November 22, 2024
प्रस्तुति- विजय सिंह

कांधों के बीच

जिंदगी के कशमकश
के बीच
थोड़ी सी जगह बचाना होगा
मनुष्यता के लिए
ये वो जगह है
जहां से लंबी सड़कें
नाप रहे होते हैं
पैर, छालों के साथ
और कांधो के बीचों
बीच लटकी मुनिया
उसे फिर भी रुकने नहीं देती !


स्त्री हूँ मैं

मौन रह कर भी मुखर हूँ मैं
जैसे
पानी के भीतर जलजला
आग के भीतर उसकी धधक
हवा के भीतर उसकी लय
और मिट्टी के भीतर उसका
गीलापन
साथ लिये
हरियाने पृथ्वी को
वर्षो वर्षो से
हाँ मैं एक स्त्री हूँ
हाँ मैं सहस्त्र स्त्री हूँ

जगदलपुर, बस्तर, छत्तीसगढ़

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