साहित्य हिन्दी कमलेश भट्ट कमल, दो गज़ल Markanday Mishra August 12, 2020 गज़ल 01कोई मगरूर है भरपूर ताकत सेकोई मजबूर है अपनी शराफत सेघटाओं ने परों को कर दिया गीलाबहुत डर कर परिंदों के बग़ावत सेमिलेगा न्याय दादा के मुकद्दमे काये है उम्मीद पोते को अदालत सेमुवक्किल हो गए बेघर लड़ाई मेंवकीलों ने बनाए घर वकालत मेंकिसी ने प्यार से क्या क्या नहीं पायाकिसी ने क्या क्या नहीं खोया अदावत सेगज़ल 02 वृक्ष अपने ज़ख्म आखिर किसको दिखलातेपत्तियों के सिर्फ पतझड़ तक रहे नाते।उसके हिस्से में बची केवल प्रतीक्षा हीअब शहर से गाँव को खत भी नहीं आते।जिनकी फितरत ज़ख़्म देना और खुश होनाकिस तरह वे दूसरों के ज़ख़्म सहलाते।अपनी मुश्किल है तो बस खामोश बैठे हैंवरना खुद भी दूसरों को खूब समझाते।खेल का मैदान अब टेलीविज़न पर हैघर से बाहर शाम को बच्चे नहीं जाते। Spread the word Continue Reading Previous ओम प्रभाकर के दो नवगीतNext सुरेशचंद्र शर्मा के दो गीत Related Articles कोरबा छत्तीसगढ़ जरूरी खबर साहित्य डॉ.निशंक का रचना संसार साहित्य महाकुंभ समारोह में डॉ.ऊषी बाला गुप्ता सम्मानित Markanday Mishra October 30, 2022 कोरबा छत्तीसगढ़ जरूरी खबर प्रेरणा भाषा संस्कृति साहित्य एनटीपीसी कोरबा में राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए हिन्दी पखवाड़ा 2022 के तहत विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन Markanday Mishra September 30, 2022 आस्था कला कोरबा छत्तीसगढ़ जरूरी खबर संगठन संस्कृति साहित्य छत्तीसगढ़ की लोक कला, परंपरा व संस्कृति को बचायें: पुरुषोत्तम Markanday Mishra September 29, 2022