अक्षय तृतीया पर इस बार शुभ योगों का संयोग
0 22 अप्रैल को अक्षय तृतीया, जमकर गूंजेगी शहनाई
कोरबा। एक माह से चल रहा खरमास 14 अप्रैल को समाप्त हो गया। उसके समाप्त होने के बाद गुरु के अस्त होने के बाद शादियों की शुभ तिथियां नहीं रहेगी। गुरु अस्त के बीच अक्षय तृतीया 22 अप्रैल को पड़ रही है। अक्षय तृतीया पर सौभाग्य समेत सात शुभ योगों का संयोग रहेगा।
अक्षय तृतीया को अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक कहा जाता है, जो कभी क्षय नहीं होता उसे अक्षय कहते हैं, इस दिन को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। इस दिन ही भगवान विष्णु के अंशावतार महर्षि वेदव्यास ने महाभारत को लिखना शुरू किया था। इसी दिन ही अक्षय तृतीया पर मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। अक्षय तृतीया पर श्रीहरि विष्णु के अवतार भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। यही वजह है कि इस दिन का हिंदू धर्म में इतना महत्व है कि किसी भी शुभ या फिर मांगलिक कार्य के लिये मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती। यह माना जाता रहा है कि अक्षय तृतीया पर किसी विशेष मुहूर्त को देखने की जरूरत नहीं होती है। विवाह जैसे मांगलिक काम के लिए खरमास न होने के साथ-साथ गुरु ग्रह का उदय होना बेहद जरूरी है। 28 मार्च को गुरु अस्त हो गए थे। इसके बाद 22 अप्रैल को मेष राशि में गुरु प्रवेश करेंगे, लेकिन अस्त अवस्था में होंगे। फिर 27 अप्रैल को सुबह 2 बजकर 7 मिनट पर मेष राशि में ही उदय हो जाएंगे। इसके बाद से मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। शास्त्रों के अनुसार खरमास समाप्त होते ही मांगलिक और शुभ कार्य होना शुरू हो जाता है लेकिन इस साल 14 अप्रैल को खरमास समाप्त होने के बाद भी इस माह शादी-विवाह, मुंडन, छेदन जैसे मांगलिक काम नहीं होंगे।
0 तीन अबूझ मुहूर्त में एक है अक्षय तृतीया
सनातन धर्म में साढ़े तीन मुहूर्त को अबूझ मुहूर्त की मान्यता दी गई है। इनमें किसी भी प्रकार के अन्य मुहूर्त पर विचार किए बिना ही विवाह जैसे शुभ व मांगलिक कार्य संपन्न किए जा सकते हैं। शास्त्रानुसार ये तीन मुहूर्त हैं विजयादशमी, अक्षय तृतीया एवं कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का अर्द्धभाग। ये सभी तिथियां स्वयंसिद्ध मुहूर्त की श्रेणी में आती हैं। इन तिथियों अन्य किसी मुहूर्त पर विचार किए बिना ही शुभ एवं मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, नामकरण, व्रत उद्यापन, गृहप्रवेश आदि संपन्न किए जा सकते हैं।