July 7, 2024

भू-विस्थापितों ने बंद कराया सीएसईबी राखड़ बांध का कार्य, कहा- अब खेती शुरू करेंगे

ऊर्जाधानी भू-विस्थापित किसान कल्याण समिति के बैनर तले आंदोलन का आगाज
बलगी। सीएसईबी कोरबा पश्चिम के डंगनियाखार के राखड़ बांध के प्रभावित विस्थापितों ने ऊर्जाधानी भू-विस्थापित किसान कल्याण समिति के बैनर तले रोजगार, मुआवजा सहित अन्य सुविधा की मांग पर राखड़ और मिट्टी पाटने के कार्य को बंद करा दिया है ।
समिति के अध्यक्ष सपूरन कुलदीप ने बताया कि कोरबा देश का सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला जिला है। कोयला खदानों के अलावा विद्युत सयंत्र सहित अन्य संस्थानों ने जिले के किसानों का केवल दोहन किया है, किंतु उनके रोजगार बसाहट मुआवजा के लिए भी तरसाया है। अपने प्रभावित क्षेत्र के मूलभूत सुविधाओं से मरहूम रखा गया है। अब ये लड़ाई जिले के हर शोषित तबके तक पहुंचाने का बीड़ा संगठन ने उठाया है। डंगनिया इकाई अध्यक्ष और भू-विस्थापित मानसिंह कंवर, संपत सिंह, गरीब सिंह, छेदी यादव, मनप्रीत सिंह ने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल के हसदेव ताप परियोजना से प्रभावित पिछले 40 साल से न्याय पाने के लिए भटक रहे हैं। वर्ष 1983 में विद्युत कारखाने से उत्सर्जित होने वाले राख के निपटान के लिए डंगनियाखार के कृषि भूमि में राखड़ डैम बनाया गया था। इससे 54 किसानों की 104.10 एकड़ (40.406 हेक्टेयर) सहित ग्राम के निस्तार की शासकीय भूमि प्रभावित हुईथी। उक्त क्षेत्र में उसी समय से राखड डैम का निर्माण कर विद्युत मंडल उपयोग कर रहा है, किन्तु भूमि अर्जन के एवज में यहां के मात्र 11 लोंगो को रोजगार दिया गया। अन्य भू-विस्थापित परिवार को अलग-अलग कारण बताकर रोजगार से वंचित कर दिया गया। ग्रामीणों ने बताया कि अपने मांग को लेकर लगातार उच्चाधिकारियों को अवगत कराते हुये आवेदन दिया है, फिर भी समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया। इसके कारण आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। जब तक हमें रोजगार और मुआवजा सहित मूलभूत सुविधाएं प्रदान नहीं किया जाता है। तब तक हम काम नहीं होने देंगे और राखड़ बांध के ऊपर खेती शुरू करेंगे।
समिति अध्यक्ष कुलदीप ने बताया कि डंगनिया स्थित राखड़ डैम की क्षमता समाप्त हो जाने के कारण ऊपर मिट्टी पाटी जा रही है, जिसमें पौधे लगाने की तैयारी की जा रही है। यहां के संबंधित अधिकारी अपनी मर्जी से नियम विरुद्ध डैम के किनारे राखड़ डंप करा रहे हैं, जिससे वहां खड़े विशालकाय पेड़ भी दब गए हैं। इस पर पर्यावरण मंडल तथा वन विभाग को कार्रवाई करना चाहिए। इसकी शिकायत के साथ ही उच्च स्तरीय जांच की मांग की जाएगी।

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