निर्णय राज्य शासन द्वारा लिया गया और स्थानीय महापौर और विधायक इसे अपना प्रस्ताव बनाकर अपने ही हाथों से अपनी पीठ थपथपा रहे है। आखिर ऐसी क्या जरूरत पड़ गई कि शासन के निर्णय को अपना बताना पड़ रहा है। कोई अकेला कोरबा नगर निगम में नहीं यह पूरे प्रदेश के लिए लागू किया गया है। इसमें तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों की भूमिका ही नजर नहीं आती है और शासन के निर्णय का पालन करना हर नगर निगम व नगरीय निकाय क्षेत्र का मजबूरी बन जाता है। यहीं बात अगर उलट के होती तो उस समय क्या जनप्रतिनिधि शासन के पक्ष में खड़े होते। नहीं ऐसा नहीं होता और शासन की लानत मलानत करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। चुनाव का समय है हर कोई श्रेय लेना चाहता है पर मैं अपने हाथ से ही अपनी पीठ थपथपाना कतई उचित नहीं कहा जा सकता। सिर्फ नगर निगम का ही नहीं बल्कि हॉउसिंगबोर्ड के मकानों के लिए भी राज्य शासन ने यहीं नीति लागू की है क्या इसमें भी नगर निगम व विधानसभा के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की भूमिका है? शहर में अनेकों समस्याएं व्यापत है इन समस्याओं को हल करने की दिशा में कदम उठाने की बजाए राज्य सरकार पर ठिकरा फोड़ दिया जाता है। नगर निगम सीमा क्षेत्र में बदहाल सड़कें , साफ-सफाई का आभाव, शिक्षा, स्वास्थ्य, जैसी सुविधाएं मुहैय्या कराने में असफल जनप्रतिनिधि इन चीजों के लिए सीधे-सीधे राज्य सरकार को दोषी ठहराने से नहीं चूकते है। इतना ही नहीं यहां तक कह दिया जाता है कि हमारे द्वारा प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है। लेकिन शासन ने उसकी मंजूरी नहीं दी है। वैसे भी कहा गया है कि थोथा चना, बाजे घना की कहावत नगर के जनप्रतिनिधियों पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। नगरीय सीमा में तीन माह पूर्व किए गए डामरीकरण पूरी तरह उधड़ चुके है यह उनके विकास कार्य की एक बानगी ही काफी है। शहर में स्थित छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड की कॉलोनियों में साफ सफाई तक नगर निगम के अमले द्वारा नहीं की जाती है। वहां के रहवासी जब शिकायत करने पहुंचते है तो कहा जाता है कि वह हमारी कॉलोनी नहीं है और हाउसिंग बोर्ड का अधिकार क्षेत्र बताते हुए सारा दायित्व उन पर थोप दिया जाता है। अब कैसे हम माने कि नगर निगम में यह प्रस्ताव बनाकर भेजा था। कुल मिलाकर यहीं कहा जा सकता है कि अच्छा तो हमारा है तो बुरा है तो फिर तुम्हारा है।
निगम को मिला 50 करोड़
संपत्ति फ्री होल्ड को लेकर राजनीति गरमा चुकी है। नेताओं के बीच मची श्रेय लेने की राजनीति के बीच आम जनता के कई सवाल खड़े हो चुके है। कुछ दिन पूर्व सांसद डॉ. बंशीलाल महतो ने प्रेस वार्ता लेकर यह जानकारी दी थी कि डीएमएफ फंड से नगर निगम को 50 करोड़ की राशि प्रदान की गई है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि करोड़ों का फंड होने के बाद भी राज्य सरकार पर बार-बार ठिकरा क्यों फोड़ा जाता है, जब निगम के पास फंड है तो मूलभूत सुविधाओं का लाभ आम जनता को क्यों नहीं मिल रहा है। क्या भाजपा कांग्रेस के बीच राजनीति के दो पाटों में कोरबा की जनता पिस रही है।
वादों को भुला दिया
नगर निगम व कोरबा विधानसभा क्षेत्र के जनप्रतिनिधि जिस तरह से श्रेय लेने की राजनीति कर रहे है। उससे उनके पुराने चुनावी घोषणाओं की याद लोगों को आ गई है। कांग्रेस ने चुनाव के समय वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी से महापौर चुना जाता है तो निगम क्षेत्र में 1 रूपए किलो की दर से जनता को चावल मिलेगा। कांग्रेस की महापौर को सत्ता संभाले चार बरस होने जा रहे है लेकिन अब तक रियायती चावल की सौगात निगम क्षेत्र की जनता को नहीं मिली है।

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