शहर से अधिक सभ्य और शालीन हैं गांव: प्रो. मुरलीमनोहर जोशी
वर्धा 9 फरवरी. पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री एवं शिक्षाविद् प्रो. मुरली मनोहर जोशी ने सोमवार की शाम कहा कि अंग्रेजों के आने से पहले भारतीय गांव स्वायत्त रहा। रामायण काल में तो राजा और किसान के बीच घनिष्ठ संबंध का भी विवरण मिलता है। परंतु अंग्रेजों ने गांवों का उपयोग मात्र लगान वसूलने के लिए किया। उन्होंने कहा, हमारे देश के ग्राम शहर की अपेक्षा ज्यादा सभ्य और शालीन हैं। प्रो. जोशी महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में ‘वर्धा मंथन 2021 : ग्राम स्वराज की आधारशिला’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के सम्पूर्ति सत्र को संबोधित कर रहे थे। प्रो. जोशी ने कहा कि वर्तमान औद्योगिक परिवेश में ग्राम स्वराज के विषय में हमें कहां तक और कैसे सोचना होगा, इसपर चिंतन करने की आवश्यकता है। क्योंकि गांव एक कल्पना नहीं बल्कि एक सृष्टि है। कोरोना काल में श्रमिकों का गांवों की तरफ लौटना इस देश के आम जन की ग्राम श्रद्धा की ओर संकेत करता है। आज का समाज बाजार केंद्रित हुआ है। सुबह से शाम तक बदल जाने वाले बाजार के केंद्र में कभी मनुष्य नहीं हो सकता। मनुष्य केंद्रित मूल्य तो उस सभ्यता से ही प्राप्त हो सकते हैं जो हजारों वर्ष पूर्व ग्राम की सभ्यता थी। गांवों की परिकल्पना भारतीय संतों के विचारों का प्रतिबिंब है जो मात्र जीडीपी और ग्रोथ तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने कहा कि वास्तव में भारत माता ग्रामवासिनी है।
सम्पूर्ति सत्र को संबोधित करते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने कहा कि ग्राम स्वराज का संबंध भारत के भविष्य के सपने के साथ जुड़ा है। श्री राय ने कहा कि आज का प्रशासनिक तंत्र ग्राम स्वराज की दिशा में सबसे बड़ी बाधा है। भारत फिर से सोने की चिडियां तभी बनेगा जब नवोत्थान का सपना भारतीय गांव से होकर गुजरेगा। उन्होंने कहा कि स्वाधीन भारत का सपना जगाने वाले महापुरुष ऋषि अरविंद, विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपतराय, तिलक और महात्मा गांधी ने भी एक समर्थ और सक्षम ग्राम की परिकल्पना की थी।
सम्पूर्ति सत्र की अध्यक्षता करते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि ग्राम स्वराज वास्तव में सुराज है। उन्होंने कहा कि ‘वर्धा मंथन’से अमृत कलश निकलेगा। इस कार्यशाला में अकादमिक बहस ही नहीं हुई, बल्कि सिद्धांतों को व्यवहार में बदलने के लिए एक खाका भी तैयार किया गया। इस कार्यक्रम में ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाले, नए प्रयोगों को जन्म देने वाले और मूल्य आधारित जीवन जीने वाले कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों ने सहभागिता की। इस मंथन का लक्ष्य 2021 में एक नए प्रकार की सभ्यता विमर्श की नींव रखना है जो व्यक्ति को तकनीकी केंद्रित उपभोगवादी जीवन से मुक्त करते हुए स्वराज और स्वावलंबन की ओर अग्रेषित करेगी। प्राय: हम ग्राम केंद्र जीवन को केवल कृषि के संबंध में ही देखते हैं जबकि यह कृषि से उपजी कारीगरी, शिल्पकारी और उसपर आधारित उद्योग की एक सभ्यता है। ऐतिहासिक कालखंड में भारत के गांव अपने शिल्प आधारित कारीगरी के बल पर विश्व की जीडीपी में 35% का योगदान करते थे। शताब्दियों की मानसिक एवं आर्थिक गुलामी ने हमें मशीन केंद्रित कर दिया। वर्तमान समय में हमें विकेंद्रीकरण अर्थव्यवस्था की ओर लौटना होगा और ‘ग्लोबल सप्लाई चैन’के विपरीत ग्लोकल’सोचना होगा। गांव का तात्पर्य शहर का विरोध नहीं बल्कि मानवीय एवं सामाजिक मूल्यों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है। अभी तक हम विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया के चौखंभे की बात करते थे लेकिन हमें लोक परिष्कार करने वाले चिंतकों के योगदान को स्वीकार करना होगा तभी हम ग्राम स्वराज की संकल्पना को साकार कर पाएंगे।