July 7, 2024

पर्यावरण संरक्षण मण्डल की सरपरस्ती में फैलाया जा रहा है-कोरबा जिले में प्रदूषण

कोरबा 6 दिसंबर। पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए स्थापित छ. ग. पर्यावरण संरक्षण मण्डल की ही सरपरस्ती में कोरबा जिले में जगह-जगह प्रदूषण फैलाया जा रहा है। औद्योगिक प्रदूषण से मुक्त अनेक हिस्सों में अब तक प्रदूषण फैलाया जा चुका है। अब इसके निशाने पर दो वर्ष पूर्व पर्यटन स्थल के रूप में विकसित सतरेंगा आ चुका है, जहां जहरीला फ्लाई ऐश निस्तारण की अनुमति जारी करने की तैयारी कर ली गयी है।

पिछले ढाई वर्ष से जिले में यह गोरखधंधा चल रहा है। जिले के ताप विद्युत संयंत्रों से निकलने वाली जहरीली राख को जिला मुख्यालय के आस-पास के क्षेत्रों में डम्प किया जा रहा है। इसकी वजह से जहां अनेक प्राकृतिक और स्वाभाविक रूप से विकसित जल स्त्रोत खत्म हो रहे हैं, वहीं जल स्त्रोत दूषित भी हो रहे हैं। जिले के तरदा और भलपहरी गांव का गिट्टी उत्खनन के बाद स्वाभाविक रूप से विकसित विशाल जल संग्रहण क्षेत्र और लो-लाईन एरिया, जिससे ऊपरी हिस्से का अतिरिक्त जल बहकर हसदेव नदी में जाता था, उसमें जहरीली राख भर दी गयी है। इसी प्रकार नोनबिर्रा गांव के रामपुर जलाशय के अतिरिक्त जल उत्सर्जन के लिए निर्मित नहर में पिछले दिनों फ्लाई ऐश डाल दिया गया। रामपुर क्षेत्र के विधायक और प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर के विरोध के बाद यहां राख डालना बंद किया गया। इसके अलावे कोरबा शहरी क्षेत्र में अनेक स्थानों पर फ्लाई ऐश डाला जा रहा है। नगर के रिसदी वार्ड में भी बड़ी मात्रा में राख डाला जा चुका है। दर्री और कोहड़िया वार्ड के नाले और गड्ढों में भी राख भर दिया गया है। ये ऐसे क्षेत्र हैं, जहां से पानी बहकर हसदेव नदी में जाता हैं और उसके जल को विषाक्त बनाते हैं।

ताजा मामला दो वर्ष पूर्व खनिज संस्थान न्यास मद से हसदेव बांगो बांध के डूबान क्षेत्र में विकसित पर्यटन स्थल सतरेंगा से संबंधित है। जानकारी के अनुसार ब्लैक स्मिथ कारपोरेशन मायनिंग एण्ड अलाईड (ओ.पी.सी.) प्रायवेट लिमिटेड कोरबा ने अनुविभागीय अधिकारी राजस्व कोरबा क ो एक आवेदन दिया है। इसमें सतरेंगा गांव के आठ किसानों की निजी भूमि में फ्लाई ऐश भराव के लिए अनुमति मांगी गयी है। आवेदन में कहा गया है कि उक्त किसानों की भूमि में बड़े गड्ढे हैं और दलदली है। किसान इन जमीनों में राख और मिट्टी भराव कर समतल बनाना चाहते हैं। दरअसल यह आवेदन का एक पक्ष है। इसका दूसरा पक्ष यह है कि ठेका कंपनी स्वयं के लाभ के लिए उपयुक्त स्थानों की खोज कर प्रक्रिया प्रारंभ करती है।

बहरहाल खास बात यह है कि सतरेंगा में जहां राख भराव की योजना है, वह बहुउद्देशीय मिनीमाता हसदेव बांगो बांध का डुबान क्षेत्र है। यहां राख भराव करने के बहाने बांगो बांध के डुबान क्षेत्र में लम्बे समय तक लाखों टन राख का निस्तारण किया जा सकेगा। इससे बांध की जल भराव क्षमता प्रभावित होगी। साथ ही बांध का जल भी प्रदूषित होगा। जलीय जीव-जन्तु असमय काल कवलित होंगे। इसका दुष्प्रभाव सतरेंगा पर्यटन स्थल पर भी पड़ेगा।

इस मामले में सर्वाधिक संदिग्ध भूमिका छ. ग. पर्यावरण संरक्षण मण्डल कोरबा कार्यालय की है। राख भराव की अनुमति के लिए अनुविभागीय अधिकारी राजस्व कार्यालय में आवेदन दिया जाता है। यहां से पर्यावरण संरक्षण मण्डल को पत्र लिखकर अनापत्ति/ अभिमत मांगा जाता है। पर्यावरण संरक्षण मण्डल के अधिकारी बड़ी चतुराई के साथ अभिमत भेजते हैं, ताकि भविष्य में होने वाली किसी भी कार्रवाई से उनका बचाव हो सके। ऐसे पत्र के उत्तर में वे केन्द्रीय पर्यावरण संरक्षण मण्डल के दिशा-निर्देश की चार कण्डिका लिखकर अपना अभिमत भेजे देते हैं। इसका आशय यह होता है कि चार शर्तों का उल्लंघन नहीं हो रहा हो, तो राख भराव की अनुमति दी जा सकती है। जबकि होना यह चाहिये कि पर्यावरण संरक्षण मण्डल के अधिकारी सभी नियमों और स्थान का प्रत्यक्ष अवलोकन करने के बाद सभी पहलुओं का परीक्षण कर सहमति/ असहमति के रूप में अपना स्पष्ट अभिमत दें। लेकिन वे ऐसा नहीं करते। इसी वजह से उनकी भूमिका संदिग्ध हो जाती है। क्योंकि पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण क ी पहली जिम्मेदारी पर्यावरण संरक्षण मण्डल की है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सतरेंगा में राख भराव की पूरी सहमति बन गयी है। केवल औपचारिकता पूरी की जा रही है। यहां उल्लेखनीय यह भी है कि जिले के वन क्षेत्रों में भी फ्लाई ऐश का बड़ी मात्रा में निपटान किया जाता रहा है। लेकिन वन विभाग के अधिकारी भी मूक दर्शक बने हुए हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस गोरखधंधे में लगे लोगों और संबंधित अधिकारियों को नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल (एन. जी. टी.) की भी कोई पहवाह नहीं है। यह अलग बात है, कि एन. जी. टी. की भूमिका भी कम लापरवाही पूर्ण नहीं कहा जा सकता। एन. जी. टी. भी जमीन में उतरकर अब तक कोरबा जिले में कोई कार्रवाई नहीं कर सका है, सिवाय विद्युत मण्डल के ताप विद्युत संयंत्र को बंद कराने के। जबकि कोरबा जिले में कदम-कदम पर सुनियोजित तरीके से पर्यावरण को नष्ट किया जा रहा है और प्रदूषण फैलाया जा रहा है।

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