December 23, 2024

बच्चों को संस्कारों की सौगात दें : डॉ. तिवारी

पाली। छत्तीसगढ़ पब्लिक हायर सेकेंडरी स्कूल पाली के शिक्षाविद प्राचार्य एवं करियर काउंसलर डॉ. गजेंद्र तिवारी का मानना है कि प्रबल संस्कार से शिक्षा पल्लवित होगी। वर्तमान समय में यह महसूस किया जा रहा है कि जैसे-जैसे शिक्षित नागरिकों का प्रतिशत बढ़ा है, वैसे-वैसे समाज में जीवन मूल्यों में गिरावट आ रही है। हमें मूल्यों के अंदर का बोध होना चाहिए। विद्यार्थी जो देश का भविष्य है वे तनाव अवसाद बाह्य आकर्षण और अनुशासनहीनता के शिकार हैं। इसका कारण पाश्चात्य संस्कृति, विद्यालय, समाज ही नहीं बल्कि संस्कारों के प्रति हमारी उदासीनता है। परिवार बालक की प्रथम पाठशाला है तो माता-पिता प्रथम शिक्षक। विद्यालय में हम देख रहे हैं कि जो माता पिता अपने बच्चों में अच्छे संस्कार आरोपित करते हैं वे बाह्य वातावरण से प्रभावित हुए बिना शिक्षक की दी गई विद्या को फलीभूत करते हैं। परिवार में प्रत्येक सदस्य का दायित्व है कि बच्चों में भौतिक संसाधनों के स्थान पर संस्कारों की सौगात दे।
डॉ. तिवारी का मानना है कि संस्कारों की सुंदरता के महत्व की पहली कड़ी घर से शुरू होती है। घर से ही बच्चों के संस्कार की शुरुआत होती है। अभिभावकों को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके बाद दूसरी जिम्मेदारी स्कूल के शिक्षक एवं शिक्षिकाओं की होती है, जो बच्चों के अच्छे संस्कारों का बोध कराते हैं। सिर्फ संस्कार ही नहीं बल्कि इसके बारे में जानकारी भी होनी चाहिए। संस्कारों का ज्ञान और उनकी सुंदरता ही हमें उन्नति के लिए प्रेरित करती है। डॉ. तिवारी का मानना है कि संस्कार हमारे जीवन में बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। निरंतर प्रयास, एकाग्रता, अल्पनिद्रा, अल्पाहार, घरेलू बातों में अनाकर्षण इन संस्कारों से युक्त विद्यार्थी हमेशा तनाव मुक्त रहता है। इन संस्कारों को अपने जीवन में अपनाकर विद्यार्थी अपने जीवन पथ पर अग्रसर होता है। यही हमारे संस्कारों का बोध भी है, साथ ही सामाजिक छवि किस प्रकार की बने यह भी हमारे संस्कारों पर ही निर्भर करता है। संस्कारों से प्राप्त शिक्षा से ही व्यक्ति सदाचारी और आदर्शवादी बनता है और अपने जीवन में सफलता प्राप्त करता है, परंतु आज के समय में इन संस्कारों का लोप होता जा रहा है जिससे विद्यार्थी अपने जीवन में आने वाली समस्याओं से लड़ते रह जाते हैं। आज जरूरत है इन संस्कारों की जो हमारे शिक्षा को और भी ऊंचा उठा सके।

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