किसानों ने सीखी औषधीय पौधों की खेती
कोरबा 18 सितम्बर। औषधीय खेती को अपनाकर किसान न केवल स्वयं के लिए आजीविका के बेहतर विकल्प प्राप्त कर सकते हैं। बल्कि प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण में योगदान के साथ औषधियों की भरपूर उपलब्धता भी सुनिश्चित की जा सकती है। इसी उद्देश्य से जिले के किसानों को औषधीय खेती की विधि, उपज के बाद उसके लिए बाजार में उपलब्ध विकल्प के बारे में जानकारी देने कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में करीब 100 किसानों ने उपस्थिति दर्ज कराते हुए विशेषज्ञों से प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह एक दिवसीय प्रशिक्षण कोरबा में क्षेत्रीय सह सुविधा केन्द्र मध्य क्षेत्र, जबलपुर मध्य प्रदेश राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के संयुक्त तत्वावधान में छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा के सहयोग से दिया गया। मुख्य रूप से औषधीय प्रजाति शतावर का विनाशविहीन विदोहन, प्राथमिक प्रसंस्करण एवं बाजार व्यवस्था विषय पर प्रशिक्षण रखा था। डॉ. सुशील उपाध्याय, डिप्टी डायरेक्टर क्षेत्रीय सुविधा केन्द्र मध्य क्षेत्र जबलपुर मध्यप्रदेश ने औषधीय पौधों की खेती, औषधीय पौधों का विनाशविहीन विदोहन प्राथमिक प्रसंस्करण व बाजार व्यवस्था पर जानकारी दी। कार्यशाला में डॉ.सुशील द्वारा बताया गया कि औषधीय पौधे खास तौर से शतावर ही बाजार में मांग क्या है, उसकी खेती किसान क्लस्टर स्तर पर कैसे कर सकते हैं, औषधीय पौधों को लगाने के लिए प्रजातियों का चुनाव करना और बाजार से सीधे जुडऩे इस संबंध में जानकारी व किसानों के प्रश्नों के उत्तर दिए गए।
आरसी एफसी के टेक्निकल ऑफिसर दिनेश कुलदीप ने आयुष के आयुष ट्वेंटीबीस और हर्बल गार्डन के विषय में किसानों को अवगत कराया। उन्होंने बताया कि नीमच से किसान औषधीय पौधों की खेती के लिए बीजों को प्राप्त कर सकते हैं। औषधीय पौधों के वितरण के बाद जीपीएस फोटो के माध्यम से डाटा मॉनीटरिंग की जाती है। उन्होंने बताया औषधीय पौधों की खेती में यह फायदा है कि इन पौधों मे कीट एवं रोग कम लगते हैं।
प्रदीप कोरी ने बताया कि ई चरक नामक ऐप द्वारा किसान घर बैठे औषधीय पौधों का उस दिन या दाम है इसकी जानकारी ले सकते है। उन्होंने बताया कि किसान घर बैठे इस एप्लीकेशन के माध्यम से बाजार से जुड़ सकते हैं। विष्णु ने औषधीय पौधों की खेती में आने वाली समस्याओं के विषय विचार साझा किए। किसानों को औषधीय पौधों का नि:शुल्क वितरण किया गया। कार्यशाला में छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा का विशेष सहयोग रहा।