December 23, 2024

सूत्र पटल @ डाॅ. कमलेश द्विवेदी

प्रस्तुति- सतीश कुमार सिंह

कोरोना महामारी ने अपनी इस भयावह लहर में हमारे बहुत से संजीदा रचनाकारों को हमसे छीन लिया है । रोज ही किसी न किसी के चले जाने की ख़बर सोशल मीडिया पर दिखाई देती रहती है । इसी संकटपूर्ण स्थिति के बीच हिंदी के पारंपरिक छंदों में गीत रचने वाले कानपुर के गीतकार डाॅ. कमलेश द्विवेदी के देहावसान की सूचना मिली । वे हिंदी काव्य मंचों में गीत की मशाल जलाए हुए थे और बाल साहित्य लेखन में भी उनका विशिष्ट योगदान था । आज श्रद्धांजलि स्वरूप मैं उनके पाँच गीत यहाँ प्रस्तुत करने जा रहा हूँ । एक शब्दकार की रचनात्मकता पर हम सबका आपसी संवाद उनके प्रति हमारी सच्ची आदरांजलि होगी।

आज तुम्हारा अलबम देखा सारे चित्र मनोरम हैं।
कहीं नहीं हैं हम चित्रों में फिर भी लगता है-हम हैं।

पहला चित्र कि जिसमें तुम हो
सागर तट पर खड़े किनारे।
लहरें तुमको भिगो रही हैं
कितने सुन्दर दिखें नजारे।
लगता इन लहरों से हम भी भीगे आज झमाझम हैं।
कहीं नहीं हैं हम चित्रों में फिर भी लगता है-हम हैं।

चित्र दूसरा है जिसमें तुम
सुना रहे हो गीत तुम्हारा।
बजा रहे हैं लोग तालियाँ
गीत लग रहा सबको प्यारा।
गीत तुम्हारा है पर लगता हम ही उसकी सरगम हैं।
कहीं नहीं हैं हम चित्रों में फिर भी लगता है-हम हैं।

पहले से लेकर अंतिम तक
चित्र लगे सब हमको प्यारे।
सब चित्रों में हमने देखा
यों ही ख़ुद को साथ तुम्हारे।

चित्रों में साकार दिखो तुम हम यादों की अलबम हैं।
कहीं नहीं हैं हम चित्रों में फिर भी लगता है-हम हैं।
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मेरे गीत समर्पित उसको जिसने ये लिखवाये हैं।
शब्द उसी से अर्थ उसी से भाव उसी से पाये हैं।

मैंने ऐसा कब सोचा था-
गीत कभी लिख पाऊँगा मैं।
स्वर भी ऐसा नहीं मिला था
जो कि सोचता गाऊँगा मैं।
मेरे स्वर में गीत उसी ने गाये और सुनाये हैं।
मेरे गीत समर्पित उसको जिसने ये लिखवाये हैं।

मैं तो एक माध्यम भर हूँ
वरना इनमें क्या है मेरा।
अगर न सूरज करे रोशनी
क्या हो सकता कभी सवेरा।
ये उसने ही किये प्रकाशित जन-जन तक पहुँचाये हैं।
मेरे गीत समर्पित उसको जिसने ये लिखवाये हैं।

जो प्रवाह सौंपा है उसने
वैसा ही अब रहे निरंतर।
गीतों की यह पावन धारा
गंगा जैसी बहे निरंतर।
मैं भी सबको भाऊँ ज्यों ये गीत सभी को भाये हैं।
मेरे गीत समर्पित उसको जिसने ये लिखवाये हैं
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आओ हम बात करें आओ हम बात करें।
कभी कभी उत्तर दें कभी सवालात करें।

बातें हों काम की
बातें हों दाम की।
पर ज़्यादा बातें हों
मन के आराम की।
चाहें कुछ पलों करें चाहें दिन-रात करे।
आओ हम बात करें आओ हम बात करें।

बातें हों फूल की
बातें हों ख़ार की।
पर ज़्यादा बातें हों
मन के शृंगार की।
नेह भरी इक-दूजे पर हम बरसात करें।
आओ हम बात करें आओ बात करें।

बातें हों दूर की
बातें हों पास की।
पर ज़्यादा बातें हों
मन के विश्वास की।

अंत भला हो चाहे जैसी शुरुआत करें।
आओ हम बात करें आओ हम बात करें।
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सोलह आने तुम दोषी हो तो हम सत्रह आने।
जब हम ऐसे ग़लती मानें तो झगड़ा क्यों ठानें।

झगड़ा तो तब होता है जब
कभी अहम टकरायें।
तुम हमको दोषी ठहराओ
हम तुमको ठहरायें।
मगर अहम टकरायें क्यों जब दोनों लोग सयाने।
सोलह आने तुम दोषी हो तो हम सत्रह आने।

एक-दूसरे को आपस में
जब हम इतनी शह दें।
तुम भी अपने दिल की कह दो
हम भी तुमसे कह दें।
फिर हम दोनों किसी बात का बुरा कभी क्यों मानें।
सोलह आने तुम दोषी हो तो हम सत्रह आने।

दोनों अपनी ग़लती मानें
तो दोनों हैं सच्चे।
तुम कहते हो हमको अच्छा
हम कहते-तुम अच्छे।
अच्छे हैं तो क्यों ना अपनी अच्छाई पहचानें।
सोलह आने तुम दोषी हो तो हम सत्रह आने।
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जाने ये कैसे रिश्ते हैं जाने ये कैसे नाते हैं।
जो नहीं किसी से कह पाते वह हम तुमसे कह जाते हैं।

तुम कभी हक़ीक़त लगते हो
तुम कभी लगो सपने जैसे।
तुम कभी पराये लगते हो
तुम कभी लगो अपने जैसे।
पर तुम अपनों से बढ़कर हो हम सच-सच तुम्हें बताते हैं।
जो नहीं किसी से कह पाते वह हम तुमसे कह जाते हैं।

तुम कभी तृप्ति लगते हमको
तुम कभी प्यास लगते हमको।
तुम कभी दूर लगते हमको
तुम कभी पास लगते हमको।
पर आँख बंद कर देखें तो नज़दीक हमेशा पाते हैं।
जो नहीं किसी से कह पाते वह हम तुमसे कह जाते हैं।

तुम बसे हमारी धड़कन में
तुम बसे हमारी साँसों में।
तुम हमें हौसला देते हो
तुम रहते हो विश्वासों में।
जितना तुम भाते हो शायद उतना हम तुमको भाते हैं।
जो नहीं किसी से कह पाते वह हम तुमसे कह जाते हैं।

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