सामूहिक प्रयास से सामाजिक चेतना बढ़ाएं, ‘गौरैया’ को घर आँगन में बुलाएँ
सत्यप्रकाश पांडेय
वाइल्डलाइफ फोटोजर्नलिस्ट, बिलासपुर छत्तीसगढ़
शनिवार 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस था। गौरैया जो दो दशक पहले तक गांवों- शहरों के हर घर में फुदकती नजर आती थी, वो गौरैया अब खोजे नहीं मिलती। गौरैया मनुष्य के साथ लगभग 10,000 वर्षों से रह रही है, लेकिन अब कुछ दशकों से गौरैया शहरों के इलाकों में दुर्लभ पक्षी बन गई है। उनकी आबादी में भारी गिरावट आई है। हालांकि कुछ गांवों के लोग अभी भी गौरैया के चीं- चीं की आवाजों को सुन और महसूस कर रहे हैं, परंतु शहरी इलाकों में समस्या कुछ ज्यादा ही गंभीर है। पूरी दुनिया मे गौरैया की दो दहाई से भी अधिक प्रजातियां हैं, जिसमें से भारत में इनकी 5 प्रजातियाँ मिलती हैं। 20 मार्च को विश्व गौरेया दिवस, गौरैया के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। इसके अलावा ये शहरी वातावरण में रहने वाले आम पक्षियों के प्रति जागरूकता लाने हेतु भी मनाया जाता है।
आधुनिक जीवन शैली गौरैया को सामान्य रूप से रहने के लिए बाधा बन गई। पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई, खेतों में कृषि रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग, टेलीफोन टावरों से निकलने वाली तरंगें, घरों में सीसे की खिड़कियाँ इनके जीवन के लिए प्रतिकूल हैं। साथ ही साथ, जहां कंक्रीट की संरचनाओं के बने घरों की दीवारें घोंसले को बनाने में बाधक हैं वहीं घर, गाँव की गलियों का पक्का होना भी इनके जीवन के लिए घातक है, क्योंकि ये स्वस्थ रहने के लिए धूल स्नान करना पसंद करती हैं जो नहीं मिल पा रहा है। ध्वनि प्रदूषण भी गौरैया की घटती आबादी का एक प्रमुख कारण है।
कुछ इस प्रकार के कार्यों को करके आप और हम गौरैया को वापस अपने घर-आँगन में बुला सकते हैं।
अपने घर के छतों, आँगन, खिड़कियों और छज्जों पर दाना और पानी जरूर रखें।बाजार से कृत्रिम घोंसले लाकर रख सकते हैं। पहले की भांति घरों में धान, बाजरा इत्यादि की बालियां फिर से लटकाना शुरू कर दें। गौरैया के घोसला बनाने में मदद करें। यदि घर में कहीं घोसला बना रही हैं तो उन्हें न बिगाड़े। कोशिश करें कि घर में कार्टून, खोखले बाँस के टुकड़े या मिट्टी की छोटी-छोटी बेकार मटकियों में छेद करके टांग दें। गर्मियों के इस मौसम में पीने के लिए पानी की उचित व्यवस्था करें।