November 7, 2024

जानें, साल 2014 से 2021 तक देश के रक्षा क्षेत्र में कितना हुआ सुधार

नईदिल्ली 4 अक्टूबर। ”डिफेंस सेक्टर” यानि ”रक्षा क्षेत्र” एक ऐसा स्ट्रेटेजिक सेक्टर है, जिस पर सरकार और रक्षा मंत्री का विशेष फोकस रहता है। दरअसल, किसी भी देश की सुरक्षा के लिहाज से यह सेक्टर काफी अहमियत रखता है। इसलिए किसी भी देश को बाहरी हमलों से बचाने और देश के नागरिकों को एक सुरक्षित माहौल मुहैया कराने के लिए रक्षा क्षेत्र का मजबूत होना सबसे महत्वपूर्ण है। साल 2014 से 2021 तक भारत ने भी रक्षा क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए विभिन्न बदलाव किए हैं। इन्हीं का नतीजा है कि आज भारत के रक्षा क्षेत्र में जमीन पर सकारात्मक असर नजर आने लगा है। साथ ही रक्षा नीतियां में भी जो आमूलचूल परिवर्तन किए गए थे, उनका सकारात्मक परिणाम भी सामने हैं।

बताना चाहेंगे कि हाल ही में ”सोसाइटी ऑफ इंडियन डिफेंस मैन्यूफैक्चर्रस” के सालाना सत्र में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, “भारतीय रक्षा उद्योगों को घरेलू रक्षा मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए पिछले कुछ साल में सरकार द्वारा शुरू किए गए नीतिगत सुधारों का लाभ उठाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इसका असर व्यापार व्यवस्था, संचार, राजनीतिक समीकरण और सैन्य शक्ति पर स्पष्ट तरीके से देखा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में तेजी से जो बदलाव हो रहे हैं, उससे सैन्य उपकरणों की मांग बढ़ने की उम्मीद है और भारतीय उद्योग को उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।” रक्षा मंत्री के इस बयान से साफ है कि देश के रक्षा क्षेत्र में भारत ने पहले से ज्यादा प्रगति की है।

रक्षा मंत्रालय द्वारा किए गए 20 बड़े सुधार:

”7 जून 2020” का वह दिन कभी नहीं भुलाया जा सकता जब रक्षा क्षेत्र में एक साथ कई ऐतिहासिक बदलाव किए गए थे। इस संबंध में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 20 रक्षा सुधारों पर एक ई-बुक जारी की थी। यह ई-बुक वर्ष 2020 में रक्षा मंत्रालय द्वारा किए गए रक्षा सुधारों का संक्षिप्त विवरण प्रदान करती है।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ और सैन्य मामलों के विभाग :

• भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति और सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) का निर्माण सरकार द्वारा लिए गए प्रमुख निर्णयों में से एक था।
• जनरल बिपिन रावत को पहले सीडीएस के रूप में नियुक्त किया गया था जिन्होंने सचिव, डीएमए की जिम्मेदारियों को भी पूरा किया।
• सीडीएस का पद सशस्त्र बलों के बीच दक्षता और समन्वय बढ़ाने और दोहराव को कम करने के लिए बनाया गया था, जबकि DMA की स्थापना बेहतर नागरिक-सैन्य एकीकरण सुनिश्चित करने के लिए की गई थी।

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता:

• रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने के लिए, 101 रक्षा वस्तुओं की एक सूची, जिसके लिए आयात पर प्रतिबंध होगा, अगस्त 2020 में अधिसूचित की गई थी।
• 2020-21 में बीते वर्ष की तुलना में 10% बजट वृद्धि की गई थी।
रक्षा निर्यात में वृद्धि:
• निजी क्षेत्र के साथ बढ़ी हुई भागीदारी से रक्षा निर्यात में पर्याप्त वृद्धि हुई।
• कुल रक्षा निर्यात का मूल्य 2014-15 में 1,941 करोड़ रुपए से बढ़कर 2019-20 में 9,116 करोड़ रुपए हो गया। इसके अलावा, भारत पहली बार रक्षा उपकरण निर्यातक देशों की सूची में शामिल हुआ, क्योंकि भारत के रक्षा उपकरणों का निर्यात 84 से अधिक देशों में विस्तारित हुआ।

रक्षा अधिग्रहण:

• पहले पांच राफेल लड़ाकू विमान जुलाई 2020 में भारत पहुंचे और इसके बाद अनेक और आए जिन्होंने भारतीय वायु सेना के शस्त्रागार की मारक क्षमता में बढ़ोतरी की।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास सुधार:

• युवा ब्रेन्स द्वारा नवाचार को बढ़ावा देने हेतु, 2020 में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की पांच युवा वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं शुरू की गईं।
• डीआरडीओ ने डिजाइन और विकास में निजी क्षेत्र के साथ हाथ मिलाया और उद्योग के डिजाइन, विकास और निर्माण के लिए 108 सिस्टम और सब सिस्टम की पहचान की।

बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर की मजबूती के लिए:

• सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के भीतर प्रक्रियाओं और कार्यप्रवाह में सुधारों ने इसे कुछ मामलों में समय से पहले लक्ष्य हासिल करने में सक्षम बनाया।
• लेह-मनाली राजमार्ग पर रोहतांग में 10,000 फीट से ऊपर विश्व की सबसे लंबी ”अटल टनल” का उद्घाटन किया गया।

सशस्त्र बलों में महिलाओं की भागीदारी:

• शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए भारतीय सेना की दस धाराएं खोली गईं।
• शैक्षणिक सत्र 2020-21 से सभी सैनिक स्कूल छात्राओं के लिए खोल दिए गए।

कोविड-19 के दौरान नागरिक प्रशासन को सहायता:

• रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र बलों ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए संसाधन जुटाने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
• डीआरडीओ ने राज्यों में कोविड रोगियों के इलाज के लिए कई अस्पतालों की स्थापना की। इसके अलावा कोविड से संबंधित दवाओं और उपकरणों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए निजी क्षेत्र को प्रौद्योगिकी विशेषज्ञता भी प्रदान की।

सीमाओं से परे मदद:

• सशस्त्र बलों ने संकटग्रस्त देशों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया। इस क्रम में भारतीय नौसेना ने 2020-21 के दौरान आठ राहत मिशन चलाए।
• ”वंदे भारत मिशन” के तहत ईरान, श्रीलंका और मालदीव से फंसे भारतीयों को निकालने के अलावा, भारतीय नौसेना के जहाजों ने पांच देशों को कोविड-19 चिकित्सा राहत प्रदान की गई।
• आईएनएस ऐरावत ने प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित सूडान, जिबूती और इरिट्रिया को 270 मीट्रिक टन खाद्य सहायता पहुंचाई।
• श्रीलंका के तट को उसके सबसे बड़े तेल रिसाव से बचाने के लिए भारतीय तटरक्षक बल ने बचाव अभियान का नेतृत्व किया।

रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता:

• 2025 तक भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर, महाशक्ति की महत्वाकांक्षा, पड़ोस में सुरक्षा चुनौतियों की बढ़ती जटिलताओं और आर्थिक शक्ति जैसे हितों की रक्षा हेतु भारत को मजबूत रक्षा क्षमताओं की आवश्यकता है।
• इसके अनुसरण में, पिछले एक दशक में, भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक रहा है। जी हां, वैश्विक हथियारों के आयात का लगभग 12% हिस्सा अकेले भारत ने आयात किया। हालांकि, हथियारों, पुर्जों और गोला-बारूद के लिए 60-70% आयात-निर्भरता के साथ सैन्य संकट के दौरान कमजोरियां पैदा होती हैं। इसे समझते हुए ही भारत ने अब देश के भीतर ही इन अत्याधुनिक हथियारों के निर्माण को बढ़ावा दिया है।
• रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने आत्मनिर्भर अभियान के तहत कई उपायों की घोषणा की है। सरकार का यह कदम सही दिशा में हैं। वास्तव में भारत को रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भर बनाने के लिए यह एक प्रकार से लंबित सुधार के रूप में है।
आत्म निर्भर अभियान के तहत रक्षा क्षेत्र में किए गए सुधार:

• एफडीआई सीमा में संशोधन: स्वचालित मार्ग के तहत रक्षा निर्माण में एफडीआई की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% कर दी गई है।
• परियोजना प्रबंधन इकाई (पीएमयू): सरकार से एक परियोजना प्रबंधन इकाई (अनुबंध प्रबंधन उद्देश्यों के लिए) की स्थापना करके समयबद्ध रक्षा खरीद और तेजी से निर्णय लेने की शुरुआत की उम्मीद है।
• रक्षा आयात विधेयक में कमी: सरकार आयात के लिए प्रतिबंधित हथियारों/प्लेटफार्मों की एक सूची अधिसूचित करेगी और इस प्रकार ऐसी वस्तुओं को केवल घरेलू बाजार से ही खरीदा जा सकता है।
• घरेलू पूंजी खरीद के लिए अलग बजट का प्रावधान।
• आयुध निर्माणी बोर्ड का निगमीकरण: इसमें कुछ इकाइयों की सार्वजनिक सूची शामिल होगी, जो डिजाइनर और अंतिम उपयोगकर्ता के साथ निर्माता के अधिक कुशल इंटरफेस को सुनिश्चित करेगा।

“मेक इन इंडिया” से “मेक फोर वर्ल्ड” की ओर

भारत अब मेक इन इंडिया प्रोग्राम को बढ़ावा देते हुए मेक फोर वर्ल्ड की ओर अग्रसर है। यह काबिले तारीफ है कि अब भारत में बन रहे रक्षा उपकरणों को विदेश में खरीदा जा रहा है। जी हां, इसी के बलबूते भारत पहली बार रक्षा उपकरण निर्यातक देशों की सूची में शामिल हुआ है। इसी के साथ भारत के रक्षा उपकरणों का निर्यात 84 से अधिक देशों में विस्तारित हुआ है।

निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा

रक्षा क्षेत्र में भारत ने निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु एफडीआई की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% कर दिया है। इससे निजी क्षेत्र के साथ बढ़ी हुई भागीदारी से रक्षा निर्यात में पर्याप्त वृद्धि हुई है। 2014 के 1330 करोड़ के विदेशी निवेश से बढ़कर अब यह 2871 करोड़ के करीब पहुंच चुका है।

भारतीय रक्षा उत्पादों के निर्यात में वृद्धि

रक्षा क्षेत्र में किए गए सुधारों का नतीजा ही है कि आज भारतीय रक्षा उत्पादों का निर्यात उम्मीद से भी अधिक बढ़ गया है। कुल रक्षा निर्यात का मूल्य 2014-15 में 1,941 करोड़ रुपए से बढ़कर 2019-20 में 9,116 करोड़ रुपए हो गया।

रक्षा अधिग्रहण में आधुनिकीकरण और पारदर्शिता

पिछले 10 वर्षों में आधुनिकीकरण की दिशा में सबसे अधिक जोर देते हुए बीते वर्ष की तुलना में 2020-21 में 10 प्रतिशत बजट वृद्धि हुई है। बढ़ी हुई पारदर्शिता के लिए नीतिगत सुधारों में सितंबर 2020 में नई रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू करना और अक्टूबर 2020 में डीआरडीओ खरीद नियमावली में संशोधन करना शामिल था। स्टार्टअप को प्रोत्साहित करने के लिए, बाय इंडियन-आईडीडीएम के रूप में खरीद के लिए प्रावधान शुरू किया गया, जबकि पहली बार नॉन-मिशन महत्वपूर्ण आवश्यकताओं के लिए लीजिंग की शुरुआत की गई थी।

Spread the word