कही-सुनी @ रवि भोई
![](https://korbapost.com/wp-content/uploads/2021/12/Screenshot_2020_0825_132351-1.png)
कही-सुनी (12 DEC-21)
रवि भोई
राजभवन और सरकार में फिर तनातनी
कहते हैं राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके एक तरफ ग्राम पंचायतों को नगरीय संस्थाओं में तब्दील करने के सरकार के फैसले से नाराज हैं, तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकारी विश्वविद्यालयों में राज्य के बाहर के लोगों को कुलपति नियुक्त करने से खफा हैं। दोनों के बीच परोक्ष तौर से सार्वजानिक तीर भी छोड़े जाने लगे हैं। चर्चा है कि ताजा विवाद डॉ. रामशंकर कुरील को महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय पाटन दुर्ग का प्रथम कुलपति बनाए जाने से शुरू हुआ है। डॉ. कुरील वर्तमान में इंस्टीट्यूट ऑफ हार्टीकल्चर टेक्नोलॉजी गौतम बुद्धनगर उत्तर प्रदेश में डायरेक्टर हैं। इसके पहले वे बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति भी रह चुके हैं। कहा जाता है कि यहां डॉ. कुरील ने कार्यकाल खत्म होने के एक दिन पहले कइयों को सेवावृद्धि देकर चर्चा में आ गए तो नई संस्था में उन पर वित्तीय अनियमितता का आरोप चस्पा हो गया। पाटन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का विधानसभा क्षेत्र है और वहां स्थापित वानिकी विश्वविद्यालय में डॉ. रामशंकर कुरील की नियुक्ति उन्हें नहीं भा रही है। इसके पहले पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कुलपति बलदेव भाई शर्मा को नियुक्त किए जाने पर बवाल मचा था। अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर का कुलपति डॉ ए. डी वाजपेयी को बनाए जाने से भी सरकार में बैठे लोगों के मुंह-कान फूल गए थे। अब देखते हैं ताजा विवाद क्या रंग लाता है।
संगीत विवि की कुलपति ममता को होगा फायदा
छत्तीसगढ़ सरकार इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के कुलपति के रिटायरमेंट की उम्र अधिकतम 65 से बढ़ाकर 70 साल करने जा रही है। इसके लिए विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार द्वारा संशोधन विधेयक लाए जाने की खबर है। राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की सेवानिवृति की उम्र 70 साल है। कहते हैं इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्ति की सेवा शर्तों में बदलाव से सीधा फायदा तो वर्तमान कुलपति ममता चंद्राकर को होना है। जुलाई 2020 में संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति बनीं ममता की उम्र अभी 63 वर्ष बताया जा रहा है। 65 की उम्र में रिटायरमेंट हो जाने से उन्हें एक-डेढ़ साल का नुकसान हो रहा है। 70 की उम्र करने पर वे आगे भी कुलपति रह सकती हैं।
जिला बनने से पहले विवाद
एक कहावत है -“जल्दी का काम शैतान का, देर का काम रहमान का”। लगता है ऐसा ही कुछ कोरिया जिले को विभाजित कर मनेन्द्रगढ़ को अलग जिला बनाने के निर्णय में हो गया। कहा जा रहा है कि जिला बनने से पहले ही कोरिया और मनेन्द्रगढ़ वालों में सीमा को लेकर विवाद की स्थिति पैदा हो गई है। कहते हैं मनेन्द्रगढ़ के लोग खड़गवां को अपने जिले में शामिल कराने के पक्ष में हैं तो कोरिया वाले अपने में रखना चाहते हैं। माना जा रहा है कि मनेन्द्रगढ़- चिरमिरी जिले में खड़गवां शामिल नहीं हुआ तो वह काफी छोटा जिला होगा और कोरिया से चला गया तो उसका क्षेत्र काफी कम हो जाएगा। यह तनातनी चल रही है। उम्मीद है कि नया जिला मनेन्द्रगढ़- चिरमिरी जनवरी 2022 में अस्तित्व में आ जाएगा। देखते हैं तब तक कोई हल निकलता है या फिर खींचतान बनी रहती है।
व्यवसायी ईडी के लपेटे में
कहते हैं छत्तीसगढ़ के एक व्यवसायी प्रवर्तन निदेशालय ( ईडी) के फेर में फंस गए हैं। कहा जाता है राज्य के एक उद्योग नगरी से अपना कारोबार समेट कर उन्होंने आजकल राजधानी में डेरा जमा लिया है। उन्हें राज्य के एक ब्यूरोक्रेट का संबंधी बताया जा रहा है।उनके द्वारा न्यायधानी में रियल इस्टेट कारोबार में बड़े निवेश की चर्चा है। कहा जा रहा है कि कुछ साल पहले आयकर और ईडी के एक छापे में उनके निवेश से जुड़े कुछ कागज मिले थे , उस आधार पर ईडी ने उन्हें घेरा है और समन जारी कर तलब कर लिया।
महंगी गाड़ी की सवारी के शौकीन मंत्री जी
कहते हैं राज्य के एक मंत्री जी महंगी गाड़ी में सवारी करने के लिए चर्चित हो गए हैं। कहते हैं मंत्री जी सरकारी गाड़ी छोड़कर अपनी महंगी गाड़ी में सवारी करना पसंद करते हैं। यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मंत्री जी को फड़फड़ाने नहीं दे रहे हैं और उन पर अफसरों के जरिये लगाम कस दिया है , जिसका वे कहीं -कहीं रोना भी रोते रहते हैं। मंत्री जी भी समय का इंतजार कर रहे हैं।
रेडी टू ईट फूड और कांग्रेस नेता
कहते हैं रेडी टू ईट फूड सप्लाई चैन में बदलाव के पीछे उत्तरप्रदेश के एक कांग्रेस नेता की सोच है। कहा जाता है कि कांग्रेस नेता राजनीति में आने से पहले ब्यूरोक्रेट थे और मायावती की सरकार में मुख्यमंत्री के दाहिने हाथ थे। छत्तीसगढ़ में रेडी टू ईट फूड सप्लाई के धंधे में उतरने की रणनीति बना रहे उत्तरप्रदेश के कारोबारी से ब्यूरोक्रेट के मधुर संबंध बताये जाते हैं। ब्यूरोक्रेसी से राजनीति में आए नेताजी का पुत्र भी चुनावी मैदान में भाग्य आजमा चुका है। यह अलग बात है उन्हें जीत नहीं मिल सकी और अब नेताजी भी संसद सदस्य नहीं हैं , पर पुराने संबंधों से दांवपेच तो चल ही सकते हैं।
जल संसाधन विभाग में तदर्थवाद
कहते हैं जल संसाधन विभाग में एक तरफ पदोन्नति के लिए कई इंजीनियर बांट जोह रहे हैं , वहीँ सरकार उन्हें प्रमोशन देना छोड़कर संविदा और सांख्येत्तर वालों को ऊँची कुर्सी देकर काम चला रही है। कहा जा रहा है कि सांख्येत्तर वाले सब इंजीनियरों ने तो ऊँचा ओहदा सोचा ही नहीं था , उन पर सरकार की मेहरबानी हो गई। कहावत है बिल्ली के भाग से छींका टूटा , ऐसा ही कुछ संयोग बन बैठा जलसंसाधन विभाग के सांख्येत्तर सब इंजीनियरों के साथ। अब मलाई खाने को मिले, तो कौन छोड़े। सरकार ने रिटायरमेंट के बाद कुछ अफसरों को संविदा नियुक्ति देकर उन पर भी कृपा बरसा दी है ।
(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
(डिस्क्लेमर – कुछ न्यूज पोर्टल इस कालम का इस्तेमाल कर रहे हैं। सभी से आग्रह है कि तथ्यों से छेड़छाड़ न करें। कोई न्यूज पोर्टल कोई बदलाव करता है, तो लेखक उसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। )