November 21, 2024
प्रस्तुति- विजय सिंह

समय की आवाज
.……………………
यह समय कहता है
चुप रहो
बिना बोले
सुनो
सदाओ को
सुनो
उन हवाओं को
जो सरसरा कर ठिठकती है
पत्थरों को तोड़कर सुनो उसकी आवाज
कितने ,
हौले से दरक रही है मिट्टी
चुग कर जाती चिड़िया
को देखो,
कैसे समेट ली है पंखो को
तितलियां कहा गई इन दिनों
आसमान भी पूछता है,
यह वह समय है
जब बात – बात पर
हिल उठते हैं वृक्ष
हां ये,
गुमसुम समय की आवाज है


पसीने की गंध
……………….
रैमती के
मजबूत हाथों
ने थामें हैं सूरज को
बाँस की टुकनी में
समाया सूरज
आश्वस्त हैं
पसीने की गंध में
रैमती की हँसी छिपी हैं


Spread the word