मनसुखीदेवी दुग्गड़ ने आत्मा के कल्याण हेतु लिया संथारा
कोरबा। सल्लेखना (समाधि या संथारा) मृत्यु को निकट जानकर अपनाया जाने वाली एक जैन प्रथा है। इसमें जो व्यक्ति को यह लगता है कि हम मौत के करीब हैं तो वह खुद से खाना-पीना त्याग देता है। इसे समाधि या संथारा या सल्लेखना कहा जाता है।
जैन धर्म में ऐसी मान्यता है कि जब इंसान का अंत निकट हो या फिर उसे लगे कि अपनी जिंदगी भरपूर तरीके से जी ली है, तो वह इस संसार से मोह माया छोड़ कर मुक्ति के पद पर निकल जाता है। इसी तारतम्य में जैन धर्म के समाज के वरिष्ठ सदस्य बुधवारी कोरबा निवासी स्व. कन्हैयालाल दुग्गड़ की माताजी मनसुखीदेवी दुग्गड़ ने 3 दिन के उपवास के पश्चात स्वयं से अपनी आत्मा की कल्याण के लिए संथारा पचक लिया। पिछले 10 दिन से अन्न जल त्याग कर परिवार के साथ धर्म आराधना में लग गए। कल रात्रि 7.17 बजे उनका संथारा सीज गया। सभी समाज के विशिष्ट वर्ग के लोग, समाज के कार्यकारिणी सदस्य एवं परिवार के सभी रिश्तेदार उनके समीप थे। रविवार सुबह 10 बैकुंठी यात्रा (मृत्यु महोत्सव यात्रा) पर कोरबा शहर के सभी समाज के लोग उपस्थित रहे।