पूर्व गृहमंत्री कंवर और मुख्यमंत्री बघेल से एक सवाल: 100 करोड़ के घपले को लेकर देवेन्द्र पांडेय पर क्या कोई कार्रवाई कर पाएंगे?
कोरबा 8 सितम्बर। अपने पुत्र को बंधक बनाकर मारपीट करने के मामले में जिला सहकारी केंद्रीय बैंक बिलासपुर के पूर्व अध्यक्ष देवेंद्र पांडे और उसके पुत्र शुभम पांडे को पुलिस थाना और कोर्ट का सैर कराने में सफल रहे रामपुर क्षेत्र के विधायक और प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर क्या देवेन्द्र पांडेय के खिलाफ करीब एक सौ करोड़ रूपयों के घोटाला मामले में भी कोई कड़ी कार्रवाई कराने में सफल हो पाएंगे? यह बड़ा सवाल कोरबा से लेकर बिलासपुर और रायपुर तक पूछा जा रहा है। साथ ही लोग यह भी जानना चाहते हैं कि खुद को किसान हितेषी बताने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जिला सहकारी केंद्रीय बैंक बिलासपुर को 147 करोड़ रुपयों के घाटे के दलदल में डुबाने और उच्च स्तरीय जांच में 95 करोड़ रूपयों से अधिक के भ्रष्टाचार की पूर्व में हुई पुष्टि के मामले में संज्ञान लेकर पांडेय के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही कर बिलासपुर संभाग के हजारों किसानों को न्याय दिला पाएंगे?
जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में देवेंद्र पांडेय के अध्यक्षीय कार्यकाल में की गई गड़बड़ियों की जांच दो ढाई साल तक चलती रही। जांच के दौरान परत-दर-परत घोटाला सामने आते रहा मगर देवेंद्र पांडेय के खिलाफ कोई प्रकरण नही बना। जांच टीम की ओर से शासन को भेजी गई प्रारंभिक रिपोर्ट में 95 करोड़ रुपए की गड़बड़ी सामने आई। जांच दल में शामिल अफसरों की मानें तो श्री पाण्डेयके तीन वर्ष के कार्यकाल की गड़बड़ी थी। जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष देवेंद्र पांडेय के कार्यकाल के दौरान बरती गई गड़बड़ी को लेकर राज्य शासन से शिकायत की गई थी। इसे गंभीरता से लेते हुए राज्य शासन ने तीन संयुक्त पंजीयक व दो दर्जन से अधिक विभागीय निरीक्षकों व संपरीक्षकों की टीम बनाकर पांच वर्ष के कार्यकाल की जांच करने का निर्देश जारी किया था। शासन के निर्देश पर बीते एक वर्ष से जांच दल में शामिल अधिकारी व कर्मचारी जिला सहकारी केंद्रीय बैंक की फाइलों को खंगालते रहे। जांच के दौरान ऐसी कोई शाखा नहीं मिली जहां गड़बड़ी न की गई हो। बैंक की एक-एक फाइलें फर्जीवाड़ा की कहानी खुद ही कह रही थी। शाखा भवन निर्माण, किसान विश्राम गृह निर्माण, बैंक वाहन के अलावा किराए के वाहन संबंधी व्यय में अनियमितता, दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की नियुक्ति में गड़बड़ी, संविदा भर्ती में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी, भृत्यों की नियुक्ति में फर्जीवाड़ा, बैंक एवं शाखाओं के सुरक्षा कार्य में अनियमितता, नोट काउंटिंग मशीन खरीदी में गड़बड़ी, ऋणी कृषक दुर्घटना बीमा में अनियमितता, फर्नीचर खरीदी में अनियमितता, छठवां वेतन का बकाया भुगतान में गंभीर अनियमितता बरतने का खुलासा हुआ। नोट काउटिंग मशीन की खरीदी में कमीशनखोरी का मामला भी जांच में सामने आया। फर्जीवाड़ा करने वाले प्रबंधन ने दुर्घटना में मृत किसानों के परिजनों को भी नहीं छोड़ा। जांच के दौरान यह सनसनी खेज खुलासा हुआ कि बीमाधारी किसान जिनकी दुर्घटना में मौत हो गई है उनके परिजनों को बीमा क्लेम की राशि भुगतान में अफरा-तफरी की गई। बीमा धारी मृतक किसानों के ऐसे परिजनों का हवाला भी दिया गया है जिनको मुआवजा राशि नहीं मिली और कागज में भुगतान करना बताया गया है।
जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में गड़बड़ी की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में तकरीबन 95 करोड़ का घोटाला सामने आया। जांच चल ही रही थी तो दूसरी ओर करोड़ों रुपए के घोटालों में प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर निलंबित अधिकारी-कर्मचारियों को फिर बहाल करने का दौर शुरू हुआ और ऐसे कर्मचारियों को उनकी मनपसंद ब्रांचों में पदस्थ किया जाता रहा। हद तो तब हो गई जब जिन 106 लोगों को अयोग्य करार देकर निकाल दिया गया था, उन्हें फिर नौकरी में रखने की कोशिश की गई। जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में 106 लोगों को उनकी योग्यता नहीं होने के बावजूद गलत तरीके से नौकरी देने के मामले में निलंबित प्रभारी अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी अमित शुक्ला को पुन: बहाल कर दिया गया हालांकि बाद में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया मगर बर्खास्तगी के पहले शुक्ला का निलंबन वापस करने के बाद पुराने बस स्टैंड स्थित बैंक में शाखा प्रबंधक के पद पर पदस्थ कर दिया गया था। तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी अभिषेक तिवारी के कार्यकाल में शुक्ला को 106 लोगों की बैंक की भर्ती और गड़बड़ी में मुख्य भूमिका पाए जाने पर निलंबित कर दिया था हालांकि शुक्ला ने किसके इशारे पर नियम विरुद्ध भर्ती की थी यह सबको पता है। प्रारंभिक जांच में शुक्ला को दोषी भी पाया गया। इसी तरह शेखर दत्ता को गंभीर आर्थिक अनियमितता के आरोप पर निलंबित किया गया था, उन्हें भी बहाल कर दिया गया था। करोड़ों रुपए के परिवहन घोटाले की फाइल गायब होने के मामले में निलंबित घनश्याम तिवारी को भी बहाली का इनाम मिला था। मल्हार में तीन करोड़ रुपए के धान घोटाले में एफआईआर व एसआईटी की जांच में फंसे टंडन को कोटा शाखा में ब्रांच मैनेजर के पद पर बिठा दिया गया था।
सहकारी बैंकों के अधीन बचत बैकों के विरुद्ध लोगों की शिकायत के बाद सहकारी संस्था ने एक के बाद कर इन बैंकों की जांच करवाई। ऑडिट रिपोर्ट मंगवाए गए। पता चला कि यहां बड़े पैमाने पर पैसों की गफलत हुई है। पहले फेज में सहकारी बैंक के पदाधिकारियों ने उन लोगों के लिए पैसों की मांग की जिन्हें बचत बैंकों से उनके खुद के जमा किए पैसे नहीं मिल रहे थे। शासन से 10 करोड़ का लोन लेकर किसानों में बांटा गया । इनमें ज्यादातर समितियां जांजगीर और कोरबा क्षेत्र की थी। जिला सहकारी बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष के कार्यकाल में बैंक में बड़े पैमाने पर अनियमितता उजागर हुई। तत्कालीन अध्यक्ष ने नियम- कानून को ताक में रखकर बचत बैंकों में किसानों की जमा राशि तक को नहीं छोड़ा और लाखों रुपए का बंदरबांट कर दिया। बताते हैं कि जिला सहकारी बैंक प्रबंधन ने बचत बैंकों में जमा राशि को दूसरे मद में खर्च कर दिया। साथ ही बड़े पैमाने पर हेराफेरी की। पूरी जांच में सौ करोड़ रुपए की गड़बड़ियां उजागर हुई, सहकारी बैंकों के अधीन नेवरा, धूमा, सिंघनपुरी, घुटकू, भरारी, कोटा, सेमरताल, ओखर, धुर्वाकारी, जांजी, बिटकुली, जैतपुर, हिर्री, चिल्हाटी, धनिया, घुरु, सकरी, देवरी, गनियारी सहित कई ब्रांचों में धान और रुपयों के घपले के मामले आये । कई तरह की राशियों में अंतर और लोगों की परेशानी के बाद सहकारी संस्था के अधिकारियों ने इसकी जांच करवाई थी।