आज 11 मई के दिन ही भारत ने पोखरण परीक्षण के जरिये विश्व को दिखाई थी अपनी ताकत
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नईदिल्ली 11 मई। ये बदला हुआ भारत है, जो दुनिया से आंख मिलाकर और हाथ मिलाकर चलना चाहता है। यह किसी प्रतिबंध से झुकेगा नहीं और शांति व सुरक्षा के लिए परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा।’
दरअसल, भारत के सफल परमाणु परीक्षण के बाद पूरी दुनिया हैरान रह गई थी और सरकार से कई सवाल किए जा रहे थे। संसद में इसका जवाब देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना इरादा साफ कर दिया था। 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षणों की वर्षगांठ तथा अंतरिक्ष में भारत की तकनीकी प्रगति का प्रतीक है।
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पोखरण: पांच परमाणु बम परीक्षण विस्फोटों की थी श्रृंखला
11 मई 1998 को, राजस्थान में भारतीय सेना के पोखरण परीक्षण रेंज में पांच परमाणु परीक्षणों में से पहले, ऑपरेशन शक्ति मिसाइल को सफलता पूर्वक फायर किया गया था। पोखरण परमाणु परीक्षण भारतीय सेना के पोखरण टेस्ट रेंज में भारत द्वारा किए गए पांच परमाणु बम परीक्षण विस्फोटों की एक श्रृंखला थी। तब राजस्थान के पोखरण में तीन बमों का सफल परीक्षण किया गया था। इस सफल परीक्षण के बाद पूरी दुनिया विशेषकर अमेरिका और पाकिस्तान दंग रह गए थे। इस परीक्षण का नेतृत्व एयरोस्पेस इंजीनियर और दिवंगत राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था। इसके बाद प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को एक परमाणु देश घोषित किया तथा इसके साथ ही भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के ‘परमाणु क्लब’ में शामिल होने वाला छठा देश बना।
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7 सितंबर 1972 से शुरू हुई थी भारत की परमाणु यात्रा
भारत ने अपनी पहली परमाणु यात्रा 7 सितंबर, 1972 को शुरू की थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में वैज्ञानिकों को एक स्वदेशी रूप से डिजाइन किए गए परमाणु उपकरण के निर्माण के लिए अधिकृत किया था। राजस्थान के पोखरण में भारत का पहला परमाणु परीक्षण शांतिपूर्ण तरीके से 18 मई 1974 को आयोजित किया गया था। इसका नाम ‘स्माइलिंग बुद्धा’ रखा गया था, लेकिन उस वक्त भारत को अमेरिका जैसे औद्योगिक देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा। उन्होंने भारत पर आरोप लगाया कि ऐसे परीक्षणों से परमाणु प्रसार हो सकता है और दुनिया में अशांति फैल सकती है।
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उस वक्त भारत के लिए यह परीक्षण कितना था आवश्यक
उस वक्त भारत के लिए यह परीक्षण महत्वपूर्ण के साथ-साथ आवश्यक भी था। बात यह थी कि 1974 के बाद पाकिस्तान ने सक्रिय रूप से परमाणु हथियार हासिल करना शुरू कर दिया था। चीन पाकिस्तान के साथ प्रौद्योगिकी और सामग्री साझा कर रहा था और यह सार्वजनिक ज्ञान था। भारतीय सशस्त्र बल अच्छी तरह से जानते थे कि पाकिस्तान सेना के पास परमाणु हथियार हैं। इसलिए वह एक ऐसी स्थिति थी जिसमें भारत का सामना दो परमाणु देशों के साथ हुआ था। यदि भारत को अपने व्यापार के साथ-साथ खुद को विकसित करना था, तो वह ऐसा दो परमाणु विरोधियों के खतरे के तहत नहीं कर सकता था।
ताकत सम्मान लाती है: पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम
1998 के तुरंत बाद नहीं, लेकिन निश्चित रूप से कुछ वर्षों बाद विश्वपटल पर भारत की छवि मजबूत हुई है। परमाणु हथियार करण सुरक्षा के दृष्टिकोण से किया गया था, लेकिन यह देश की तकनीकी क्षमता की अभिव्यक्ति भी है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम कहा करते थे कि ताकत सम्मान लाती है। ये 1998 के परमाणु परीक्षण का ही परिणाम है कि आज भारत आई टी ई आर में भागीदार है। बड़ी संख्या में अंतर्राष्ट्रीय मेगा-विज्ञान परियोजनाओं जैसे लीगो और थर्टी मीटर टेलीस्कोप का हिस्सा हैं। जहां तक प्रौद्योगिकी की बात है, हम बाकी दुनिया के साथ कंधे से कंधा मिला रहे हैं और अब पूरा विश्व भारत की ओर तकनीक के क्षेत्र में आशा की नजरों से देख रहा है।