November 21, 2024

खबरदार … इन 18 बी जे पी नेताओं को कोई दुकानदार सामान न दे

कोलकोता 6 जून: पश्चिम बंगाल टीएमसी और बीजेपी के मध्य तकरार अब यहां तक बढ़ गई हैं कि वहां बीजेपी कार्यकर्ताओं का राशन पानी तक बंद करने की बात होने लगी हैं। कतिपय टीएमसी नेताओं की इसे सोची समझी रणनीति भी कह सकते है.

लगातार तीसरी बार बंगाल की सत्ता में आने के बाद तृणमूल कांग्रेस ( टीएमसी ) का पारा सर चढ़कर बोल रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सत्तारूढ़ टी एम सी ने 18 भाजपा नेताओं को ब्लैकलिस्ट कर दिया है और दुकानदारों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि इन्हें कोई भी सामान नहीं देना है।टी एम सी के इस फरमान की जमकर आलोचना हो रही है। केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण समेत बड़े नेताओं ने टीएमसी की इस तानाशाही पर सवाल उठाया है।

बंगाल भाजपा महिला मोर्चा की प्रमुख केया घोष ने शनिवार को ट्विटर पर टीएमसी द्वारा कथित रूप से प्रसारित एक सूची साझा की, जिसमें 18 व्यक्तियों को सूचीबद्ध किया गया था। सभी भाजपा के सदस्य हैं, जिन्हें टीएमसी की अनुमति के बिना कोई भी सामान विशेष रूप से चाय नहीं बेची जानी चाहिए।

टीएमसी द्वारा भाजपा नेताओं को ब्लैकलिस्ट किये जानें पर हैरानी जताते हुए केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि पश्चिम बंगाल में सभी नागरिकों की रक्षा की जाए और उन्हें बहिष्कृत या बुनियादी सुविधाओं से वंचित न किया जाए। भाजपा सांसद स्वप्न दासगुप्ता ने कहा कि यह ब्लैक लिस्टिंग पुलिस की मिलीभगत का इस्तेमाल कर कार्यकर्ताओं के मनोबल तोड़ने के लिए की गई है।

गौरतलब है कि बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय को केंद्र में वापस बुलाए जाने को लेकर ममता बनर्जी और केंद्र सरकार के बीच ठन गई है। केंद्र सरकार ने अलपन को दिल्ली बुलाया था लेकिन ममता बनर्जी के कहने पर उन्होंने दिल्ली जाने से इन्कार कर दिया और नौकरी से इस्तीफा दे दिया। अब ममता ने बंदोपध्याय को अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त किया है। तीन साल के लिए ढाई लाख प्रति महीनें की सैलरी पर। केंद्र सरकार अब अलपन बंदोपाध्याय पर सर्विस रूल उल्लंघन की कार्यवाही करने पर विचार कर रही है।

Nirmala Sitharaman
@nsitharaman
This is shocking. Would urge CM @MamataOfficial to see that ALL citizens in West Bengal are protected and not ostracised or denied the basics. Otherwise, a true shame.

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