October 6, 2024

कागजों में तालाब और मेढ़ की मिट्टी साफ-सफाई : सरपंच-सचिव ने ग्राम्य निधि के साढ़े तीन लाख से अधिक राशि निकाल किया बंदरबांट

0 पचरी, नाली निर्माण के कार्य करना दर्शाया
0 ग्रामीणों ने की अपेक्षित जांच की मांग

कोरबा (पाली
)। प्राचीन काल से ग्रामीण भारत के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक जीवन मे पंचायतों का महत्वपूर्ण स्थान है। जिन पंचायतों की प्रशासन चलाने की जिम्मेदारी खुद ग्रामवासियों को दी गई है, जिसे हम स्वशासन कहते हंै। इसी स्वशासन के मुखिया को सरपंच कहा जाता है, जिसको जनता द्वारा हर पांच साल में चुनकर पंचायत में विकास कार्य और बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने की अहम भूमिका सौंपी जाती है। जहां सरपंच अपने उत्तरदायित्व पर खरा उतरते हुए ग्राम में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से आधारभूत सुविधाएं जुटाने के प्रयास और ग्राम सभा की नियमित बैठकें आयोजित करने के साथ ही ग्रामीण विकास में जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित करता है। पंचायती राज अधिनियम-1992 बाद सरपंच पद का महत्व और भी बढ़ गया है। केंद्र और राज्य सरकार ग्राम्य विकास की तमाम योजनाएं इन्ही पंचायतों के जरिये संचालित करती है। आपको भी पता होगा कि वर्तमान समय मे पंचायतों में हर साल लाखों रुपये ग्राम्य निधि में आती है। अत: सरपंच और ग्राम पंचायत की भूमिका गांव के विकास में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है, किन्तु कुछ सरपंच निजी विकास के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं जिससे शासन के मंशानुसार गांव का विकास नही हो पाता। कुछ ऐसा ही मामला पाली जनपद पंचायत अन्तर्गत ग्राम पंचायत बसीबार का सामने आया है, जहां के सरपंच ने सचिव से मिलीभगत कर तालाब और मेढ़ की मिट्टी साफ-सफाई, पचरी, नाली निर्माण के कार्य कागजों में कराकर ग्राम्य निधि से लाखों निकाल हजम कर गए।
पुष्ट सूत्रों से प्राप्त मयदस्तावेज जानकारी के अनुसार ग्राम पंचायत बसीबार में स्थित वर्षों पुराना पनपिया (बड़े) तालाब, जहां तीन दशक पूर्व इस ग्राम के निवासी जिस तालाब के पानी का उपयोग पीने के रूप में करते थे। रख-रखाव के अभाव में धीरे-धीरे इस तालाब का पानी दूषित हो चला। अब लोग निस्तारी के रूप में फिलहाल इसका उपयोग कर रहे हैं। इसी तालाब के साफ-सफाई, कच्चा नाली, मेढ़ नीचे मिट्टी सफाई, पचरी निर्माण, के नाम पर यहां के सरपंच कृपाल सिंह ने सचिव के साथ मिलकर पंचायत मद से लाखों रुपये निकाले, लेकिन धरातल पर ग्रामीणों को कोई काम देखने को नहीं मिले। उपलब्ध दस्तावेज के अनुसार पनपिया (बड़े) तालाब में पचरी निर्माण के नाम पर बाउचर तिथि 14 अप्रैल 2021 में 10 ट्रिप रेत धुलाई की राशि 20 हजार एवं गिट्टी, सीमेंट, सरिया खरीदी पर 70 हजार व बाउचर तिथि 22 जून 2021 में मजदूरी राशि 8 हजार 5 सौ आहरण की गई है। इसी तरह 11 जनवरी 2022 की बाउचर तिथि में 80 हजार तथा 22 मार्च 2022 में 13 हजार 8 सौ 96 और 15 हजार 54 रुपये की राशि तालाब निर्माण की मजदूरी भुगतान के रूप में निकाली गई है। वहीं पनपिया तालाब के नीचे नाली निर्माण एवं इसके सामाग्री के नाम पर बाउचर रिचार्ज तिथि 27 अक्टूबर 2021 को 90 हजार और 22 दिसंबर 2021 को 26 हजार की राशि मूलभूत व 15वें वित्त मद से आहरित की गई है, लेकिन सरपंच-सचिव ने ये सब काम कागजों में कराकर सरकारी धन पर डांका डालते हुए 3 लाख 63 हजार 4 सौ 50 रुपये का आपस में बंदरबांट कर लिया। उपलब्ध दस्तावेज में दर्शाए गए कार्यों की पुष्टि के लिए जब इस ग्राम में पहुंचे और पनपिया तालाब में नहा रहे कुछ स्थानीय ग्रामीणों से हमने पूछा कि उक्त तालाब में वर्तमान सरपंच कार्यकाल में साफ-सफाई के कार्य, पचरी-नाली निर्माण जैसे कार्य कराए गए है कि नहीं, तब ग्रामीणों ने बताया कि ऐसा कोई भी कार्य जमीनी स्तर पर देखने को तो नहीं मिला है। जो भी काम दिख रहा है वह तात्कालीन सरपंच सुरभवन सिंह के कार्यकाल का है। जब उन्हें कार्य व राशि आहरण के बारे में बताया गया तब वे भी कुछ पल के लिए भौचक्क रह गए और कहा कि सरपंच-सचिव मिलकर शासन की योजनाओं में बेहद गड़बड़ी कर रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि मनरेगा के कामों में भी सरपंच अपने रिश्तेदारों के फर्म की फर्जी बिल से खरीदी दिखाकर और मस्टररोल पर फर्जी मजदूरों की एंट्री से भी सरकारी राशि का बंदरबांट कर रहे हैं। पंचायत स्तर पर सभी फैसले को अमलीजामा पहनाने में सरपंच-सचिव के हस्ताक्षर अनिवार्य होते हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार के इस पूरे खेल में दोनों के गठजोड़ को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि बिना सरपंच-सचिव हस्ताक्षर के पंचायत प्रस्ताव पूर्ण व राशि आहरण नहीं किया जा सकता। सरपंच-सचिव द्वारा किये गए भ्रष्टाचार के और भी अनेक उदाहरण हैं।
0 पंचायत कार्यों की पारदर्शिता के लिए संचालित मॉनिटरिंग सिस्टम पूरी तरह से फेल
ऐसा नही है कि शासन स्तर पर सरपंच-सचिव को भ्रष्टाचार करने की छूट दी गई हो। इसकी मॉनिटरिंग के लिए 3 सिस्टम है, पर वे पूरी तरह से फेल है, जिससे पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में जमकर लूट-खसोट चल रही है। पंचायत में होने वाले काम की मॉनिटरिंग का पहला सिस्टम है सोशल ऑडिट… मतलब ग्राम सभा। इसमें ग्रामीणों के सामने पंचायत अपना लेखा-जोखा रखती है, लेकिन जागरूकता की कमी से यह ग्रामसभा किसी औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं है, लोग जागरूक नहीं है इसलिए वे अपनी पंचायत के हिसाब-किताब में ज्यादा रुचि नहीं रखते। दूसरा सिस्टम है विभाग का अपना ऑडिट और तीसरा सिस्टम है कैग का ऑडिट। इनमें भ्रष्टाचार पकड़ में तो आ जाता है, लेकिन सरकारी राशि की बंदरबांट ऊपरी लेवल तक होने से कार्रवाई नहीं हो पाती। बहरहाल सरपंच-सचिव द्वारा कराए गए कार्यों का भौतिक सत्यापन कर भ्रष्टाचार मामले पर न्याय संगत कार्रवाई की अपेक्षित मांग यहां के ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से की है।

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